Inspiring: बहरेपन को बनाया अपनी ताकत, जीता ''मिस वर्ल्ड डेफ'' का खिताब
punjabkesari.in Saturday, Aug 01, 2020 - 06:56 PM (IST)
कुछ पाने के लिए मन में सच्ची लग्न हो तो पूरी कायनात आपको उससे मिलवाने में लग जाती है। मेहनत इतनी ताकतवर होती है कि वह अपने सामने असफलता को टिकने नहीं देती और इस बात को साबित किया है विदिशा बालियान ने जिसनें अपनी जिंदगी में कईं मुश्किलें तो देखी लेकिन उसकी जिंदगी में हार नाम का शब्द नहीं था। विदिशा बालियान बाकियों की तरह सुन नहीं सकती लेकिन विदिशा ने इसे अपनी कमजोरी नहीं बल्कि इसे अपनी ताकत बनाया और आज वह अपनी इसी चीज से जानी जाती हैं। विदिशा दाएं तरफ के कान से 100 प्रतिशत व बाएं कान से 90 प्रतिशत सुन नही सकती हैं लेकिन वह पूरी तरह से सुन नही सकती है लेकिन लिप रीड और बात कर सकती हैं।
वह मिस वर्ल्ड डेफ का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय हैं वहीं आपको बता दें कि इससे पहले वह डेफ ओलिंपिक्स में भी देश का नाम रोशन कर चुकी हैं। अपना और अपने देश का नाम रोशन करने वाली विदिशा की कहानी भी बहुत संघर्ष वाली रही है। विदिशा चाहे सुन नहीं सकती लेकिन इसी के बलबूते पर उन्होंने अपनी पहचान बनाई और उनके आत्मविश्वास को हम सब सलाम करते हैं।
जैसे कि हमने आपको बताया कि विदिशा सुन नहीं सकती और इस बात का पता उन्हें तब चला जब वह 6 साल की थीं लेकिन बावजूद विदिशा को अलग स्कूल पढ़ाने के उनके माता पिता ने उन्हें बाकी बच्चों की तरह ही स्कूल में पढाया ताकि वह खुद को अकेली और अलग महसूस न करें। विदिशा के माता पिता के अनुसार उसे अलग न पढ़ाने का मुख्य कारण था कि वह फिर आम लोगों के बीच घुल मिल नहीं पाएंगी।
हालांकि विदिशा को आम स्कूल में तो डाल दिया गया और टीचर जो लिखाती थी वह लिख भी लेती थी लेकिन जब क्लास में बात टीचर के समझाने की होती तो विदिशा को कुछ सुनाई नहीं देता लेकिन इस समय में भी विदिशा के माता पिता उनके साथ हमेशा खड़े रहे।
विदिशा के माता पिता हमेशा यही चाहते थे कि उसकी यह उर्जा किसी सही जगह पर लगे और ऐसे में विदिशा के परिवार वालों ने उनके हाथ रैकेट थमा दिया ताकि वह खुद को किसी से कम न समझे और अपना फोक्स किसी काम पर करें परिवार वालों की सोच पर विदिशा ने सफलता भी पाई और इस लाइन में आते ही कितने ही खिताब अपने नाम करवाए। विदिशा ने नैशनल गेम्स में दो सिल्वर मेडल जीते और फिर 2017 में विदिशा को समर डेफओलिंपिक्स में भाग लेने का मौका मिला।
इसके बाद विदिशा के सामने एक और बड़ी मुसीबत आई। स्पोर्टस में अच्छा खासा नाम कमा रही विदिशा को यह खेल भी छोड़ना पड़ा क्योंकि डॉक्टर्स के अनुसार वह रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी स्लिप डिस्क से ग्रस्त थी और इसी वजह से उन्हें यह खेल छोड़ना पड़ा ।
..कहते हैं न कि भगवान जो करता है अच्छे के लिए करता है और विदिशा के साथ भी ऐसा ही हुआ। खेल से निकल कर चाहे उसे नाकामी मिली हो लेकिन भगवान ने विदिशा के लिए इससे भी अच्छा सोचा था। एक बार विदिशा को ब्यूटी कॉन्टेस्ट मिस डेफ इंडिया के बारे में पता चला और वह इस में हिस्से लेना चाहती थी .
8 महीने इस टाइटल के लिए खुद को तैयार करने वाली विदिशा ने जब अपनी मां को यह बताया तो एक बार तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ और अपनी कड़ी मेहनत और लगन से विदिशा ने यह टाइटल जीता और बाद में विश्व खिताब भी अपनी लाइफ में ऊचाइयों को छुने वाली विदिशा चाहती हैं कि वह बधिर बच्चों के लिए एक स्कूल खोलें।
विदिशा का कहना है मुझे विश्वास हासिल करने और अपने व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रेरित किया गया। इस मंच के माध्यम से, मैं बधिर समुदाय को उनकी प्रतिभा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करना चाहता हूं, और इस बात से परेशान नहीं होना चाहिए कि उनके पास क्या नहीं है।