मां के दिए 25 रुपये से खड़ी कर दी 7,000 करोड़ की कंपनी, जानिए मोहन सिंह ओबेरॉय की Success Story
punjabkesari.in Tuesday, Sep 13, 2022 - 10:57 AM (IST)
सफल होने के लिए साहस और इच्छाशक्ति का होना जरुरी है। कई बार असफलताएं भी व्यक्ति को परेशान कर देती हैं। लेकिन कठिन परिश्रम करके और हार न मान कर हर कोई जीत को संभव किया जा सकता है। यह बात ओबेरॉय होटल्स एंड रिसॉर्ट्स के संस्थापक और अध्यक्ष राय बहादुर मोहन सिंह ओबेरॉय ने साबित की है। उन्होंने अपने कठिन परिश्रम के साथ इतना बड़ा होटल किया है। देश में होटलों का दूसरा सबसे बड़ा साम्राज्य खड़ा करने वाले मोहन सिंह ओबेरॉय ने सिर्फ 25 रुपये से कारोबार की शुरुआत की थी। तो चलिए आपको बताते हैं कि उन्होंने सिर्फ 25 रुपये से 7,000 करोड़ की कंपनी खड़ी की...
मां के दिए 25 रुपये से की थी शुरुआत
मोहन सिंह ओबेरॉय को सफलता ऐसे नहीं मिली। उन्होंने इतने बड़े कारोबार जगत के दिग्गजों में शुमार होने से पहले कई सारी असफलताओं का सामना किया है। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने भारत के कई आधुनिक फाइव स्टार होटल शुरु किए हैं। यह जानकर आपको काफी हैरानी होगी कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत सिर्फ 25 रुपये में की थी।
एक फैक्ट्री में मिले काम से शुरु किया करियर
मोहन सिंह का जन्म पाकिस्तान के झेलम जिले में स्थित भनाउ गांव में हुआ था। वह एक सिख परिवर में जन्मे थे। बचपन से ही उनका जीवन संघर्षों से भरा था। वह सिर्फ 6 महीने के ही थे, जब उनके पिता का देहांत हो गया । इसके बाद उन्होंने अपने पढ़ाई बीच में छोड़कर ही लाहौर में स्थित एक जूते की फैक्ट्री में काम करना शुरु कर दिया। लेकिन साल के बाद 1 918 में एक सांप्रदायिक हिंसा के कारण जूते की फैक्ट्री बंद हो गई। फैक्ट्री बंद होने के बाद मोहन बेरोजगार हो गए। जिसके कुछ समय बाद ही उनकी शादी हो गई। शादी के बाद वह अपने ससुराल में रहकर ही नौकरी की तलाश कर रहे थे। लेकिन जब उन्हें नौकरी नहीं मिली वह वापिस अपनी मां के पास गांव आ गए। जब वह गांव आए तो उनकी मां ने उन्हें 25 रुपये देकर नौकरी खोजने के लिए घर से जाने को कह दिया।
होटल में मिली एक क्लर्क की नौकरी
इसके बाद मोहन सिर्फ 25 रुपये लेकर घर से निकल गए। लेकिन उस समय कोरोना जैसी एक महामारी स्पेनिश प्लेग ने पूरी दुनिया में अपना प्रकोप फैलाया था। लेकिन मोहन ने हार नहीं मानी। काफी प्रयास करने के बाद मोहन को नौकरी मिल गई। साल 1922 में उन्हें शिमला के एक होटल में नौकरी मिली। इस नौकरी के बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बीवी के गहने गिरवी रखकर खरीदा होटल
साल 1934 में मोहन ने अपनी पहली प्रॉपर्टी से द क्लार्क्स होटल खरीदा। होटल खरीदने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के सारे जेवर और गहने भी गिरवी रख दिए थे।
हैजा महामारी से मिला दूसरा मौका
मेहनत और सच्ची लगन से किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है। इस बात को मोहन ने अपने दृढ़ निश्चय के साथ साबित कर दिखाया था। मोहन ने अपने होटल के जरिए सिर्फ 5 साल में ही सारा कर्जा उतार दिया था। कलकत्ता में फैली हुई हैजा की महामारी ने मोहन को दूसरा सुनहरी मौका दिया। महामारी के कारण होटलों को काफी नुकसान हो रहा था, जिसके कारण ग्रैंड होटल को बेचा जा रहा था। 500 कमरे वाले इस ग्रैंड होटल को मोहन ने किराया पर ले लिया।
कई अवॉर्डस से नवाजे जा चुके थे मोहन
ब्रिटिश सरकार के द्वारा मोहन को उनकी सेवाओं के लिए 1943 में उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। इसके बाद मोहन ने कई सारी सुर्खियां हासिल की और अमेरिकन सोसाइटी ऑफ ट्रैवल एजेंट्स द्वारा हॉल ऑफ फेम में प्रवेश और इंटरनेशनल होटल एसोसिएशन, न्यूयॉर्क के द्वारा मैन ऑफ द वर्ल्ड का पुरस्कार हासिल किया। इन सारे पुरस्कारों के अलावा भी मोहन को कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। साल 2001 में उन्हें पद्म भूषण मिला। कई सारे उतार-चढ़ाव के बाद मोहन का 3 मई 2002 में निधन हो गया था।
इन देशों में फैला है कारोबार
मोहन ने अपनी कड़ी मेहनत और लग्न से इस होटल को भी चला लिया। इसके बाद मोहन का कारोबार भारती होटल व्यवस्याओं का दूसरा सबसे बड़ा साम्राज्य बन गया था। आज कई देशों में मोहन का साम्राज्य फैला हुआ है। मोहन के पास आज 31 लग्जरी होटल हैं। इसके अलावा पूरी दुनिया में 12 हजार से भी ज्यादा लोग मोहन की कंपनी में काम कर रहे हैं। ओबेरॉय समूह का कारोबार आज 7 करोड़ से भी ज्यादा का है। मोहन का भारतीय होटल उद्योगों का जनक भी कहते हैं।