वो महिला, जिन्होंने पहली बार विदेशी धरती पर फहराया था भारतीय तिरंगा?

punjabkesari.in Saturday, Aug 14, 2021 - 04:54 PM (IST)

भारत जब गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था तब कुछ महिलाएं ऐसी भी थी, जिन्होंने देश की आजादी में अपनी सहयोग दिया। स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाली उन्हीं महिलाओं में से एक थी मैडम भीकाजी कामा। उन्होंने ना सिर्फ भारत को आजाद करवाने में अपनी सहयोग दिया बल्कि वो ऐसी पहली महिला थी, जिन्होंने निडरता से विदेश में पहली बार तिरंगा लहराया।

महिला शिक्षा का किया समर्थन

बचपन से ही स्वतंत्र विचारों वाली मैडम कामा स्त्री शिक्षा की प्रबल समर्थक थी। उनका मानना था कि महिलाओं के बगैर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन सफल नहीं हो सकता। भीकाजी भारतीय होम रूल सोसायटी की स्थापना में सबसे सक्रिय थी। इन्हें इनके प्रेरक और क्रांतिकारी भाषणों के लिए तथा भारत व विदेश दोनों में लैंगिक समानता की वकालत करने के लिए जाना जाता है। एक वरिष्ठ नेता की तरह इन्होंने कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की।

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देश की लिए हुई पति से अलग

उस समय भीकाजी कामा देश को आजाद करवाने की हर कोशिश कर रही थीं, जिस बीच उनकी शादी मिस्टर रुस्तम के आर कामा के साथ हुई। जहां वह पूरी तरह से देश भक्ति के रंगों में रंगी हुई थीं वहीं, उनके पति ब्रिटिश राज के भक्त थे। इसी वजह से दोनों की शादी ज्यादा देर नहीं टिकी और उन्होंने पति से अलग होना बेहतर समझा।

समाज सेवा के कार्य में थी दिलचस्पी

इसके बाद वह देश की आजादी और समाज सेवा के कार्य में लग गई। तभी देश भयानक प्लेग की चपेट में आ गया। उस समय भीकाजी लोगों की सेवा में जुटी रही लेकिन लोगों की सेवा करते-करते वो खुद बीमारी पड़ गई, जिसकी वजह से उन्हें इलाज के लिए लंदन जाना पड़ा।

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विदेशी सरजमीं पर भी नहीं भूली आजाद भारत का सपना

मगर, विदेशी सरजमीं पर भी उन्होंने आजादी की लड़ाई को जारी रखा और दादाभाई नौरोजी की सेक्रेटरी के तौर पर काम भी करती रहीं। उन्होंने आजादी पर अपने विचारों को कागज पर उतारना शुरू किया। अमेरिका जैसे देश में भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों के बारे में लोगों को बताने के लिए उन्होंने 'वन्दे मातरम' और 'तलवार' जैसी मैगजींस भी निकालीं। उनकी इन गतिविधियों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने भीकाजी के भारत आने पर रोक लगा दी।

जब जर्मनी में फहराया भारतीय झंडा

बात आजादी से चार दशक पहले की है, जब 1907 में पहली बार किसी विदेशी सरजमीं पर भारत का झंडा फहराया गया।  22 अगस्त, 1907 में जर्मनी के शहर स्टुटगार्ट में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा था, जहां कांग्रेस में हिस्सा ले रहे सभी देशों के झंडा लगे हुए थे। मगर, भारत के लिए ब्रिटिश झंडा था, जो भीकाजी को स्वीकार नहीं था। ऐसे में उन्होने एक नया झंडा बनाया और सभा में फहराया, जिसे उन्होंने 'आजादी का प्रथम ध्वज' कहा। झंडा फहराते हुए भीकाजी कामा ने कहा कि ये भारत का झंडा है जो भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। उनके इस कार्य की दुनियाभर में ही तारीफ भी की गई। हालांकि उनका तिरंगा, आज के झंडे से काफी अलग था।

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कैसा था भीकाजी कामा का बनाया झंडा?

उनके द्वारा फहराए गए झंड़े पर 'वंदे मातरं' लिखा था। इस पर हरी पट्टी पर कमल के फूल भारत के आठ प्रांतों को दर्शाते थे और इसके अलावा झंड़े पर हरी, पीली और लाल पट्टियां थीं। इस झंड़े पर सूरज और चांद भी बना हुआ था, जो हिंदू और मुस्लिम धर्म का प्रतीक था। यह झंड़ा पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में प्रदर्शित है।

अपने जीवन के आखिरी दिनों में 74 साल की उम्र में मैडम भीकाजी कामा 1935 में वापस भारत लौटीं। वह आखिरी दम तक भारत की आजादी से के लिए जी जीन से लड़ी लेकिन आजादी से पहले ही 13 अगस्त 1936 को उनकी मृत्यु हो गई।


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Content Writer

Anjali Rajput

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