कोख में मत मारो बेटियों को...कन्या भ्रूण हत्या काे रोकने के लिए हमें आना चाहिए आगे
punjabkesari.in Friday, Mar 08, 2024 - 07:35 PM (IST)
देश बदल रहा है, लोगों की सोच बदल रही है, यह सब हम काफी लंबे समय से सुनते आ रहे हैं। हां देश तो बदल रहा है लेकिन कुछ लोगों की सोच अभी भी बेहद पुरानी है तभी तो इतने सख्त कानून बनने के बावजूद आज भी लड़कियों को पैदा होने से पहले मार दिया जाता है। समय के साथ भी बेटे की चाहत कम नहीं हुई है तभी तो लाखों लड़कियों की आंखें इस दुनिया में आने से पहले बंद कर दी गई है। कन्या भ्रूण हत्या देश के लिए बहुत बड़ा अभिशाप है। महिला दिवस के मौके पर बताते हैं क्या है देश के हालात।
दूसरे बच्चे की लिंग की करवाई जाती है जांच
भारतीय समाज में अनचाहे रुप से पैदा हुई लड़कियों को मारने की प्रथा सदियों से है। भले ही सरकार एक क़ानून पारित कर भ्रूण परीक्षण पर प्रतिबंध चुकी है लेकिन इस क़ानून पर अमल बहुत कम किया जा रहा है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि जिन परिवारों में पहली सन्तान लड़की होती है उनमें से ज़्यादातर परिवार पैदा होने से पहले दूसरे बच्चे की लिंग जांच करवा लेते हैं और लड़की होने पर उसे मरवा देते हैं, लेकिन अगर पहली सन्तान बेटा है तो दूसरी सन्तान के लिंग अनुपात में गिरावट नहीं देखी गई। लड़कियों को जन्म से पहले मारने की प्रथा धीरे-धीरे उन जगहों पर भी प्रचलित हो रही है जो अब तक इससे बचे हुए थे।
प्रत्येक नागरिक को आगे आने की जरूरत
भारत में पिछले चार दशकों से सात साल से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है। भारत के सबसे समृध्द राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। यह एक चिंताजनक विषय है कि देश के कुछ समृध्द राज्याें में बालिका भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति अधिक पाई जा रही है। ऐसे में बालिकों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध देश के प्रत्येक नागरिक को आगे आने की जरूरत है। बालिकाओं के सशक्तिकरण में हर प्रकार का सहयोग देने की जरूरत है। इस काम की शुरूआत घर से होनी चाहिए।
यूनीसेफ की रिपोर्ट चिंताजनक
दुख की बात तो यह है कि हमारी आर्थिक समृध्दि और शिक्षा के बढते स्तर का इस समस्या पर कोई प्रभाव पड़ता नहीं दिख रहा है। वर्तमान समय में इस समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक जागरूकता बढाने के लिए साथ-साथ प्रसव से पूर्व तकनीकी जांच अधिनियम को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। यूनीसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सुनियोजित लिंग-भेद के कारण भारत की जनसंख्या से लगभग 5 करोड़ लड़कियां एवं महिलाएं गायब हैं। विश्व के अधिकतर देशों में, प्रति 100 पुरुषों के पीछे लगभग 105 स्त्रियों का जन्म होता है।भारत की जनसंख्या में प्रति 100 पुरुषों के पीछे 93 से कम स्त्रियां हैं।
क्या है भ्रूण हत्या को लेकर कानून
भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत प्रावधान : भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है: ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’। इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है।