किंकरी देवी: जल, जंगल, जमीन के लिए अकेले पूरी दुनिया से भिड़ गई थी ये महिला
punjabkesari.in Tuesday, Jan 18, 2022 - 12:59 PM (IST)
'न थी कभी अबला नारी, सदियों तक रहेगा उनका यह संघर्ष जारी'... ये कहावत उन लोगों के लिए जो महिलाओं को पुरुषों से कम समझते हैं। महिलाओं की शक्ति को कम आंकने वालों को एक बार किंकरी देवी की कहानी जरूर पढ़नी चाहिए। क्योंकि वह एक ऐसी महिला थी जिन्होंने अपनी मिट्टी और पर्यावरण को बचाने के लिए हर हद पार कर दी थी
मरने से पहले सीखा हस्ताक्षर करना
एक भारतीय कार्यकर्ता और पर्यावरणवि किंकरी देवी को हिमाचल प्रदेश में अवैध खनन के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए जाना जाता है । वह कभी नहीं जानती थी कि कैसे पढ़ना या लिखना है और अपनी मृत्यु से कुछ साल पहले उन्होंने अपने नाम पर हस्ताक्षर करना भी सीखा। किंकरी देवी ने वो कर दिखाया जो पढ़े-लिखे भी करने की नहीं सोचते थे।
22 साल की उम्र में हो गई थी विधवा
हिमाचल के घान्टो गांव में जन्मीं किंकरी देवी का कम उम्र में ही विवाह हो गया था। 22 साल की उम्र में विधवा होने के चलते उन्हे मजबूरी में मजदूरी करनी पड़ी। अनपढ़ होने के बावजूद भी उन्होने कई लोगो को पर्यवारण के प्रति जागरूक किया और उन्हें अनियंत्रित खनन के दुष्परिणाम के प्रति सचेत किया। 1985 में पहली बार उन्होंने पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर आवाज उठाई।
1985 में उठाई आवाज
देहरादून की खदानों के बंद हो जाने के बाद हिमाचल के सिरमौर में चूना पत्थर का काम फैला। नदियों में खनन के कारण नदियां मैली होने लगीं। जल-जंगल-जमीन को भारी नुकसान पहुंचाया जाने लगा। तब किंकरी देवी ने पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में लोगों को बताया। उनकी मेहनत का ही प्रयास था कि 1987 में पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड नाम की संस्था की सहायता से शिमला हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई और 48 खदान मालिकों को किकंरी अदालत तक खींच लाने में सफल रहीं।
2007 में दुनिया को कहा अलविदा
किंकरी ने शिमला में कोर्ट के सामने 19 दिन की भूख हड़ताल भी की। आखिर किंकरी की जीत हुई और 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। इाी साल उन्हें बीजिंग के अन्तराष्ट्रीय महिला सम्मलेन में सम्मानित किया गया, जहां उन्होंने हिलेरी क्लिंटन के साथ उद्घाटन का दीप प्रज्वलित किया। 2001 में प्रधानमंत्री ने स्त्री शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार और रानी झांसी उपाधि से भी समान्नित किया। 30 दिसंबर, 2007 में किंकरी देवी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके गांव संगड़ाह उनके नाम पर एक मेमोरियल पार्क बनाया गया है।