सुष्मिता सेन ने पूरे होश में रहकर कराई थी हार्ट अटैक के बाद सर्जरी, क्या ये सुरक्षित था?
punjabkesari.in Wednesday, Nov 19, 2025 - 01:23 PM (IST)
बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री और पूर्व यूनिवर्स सुष्मिता सेन आज 49 वर्ष की हो गयी। सेन हिंदी फिल्म उद्योग की सबसे प्रेरणादायक हस्तियों में से एक हैं। रेनी और अलीसा सेन की सिंगल मदर सुष्मिता ने हमेशा उनके प्रशंसकों को अपने सपनों की ओर कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। हमें ये ता मालूम है कि कुछ साल पहले एक्ट्रेस ने हार्ट अटैक का सामना किया था, हालांकि सर्जरी के दौरान उन्होंने एनेस्थीसिया (बहोशी की दवाई)लेने से साफ मना कर दिया। आइए जानते हैं उन्होंने ऐसा क्यों किया।

सुष्मिता ने लिया था ये बड़ा फैसला
सुष्मिता का कहना था कि वह पागलपन “होश खोने” की स्थिति में नहीं जाना चाहती थीं। उन्होंने अपने डॉक्टरों से कहा कि वे उनको सुना महसूस करें, और हो सके तो दर्द को कम न करें ताकि वह जान सकें कि ऑपरेशन के दौरान क्या हो रहा है। उन्हें नियंत्रण का एहसास बहुत जरूरी था “Control freak” होने के नाते, वह बेहोश हो जाना पसंद नहीं करती थीं। दिल का दौरा आते समय और सर्जरी के दौरान होश में रहने का मतलब यह था कि उन्हें पता था कि वह जिंदगी और मौत के बीच थी। वे मानती हैं कि उनका बचना कोई संयोग नहीं था, बल्कि उनकी ज़िंदगी में अभी और काम करना बाक़ी है।
बिना एनेस्थीसिया के सर्जरी हाेती है सुरक्षित
हार्ट अटैक के बाद की सर्जरी बिना जनरल एनेस्थीसिया (पूरी तरह बेहोश करने वाली दवाई) के करवाना अक्सर बिल्कुल सुरक्षित होता है बशर्ते सही तरीके से और डॉक्टर की निगरानी में किया जाए। एंजियोप्लास्टी/स्टेंट जैसी प्रक्रियाएं आमतौर पर लोकल एनेस्थीसिया (जहां सिर्फ हाथ/जांघ का हिस्सा सुन्न किया जाता है) हल्की सेडेटिव दवाई (थोड़ी बेचैनी कम करने के लिए) के साथ की जाती हैं। इसमें मरीज पूरी तरह होश में होता है और डॉक्टर से बात भी कर सकता है। यह बिल्कुल सामान्य और सुरक्षित माना जाता है।

तो फिर खतरनाक कब हो सकता है?
पूरा का पूरा "बिना किसी भी दर्दनिवारक या सुन्न करने वाली दवा के" करवाना सामान्य नहीं है। यह तभी सुरक्षित हो सकता है जब मरीज मानसिक रूप से बहुत शांत हो, दर्द सहन कर सके, डॉक्टर टीम पूरी तरह कंट्रोल में हो, प्रक्रिया बहुत जटिल न हो, ब्लड प्रेशर/पल्स स्थिर हो। हर किसी के लिए यह तरीका सुरक्षित नहीं होता। हार्ट सर्जरी में मरीज को होश में रखने से हार्ट की रियल-टाइम निगरानी बेहतर होती है , जनरल एनेस्थीसिया के जोखिम कम होते हैं, रिकवरी तेज होती है और सांस लेने में कम जटिलताएं होती है।

