सोचने-समझते की क्षमता खत्म कर देती है ये बीमारी, संकेतों को ना करें इग्नोर

punjabkesari.in Friday, May 24, 2019 - 03:48 PM (IST)

आज दुनियाभर में विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस मनाया जा रहा है, जिसका मकसद लोगों को इस बीमारी के बारे में ज्यादा से ज्यादा सचेत करना है। यह एक ऐसी मानसिक बीमारी है, जिसके चलते लोगों की सोचने और समझने की क्षमता खत्म हो जाती है, जिसका असर रोजमर्रा की जिंदगी पर भी पड़ता है। कुछ लोग तो इस बीमारी से जल्दी उभर जाते हैं जबकि कुछ जिंदगी भर इससे परेशान रहते हैं। यही कारण है कि इस बीमारी को खतरनाक माना जाता है। चलिए आज हम आपको बताते हैं कि इस बीमारी के लक्षण, कारण और उपचार।

 

क्‍या है सिजोफ्रेनिया?

सिजोफ्रेनिया को एक तरह की मानसिक स्थिति हैं, जिसमें व्यक्ति काल्पनिक और वास्तविक वस्तुओं में फर्क नहीं कर पाता, जिसके कारण वह अपनी काल्पनिक दुनिया में रहने लगता है। इससे सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर पड़ता है, जिससे पेशंट जिंदगी की जिम्मेदारियों को संभालने में असमर्थ रहता है।

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सिजोफ्रेनिया के लक्षण

इस बीमारी में अलग-अलग शख्स के संकेत भी अलग-अलग होते हैं। कुछ लोगों में इसके लक्षण धीरे-धीरे दिखाई देते हैं तो किसी में जल्दी नजर आ जाते हैं।

-असामान्य व्यवहार
-पीड़ित व्यक्ति में उदासीनता
-आम लोगों की तरह सुख-दुख महसूस ना कर पाना
-किसी से बातचीत ना करना
-भूख-प्यास का ख्याल नहीं रख पाते
-लिखने और बोलने में परेशानी
-सोने में दिक्कतें आना
-हल्लुसिनेशन होना
-किसी चीज का डर

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सिजोफ्रेनिया के कारण
जेनेटिक

अगर परिवार में किसी को सिजोफ्रेनिया हो तो इस बीमारी से ग्रस्त होने का खतरा ज्यादा रहता है।

वायरल संक्रमण

शोध के अनुसार, वायरल संक्रमण के कारण बच्चों में एक प्रकार का पागलपन के विकास होने की संभावना ज्यादा रहती है, जिसमें से सिजोफ्रेनिया भी एक है।

भ्रूण कुपोषण

अगर प्रैग्नेंसी के दौरान भ्रूण को सही पोषण ना मिलें तो वह कुपोषण का शिकार हो सकता है। गर्भवास्था में भ्रूण का कुपोषित होना भी बच्चे में इस बीमारी का खतरा बढ़ाता है।

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बहुत ज्यादा तनाव

बहुत ज्यादा तनाव लेने से भी एक तरह का पागलपन है, जिसके चलते आप सिजोफ्रेनिया की चपेट में भी आ सकते हैं।

अधिक उम्र में बच्चे को जन्म देना

अगर प्रैग्नेंसी के समय माता-पिता की उम्र बहुत ज्यादा है तो होने वाला बच्चा सिजोफ्रेनिया की चपेट में आ सकता है। इसलिए प्रैग्नेंसी के समय सभी जरूरी टेस्ट करवाना ना भूलें।

उपचार

इसका इलाज मनोवैज्ञानिक थेरेपी द्वारा किया जाता है, जिसका इलाज आमतौर पर काफी लंबे समय तक चलता है। हालांकि अगर शुरूआती समय पर ही इस बीमारी का इलाज कर दिया जाए तो समस्या पकड़ में आ जाती है। रोगी के साथ-साथ इसमें परिवार वालों को भी काउंसिलिंग दी जाती है, जिसमें उन्हें रोगी की देखभाल के तरीके समझाए जाते हैं।

-ऐसे में व्यक्ति को परिवार और दोस्तों के सहारे, मदद और प्यार की जरुरत होती है।
-रोगी को मनोरोग चिकित्सक से परामर्श और दवाओं का भी सहारा लेना चाहिए।
-मजबूत इच्छा शक्ति से और अपनों के प्यार की मदद से आप इस परेशानी से उभर सकते हैं।

क्‍या खाएं और क्‍या न खाएं?

अगर आपके परिवार का कोई सदस्य इस बीमारी से पीड़ित है तो इस बात का ख्याल रखें कि वह किसी भी तरह के नशीले पदार्थ का सेवन ना करें। साथ ही उन्हें ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर फूड्स जैसे सोयाबीन, पालक, स्ट्राॅबेरी, खीरा आदि आदि खाने के लिए दें। इसके अलावा डाइट में विटामिन्स को शामिल करें और रोगी को रोजाना व्यायाम करने के लिए भी कहें।


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Content Writer

Anjali Rajput

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