Good News! यूपी के डाॅक्टरों ने खोज निकाली कैंसर की दवा, नहीं पड़ेगी कीमोथेरेपी की जरूरत

punjabkesari.in Friday, Mar 28, 2025 - 06:18 PM (IST)

नारी डेस्क: कैंसर - डराने के लिए नाम ही काफी है। दुनियाभर में मौत के लिए दूसरा सबसे प्रमुख कारण कैंसर है। कैंसर सबसे घातक बीमारियों में से एक हैं और इसके सुलभ इलाज के लिए नई-नई रिसर्च जारी रहती हैं। हाल ही में शोधकर्ताओं को मस्तिष्क के कैंसर से बचने का इलाज मिल गया है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के शोधकर्ताओं ने ब्रेन कैंसर के इलाज के लिए एक नई दवा विकसित की है। यह दवा एएमयू के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन डिपार्टमेंट के इंटरडिसिप्लिनरी ब्रेन रिसर्च सेंटर में तैयार की गई है। शोधकर्ताओं ने महीनों की मेहनत के बाद इस दवा को तैयार किया और इस पर भारतीय पेटेंट भी प्राप्त किया है।

पहले चरण के ट्रायल में सफलता

कई रिपोर्ट्स के अनुसार इस दवा का पहला चरण का ट्रायल पूरी तरह से सफल रहा है। इसके परिणाम बहुत सकारात्मक रहे हैं और शोधकर्ताओं ने इसे लेकर बेहद उत्साहित हैं। प्रारंभिक परीक्षणों में इस दवा ने बेहतरीन रिजल्ट दिए, जिसके बाद इसके आगे के परीक्षणों पर काम तेज़ी से चल रहा है।

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नई दवा को ‘एआरएसएच-क्यू’ नाम दिया गया है। इस यौगिक को ब्रेन कैंसर की कोशिकाओं को रोकने में असाधारण क्षमता दिखाते हुए पाया गया है। खासकर उन कोशिकाओं को, जो रेडिएशन और कीमोथेरेपी के प्रति प्रतिरोधक होती हैं। यह दवा ब्रेन कैंसर को दोबारा होने से रोकने और मृत्यु दर को कम करने में बेहद प्रभावी साबित हो रही है।

कीमोथेरेपी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी

इस दवा की विशेषता यह है कि इससे ब्रेन कैंसर का इलाज करने के लिए अब कीमोथेरेपी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इससे ब्रेन कैंसर के मरीजों के इलाज में एक नई क्रांति आ सकती है। डॉ. मेहदी हयात शाही ने बताया कि यह यौगिक विशेष रूप से उन स्टेम कोशिकाओं के खिलाफ प्रभावी है, जो रेडिएशन और कीमोथेरेपी के प्रतिरोधक होते हैं।

एएमयू के डॉ. मेहदी हयात शाही ने जानकारी देते हुए बताया कि यह यौगिक जेएन मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन डिपार्टमेंट के ब्रेन रिसर्च सेंटर और एप्लाइड केमिस्ट्री विभाग ने मिलकर तैयार किया है। इसे गहरे शोध और परीक्षणों के बाद बनाया गया है।

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शोधकर्ता 2005 से कर रहे थे ब्रेन कैंसर पर शोध

ब्रेन कैंसर पर शोध करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ. मेहदी हयात शाही 2005 से इस दिशा में काम कर रहे थे। उनकी टीम में डॉ. मुशीर अहमद, आरिफ अली, मो. मुजम्मिल, बासरी और स्वालीह पी. शामिल हैं। शोधकर्ताओं का उद्देश्य एक ऐसी दवा विकसित करना था, जो मौजूदा कीमोथेरेपी दवा, टैमोजोलोमाइड से अधिक प्रभावी हो।

2005 से ब्रेन कैंसर की एक नई दवा पर काम चल रहा है। इसके लिए अमेरिका से ब्रेन सेल (मानव ब्रेन नहीं) मंगवाकर उस पर परीक्षण शुरू किया गया था। इस शोध में सोनिक हेजहोग सेल सिग्नलिंग पाथवे पर ध्यान दिया गया, जो ब्रेन कैंसर और अन्य खतरनाक बीमारियों में स्टेम कोशिकाओं की भूमिका को समझने में मदद करता है। इसके बाद “एआरएसएच-क्यू” नामक दवा बनाई गई, जिसके शुरुआती परीक्षणों में अच्छे परिणाम मिले हैं। अब इस दवा का चूहों पर क्लीनिकल ट्रायल होगा, और फिर मानव पर इसका परीक्षण किया जाएगा। - डॉ. मेहंदी हयात शाही, शोधकर्ता, इंटरडिसिप्लिनरी ब्रेन रिसर्च सेंटर, एएमयू।

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दूसरे चरण का ट्रायल पशुओं पर होगा

पहले चरण के ट्रायल में दवा के बेहतरीन परिणाम सामने आए हैं। अब दूसरे चरण में इस दवा का ट्रायल पशुओं पर किया जाएगा। इस चरण में पहले पशुओं में ब्रेन कैंसर की कोशिकाओं को विकसित किया जाएगा और फिर इस दवा का प्रयोग किया जाएगा। अगर यह चरण सफल होता है तो दवा को तीसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल के लिए भेजा जाएगा। तीसरे चरण के सफल होने के बाद इसे आधिकारिक अनुमति मिल जाएगी।

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मरीजों पर इस्तेमाल के लिए अंतिम अनुमति

तीसरे चरण के ट्रायल के सफल होने के बाद, मरीजों के लिए इस दवा का इस्तेमाल किया जा सकेगा। मरीजों से अंडरटेकिंग लेकर ही उन्हें यह दवा दी जाएगी। यह शोध और दवा की खोज भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

डिस्कलेमर: यह लेख केवल जानकारी देने के उद्देश्य से है, किसी भी चिकित्सा उपचार से पहले विशेषज्ञ से सलाह लें।


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Content Editor

PRARTHNA SHARMA

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