क्या होता है प्रेग्नेंसी में वॉटर ब्रेक? 41 साल की उम्र में भारती सिंह बनीं दूसरी बार मां
punjabkesari.in Sunday, Dec 21, 2025 - 02:56 PM (IST)
नारी डेस्क: मशहूर कॉमेडियन भारती सिंह और उनके पति हर्ष लिम्बाचिया के घर एक बार फिर खुशियों का मौका आया है। भारती ने 41 साल की उम्र में अपने दूसरे बच्चे को जन्म दिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, 19 दिसंबर की सुबह अचानक उनका वॉटर ब्रेक हो गया। इसके बाद उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया और कुछ ही घंटों बाद उन्होंने एक हेल्दी बच्चे को जन्म दिया। हालांकि भारती का प्रेग्नेंसी डेट अभी तय नहीं था क्योंकि उन्हें अपनी शो ‘लाफ्टर शेफ्स’ की शूटिंग करनी थी। लेकिन अचानक वॉटर ब्रेक हो जाने के कारण डिलीवरी जल्दी हो गई।
प्रेग्नेंसी में वॉटर ब्रेक का मतलब क्या होता है?
प्रेग्नेंसी के दौरान वॉटर ब्रेक का मतलब होता है कि गर्भ में बच्चे को सुरक्षित रखने वाली पानी की थैली (एम्नियोटिक सैक) फट गई है। इसके बाद योनि से पानी निकलने लगता है। कभी यह पानी तेजी से निकलता है और कभी धीरे-धीरे रिसता है। वॉटर ब्रेक होने के बाद बच्चे को गर्भ में लंबे समय तक रखना सुरक्षित नहीं होता। इसलिए तुरंत अस्पताल जाना जरूरी है।
एम्नियोटिक फ्लूइड का काम
एम्नियोटिक फ्लूइड यानी गर्भ का पानी बच्चे के लिए बहुत जरूरी होता है। इसके मुख्य काम हैं
बच्चे को झटकों और चोटों से बचाना
फेफड़ों और शरीर के अंगों के विकास में मदद करना
संक्रमण से सुरक्षा देना
इसलिए वॉटर ब्रेक के बाद मेडिकल निगरानी बहुत जरूरी होती है।
वॉटर ब्रेक के बाद क्या होता है?
अक्सर वॉटर ब्रेक होने के कुछ ही समय बाद लेबर पेन शुरू हो जाता है। इसी वजह से डॉक्टर सलाह देते हैं कि महिला को तुरंत अस्पताल ले जाया जाए। यह बच्चे और मां दोनों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
प्रेग्नेंसी में वॉटर ब्रेक कब होता है?
अधिकतर महिलाओं में वॉटर ब्रेक प्रेग्नेंसी के आखिरी चरण में, यानी डिलीवरी के करीब होता है। अगर वॉटर ब्रेक 37 हफ्ते से पहले हो जाए, तो इसे प्रीटर्म वॉटर ब्रेक कहा जाता है और तुरंत मेडिकल सहायता की जरूरत होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
प्रेग्नेंसी में वॉटर ब्रेक कैसे पता करें?: जब पानी टूटता है, तो योनि में गीलापन महसूस होता है। कभी-कभी यह पानी तेजी से बाहर आता है।
वॉटर ब्रेक के कितने समय में बच्चे का जन्म होना चाहिए?: वॉटर ब्रेक के कुछ घंटों के भीतर लेबर पेन शुरू हो जाता है। अगर 24 घंटे के भीतर बच्चे का जन्म नहीं होता है, तो बच्चे को 12 घंटे तक निगरानी में रखा जाता है ताकि संक्रमण का खतरा न हो।
कुछ मामलों में डॉक्टर सी-सेक्शन का सुझाव भी दे सकते हैं।

