देश के लिए मिसाल बनीं सिमरन: आंखों की रोशनी और चलने की दिक्कत के बावजूद पैरालंपिक में जीता मेडल

punjabkesari.in Monday, Jul 28, 2025 - 09:33 AM (IST)

 नारी डेस्क: कहते हैं कि सच्ची मेहनत और हौसला कभी हार नहीं मानते। इसका बेहतरीन उदाहरण बनकर उभरी हैं उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की सिमरन शर्मा, जिन्होंने ना केवल अपनी शारीरिक चुनौतियों को हराया, बल्कि पेरिस पैरालंपिक 2024 में शानदार प्रदर्शन कर देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल भी जीता। आंखों की रोशनी ना होने और चलने में कठिनाई जैसी मुश्किलों के बावजूद सिमरन ने साबित कर दिया कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा मंज़िल का रास्ता नहीं रोक सकती।

समय से पहले हुआ जन्म, खो दी आंखों की रोशनी

सिमरन का जन्म 1999 में गाजियाबाद में हुआ था। वो सिर्फ 6.5 महीने की उम्र में ही जन्मी थीं, जबकि आमतौर पर बच्चा 9 महीने में जन्म लेता है। समय से पहले जन्म होने के कारण उन्हें 6 महीने तक इनकुबेटर में रखा गया। इस दौरान उनकी आंखों की रोशनी चली गई। साथ ही, चलने में भी उन्हें काफी दिक्कत होती थी।

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पड़ोसियों ने उड़ाया मजाक

सिमरन की हालत देखकर लोग उनका मजाक उड़ाते थे। उनके चलने के तरीके पर पड़ोसी ताने मारते थे, लेकिन सिमरन ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी हिस्सा लेना शुरू किया और धीरे-धीरे अपनी एक अलग पहचान बनाई।

आर्थिक तंगी के बीच जारी रखी पढ़ाई और खेल

सिमरन ने मोदीनगर के रुकमणि मोदी महिला इंटर कॉलेज में एडमिशन लिया। यहीं से उनका झुकाव एथलेटिक्स की तरफ बढ़ा। उन्होंने इंटर-कॉलेज प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू किया और कई मेडल भी जीते। हालांकि, पैसों की कमी की वजह से उन्हें ट्रेनिंग की अच्छी सुविधा नहीं मिल पाती थी।

कोच से मिली नई राह फिर शादी भी की

साल 2015 में सिमरन की मुलाकात गजेंद्र सिंह से हुई, जो लखनऊ के खंजरपुर के रहने वाले हैं। गजेंद्र ने पहली बार में ही सिमरन के टैलेंट को पहचान लिया। वे खुद एक अच्छे कोच थे। उन्होंने सिमरन को मानसिक और आर्थिक दोनों रूप से सहयोग दिया और खुद की देखरेख में ट्रेनिंग देना शुरू कर दी। धीरे-धीरे दोनों का रिश्ता गहरा हुआ और बाद में सिमरन और गजेंद्र ने शादी कर ली। हालांकि, समाज ने इस शादी पर भी ताने मारे, लेकिन दोनों ने इन बातों को नजरअंदाज किया और सिर्फ अपने सपनों पर ध्यान दिया।

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पेरिस में रचा इतिहास

अब सिमरन ने पेरिस पैरालंपिक 2024 में महिला 200 मीटर की T12 रेस को 24.75 सेकंड में पूरा कर तीसरा स्थान हासिल किया। यह उनका पर्सनल बेस्ट भी रहा और भारत के लिए 28वां पदक।

संघर्षों से सफलता तक का सफर

आंखों की रोशनी नहीं थी

चलने में दिक्कत थी

पिता का देहांत हुआ

आर्थिक तंगी झेली

समाज से ताने सुने

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लेकिन इन सबके बावजूद सिमरन ने हार नहीं मानी और आज भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है।

साल 2024 की पैरालंपिक हीरो  सिमरन शर्मा को सलाम उनकी कहानी हम सबके लिए एक प्रेरणा है कि अगर जज़्बा हो, तो कोई भी बाधा रास्ता नहीं रोक सकती।  


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Content Editor

Priya Yadav

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