शनिदेव के प्रकोप से कटा था गजानन का सिर, पढ़िए एक पौराणिक कथा

punjabkesari.in Saturday, Sep 11, 2021 - 10:06 AM (IST)

जहां हिंदू धर्म में हर कार्य से पहले भगवान गणेश की जाती हैं वहीं, कोई भी बुरा कर्म करने से पहले शनिदेव के बारे में जरूर सोचता है क्योंकि वह हर किसी को उसके बुरे कर्मों का फल देते हैं। एक बार जिसपर शनि की दृष्टि पड़ जाए तो उसे उसके कर्मों का फल अवश्य मिलता है। पौराणिक कथाओं की मानें तो शनिदेव के प्रकोप से सर्वप्रथम पूजे जाने वाले गणेश जी भी नहीं बच पाए थे। चलिए आपको बताते हैं शनिदेव व भगवान श्रीगेशन की ऐसी कहानी जो शायद ही आपने सुनी हो।

श्रीगणेश कैसे बने गजानन?

भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती मैल या उबटन से हुआ था। ऐसी भी कहा जाता है कि माता पार्वती द्वारा पुण्यक व्रत करने पर लंबोदर का जन्म हुआ था। कथाओं के मुताबिक, जब माता पार्वती स्नान कर रही थी तब उन्होंने श्रीगणेश को पहरेदार बनाया और किसी को भी अंदर आने से मना किया। तभी वहां भगवान शिव आए लेकिन गणपति ने उनका रास्ता रोका। इसपर क्रोधित होकर भगवान शिव ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। हालांकि माता पार्वती की व्याकुलता देख उन्होंने भगवान गणेश के धड़ पर हाथी का सिर लगा दिया।

PunjabKesari

शनिदेव के प्रकोप से कटा था गजानन का सिर

अन्य पौरिणिक कथाओं के मुताबिक, श्रीगणेश का सिर शनिदेव की दृष्टि पड़ने की वजह से नष्ट हो गया था। मगर, माता पार्वती के बहुत कहने पर भगवान शिव और बह्मदेव ने उनके धड़ पर हाथी के बच्चे का सिर लगा दिया, जिसके बाद उन्हें 'गजानन' कहा जाने लगा।

PunjabKesari

श्रीगणेश से क्या है शनिदेव का संबंध?

कथा अनुसार, जब माता पार्वती के 'पुण्यक व्रत' से जब श्रीगणेश का जन्म हुआ तब सभी देवता उन्हें आशीर्वाद देने आए। मगर, शनिदेव बालक गणेश के पास तक नहीं गए। माता पार्वती ने इसे अपना अपमान समझा क्योंकि उन्हें शनिदेव की पत्नी द्वारा दिए गए श्राप का पता नहीं था कि उनकी नजर पड़ने से हानि हो सकती है।

PunjabKesari

मगर, जब पार्वती माता को इसके बारे में पता चला तो उन्होंने शनिदेव से श्रीगणेश को देखने का आग्रह किया और कहा कि उन्हें देखने पर कुछ अमंगल नहीं होगा। लेकिन जब माता पार्वती की आज्ञा मान शनिदेव ने श्रीगणेश को देखा तो उनका सिर भस्म हो गया। तब माता पार्वती का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु एक बालक हाथी का सिर लाए। उन्होंने श्रीगणेश के धड़ से हाथी का सिर जोड़ा और उनके प्राण वापिस लाए।

कहां गया था भगवान गणेश जी का असली मस्तक?

कथाओं के मुताबिक, कटने के बाद श्रीगणेश का असल मस्तक चंद्रमंडल में चला गया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सालभर में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते। उसी दिन चन्द्रदर्शन व अर्घ्य देकर श्रीगणेश की पूजा की जाती है और संकटनाश व मंगल की कामना करते हैं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anjali Rajput

Recommended News

Related News

static