आखिरी बार कृष्ण ने राधा के लिए बजाई थी बांसुरी, फिर इसे तोड़कर कर दिया था अपने से अलग

punjabkesari.in Sunday, Aug 25, 2024 - 08:16 PM (IST)

बांसुरी भगवान कृष्ण की प्रेममयी और करुणामयी भावनाओं का प्रतीक है। जब कृष्ण बांसुरी बजाते थे, तो गोपियों और ग्वाल-बालों के हृदय प्रेम और भक्ति से भर जाते थे। बांसुरी की मधुर ध्वनि उनके अलौकिक प्रेम का संदेश देती है। हालांकि एक वक्त ऐसा भी आया था जब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी प्रिय बांसुरी तो तोड़ दिया था और इसके बाद कभी उसे हाथ नहीं लगाया। चलिए जानते हैं इस मार्मिक कथा के बारे में 

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 श्रीकृष्ण ने की थी रूकमनी से शादी

प्रचलित कहानी के मुताबिक कंस वध के बाद श्रीकृष्ण द्वारका बस गए और रूकमनी से शादी कर ली। उन्होंने अपने पति धर्म को बखूबी निभाया लेकिन उनके मन में हमेशा राधा का ही वास रहा। सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वह द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण की रुक्मिनी और सत्यभामा से विवाह के बारे में सुना लेकिन वह दुखी नहीं हुईं।

कृष्ण के महल में रहती थी राधा

 जब कृष्ण ने राधा को देखा तो बहुत प्रसन्न हुए। राधा जी को कान्हा की नगरी द्वारिका में कोई नहीं पहचानता था। राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया।  राधा दिन भर महल में रहती थीं और महल से जुड़े कार्य देखती थीं। मौका मिलते ही वह कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं, लेकिन महल में राधा ने श्रीकृष्ण के साथ पहले की तरह का आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थीं इसलिए राधा ने महल से दूर जाना तय किया। 

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राधा ने आखिरी बार बांसुरी बजाने की जताई  थी इच्छा 

धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की आवश्यकता पड़ी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। आखिरी मिलन पर श्रीकृष्ण ने राधा से कुछ मांगने के लिए कहा। तब राधा ने उनसे आखिरी बार बांसुरी बजाने की इच्छा जताई। श्रीकृष्ण की बांसुरी की सुरीली धुन सुनते-सुनते ही राधा ने अपना शरीर त्याग दिया।

राधा का वियोग सह नही पाए कृष्णा

 कान्हा राधा के आध्यात्मिक रूप और कृष्ण में विलिन होने तक बांसुरी बजाते रहे। भगवान राधा-श्रीकृष्ण का प्रेम अमर है लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण राधा का वियोग सह ना पाए और उन्होंने प्रेम के प्रतीक बांसुरी को तोड़कर फेंक दिया। इसके बाद उन्होंने बांसुरी या कोई भी वादक यंत्र नहीं बजाया।

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माया का प्रतीक है बांसुरी

 कृष्ण की बांसुरी माया (भ्रम) का प्रतीक है। जब कृष्ण बांसुरी बजाते थे, तो सभी गोपियां और गोप बालक उनके प्रति मोहित हो जाते थे और संसारिक बंधनों को भूल जाते थे। यह माया के प्रभाव को दर्शाता है कि कैसे कृष्ण ने अपने भक्तों को अपनी ओर आकर्षित किया।
बांसुरी भगवान कृष्ण और उनके भक्तों के बीच संवाद का एक माध्यम भी थी। बांसुरी की ध्वनि उनके प्रेम और आशीर्वाद का संदेश देती है, जो भक्तों को मार्गदर्शन और प्रेरणा प्रदान करती है।
 


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vasudha

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