दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला: विधवा बहु को ससुर की पैतृक संपत्ति से मेंटिनेंस मांगने का अधिकार
punjabkesari.in Saturday, Aug 23, 2025 - 05:27 PM (IST)

नारी डेस्क: जब एक महिला अपने पति को खो देती है, तो उसके लिए ज़िंदगी एकदम बदल जाती है भावनात्मक दर्द के साथ-साथ अक्सर उसे आर्थिक मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे में अगर ससुराल का साथ भी न मिले, तो हालात और कठिन हो जाते हैं। लेकिन अब दिल्ली हाई कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले ने विधवा महिलाओं को राहत दी है। कोर्ट ने साफ़ कहा है कि विधवा बहू को अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण-पोषण (मेंटिनेंस) मांगने का पूरा हक़ है। यह फैसला न सिर्फ क़ानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक रूप से भी महिलाओं के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम है।
क्या था मामला?
यह केस उस समय सामने आया जब एक विधवा बहू की भरण-पोषण की याचिका को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। कोर्ट ने उस याचिका को "गैर-भरण-पोषणीय" (non-maintainable) मानते हुए यह कहा था कि ससुर की संपत्ति से बहू को मेंटिनेंस नहीं दिया जा सकता। इस फैसले को विधवा महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी, और हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए बहू के पक्ष में फैसला सुनाया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि पति के निधन के बाद विधवा हुई बहू को अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से भरण पोषण पाने का पूरा अधिकार है. दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ किया कि यह अधिकार केवल पैतृक संपत्ति पर लागू होगा ना कि ससुर की स्वयं से बनाई गई संपति पर. #delhi pic.twitter.com/9mJXI8K1Z3
— Nari (@NariKesari) August 23, 2025
कोर्ट ने क्या कहा?
दिल्ली हाई कोर्ट की दो जजों की बेंच जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर ने कहा कि भले ही ससुर के पास निजी रूप से अर्जित (स्वअर्जित) संपत्ति हो, लेकिन विधवा बहू पैतृक (ancestral) संपत्ति से भरण-पोषण मांग सकती है। यह दावा हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) की धारा 19(1) के अंतर्गत वैध और स्वीकार्य है। जब पति की मृत्यु हो जाती है, तो ससुर या उसके उत्तराधिकारी परिवार पर विधवा बहू का भरण-पोषण करना एक कानूनी दायित्व बन जाता है।
HAMA की धारा 19(1) क्या कहती है?
HAMA (Hindu Adoptions and Maintenance Act) की धारा 19(1) के अनुसार, "अगर किसी महिला का पति मर जाता है और वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो वह अपने ससुर से मेंटिनेंस (भरण-पोषण) मांग सकती है, बशर्ते ससुर के पास पर्याप्त संपत्ति हो।" इस अधिनियम के तहत ससुर की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी विधवा बहू को आर्थिक सहायता दे, खासकर अगर वह स्वयं आय का कोई स्रोत नहीं रखती।
इस फैसले का महत्व क्या है?
यह फैसला विधवा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें न्याय दिलाने की दिशा में अहम कदम है। यह स्पष्ट करता है कि भले ही बहू को ससुर की संपत्ति में सीधा हिस्सा न मिला हो, लेकिन वह अपने भरण-पोषण के लिए उस संपत्ति से दावा कर सकती है। अब अगर किसी विधवा बहू को आर्थिक रूप से उपेक्षित किया जाता है, तो वह कोर्ट की मदद से अपने ससुराल की संपत्ति से अपने जीवन-यापन के लिए सहायता पा सकती है।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय उन महिलाओं के लिए राहत की खबर है, जो पति की मृत्यु के बाद अकेली और असहाय हो जाती हैं। अब उनके पास एक कानूनी सहारा है, जिसके ज़रिए वे अपने ससुर की पैतृक संपत्ति से अपना हक पा सकती हैं, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।