स्मॉग का असर: सिर्फ हवा नहीं, महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी वार

punjabkesari.in Monday, Nov 10, 2025 - 03:22 PM (IST)

 नारी डेस्क: सर्दियों में दिल्ली और नॉर्थ इंडिया की हवा हर साल ज़हर बन जाती है। AQI 400 के पार जाता है और धुंध इतनी गहरी होती है कि दिन भी धुंधले लगते हैं। पर क्या आप जानती हैं कि ये प्रदूषण सिर्फ़ फेफड़ों के लिए नहीं, बल्कि महिलाओं के हार्मोन और हड्डियों के लिए भी खतरनाक है? जब महिलाएं पेरिमेनोपॉज़ या मेनोपॉज़ के दौर से गुज़रती हैं, तब शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर कम हो जाता है। यह वही हार्मोन है जो हमारी हड्डियों को मजबूत रखता है और शरीर में सूजन को नियंत्रित करता है। अब जब हवा में ज़हरीले कण (PM2.5, NOx आदि) जाते हैं, तो यह एस्ट्रोजन की कमी के असर को और बढ़ा देते हैं  यानी कमज़ोर हड्डियां, जोड़ों का दर्द, थकान और चिड़चिड़ापन। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि प्रदूषण हड्डियों के कोशिकाओं (osteoblasts) को नुकसान पहुंचाता है और विटामिन D के स्तर को कम करता है क्योंकि सर्दियों में धूप भी कम मिलती है। यानी हवा ज़हरीली, धूप कम, और शरीर में सूजन ज़्यादा यह ट्रिपल अटैक है मिडल एज महिलाओं के लिए।

क्या करें

 घर में HEPA फ़िल्टर लगाएं, N95 मास्क पहनें, दिन में कुछ मिनट धूप लें, और आहार में तिल, आंवला, हल्दी और दूध जैसे एंटीऑक्सीडेंट शामिल करें। “प्रदूषण का असर सिर्फ़ सांसों पर नहीं, हार्मोन और हड्डियों पर भी पड़ता है। यह साइलेंट हेल्थ क्राइसिस है  जिसे महिलाएं अक्सर अनदेखा कर देती हैं।”  

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 Mind & Body: सर्दियों में डिप्रेशन, मेनोपॉज़ और हार्मोन का गहरा रिश्ता

 सर्दियों में अक्सर मन भारी हो जाता है  सूरज कम निकलता है, दिन छोटे लगते हैं और मूड डाउन महसूस होता है। कई बार महिलाएं इसे “बस थकान या मौसम का असर” मानकर छोड़ देती हैं। लेकिन हक़ीक़त में यह सर्दियों का डिप्रेशन (Seasonal Affective Disorder) और हार्मोनल बदलाव का मेल होता है। जब महिलाएं 40s में पहुंचती हैं, तो शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर में उतार-चढ़ाव शुरू होता है। ये वही हार्मोन हैं जो दिमाग़ में “हैप्पी केमिकल्स”  यानी सेरोटोनिन और डोपामिन  को प्रभावित करते हैं। नतीजा? मूड स्विंग्स, थकान, नींद की कमी और कभी-कभी बिना वजह उदासी।सर्दियों की ठंडी हवा और कम रोशनी इस स्थिति को और बढ़ा देती है क्योंकि सूरज की रोशनी ही सेरोटोनिन को एक्टिव रखती है।  यानी मेनोपॉज़ और विंटर का कॉम्बो कई बार “इमोशनल क्लाउड” बना देता है।

क्या मदद कर सकता है

 सुबह की धूप में 15 मिनट बैठना, हॉट ऑयल मसाज, हल्का योग या वॉक, और warm हर्बल ड्रिंक्स जैसे अश्वगंधा या अदरक की चाय।  पौष्टिक आहार, संतुलित नींद, और कुछ “me-time” आपके हार्मोन और मूड दोनों को रीसेट कर सकते हैं। “मेनोपॉज़ और विंटर, दोनों ही ट्रांज़िशन का समय हैं  और अगर मन को गर्माहट मिले, तो शरीर खुद ही संतुलन पा लेता है।”  

Controversial but True:क्या सर्दियों के कपड़ों में छिपे केमिकल्स आपके हार्मोन बिगाड़ रहे हैं? 

हर साल सर्दियों में हम नई जैकेट, इनर और ऊनी कपड़े खरीदते हैं।  लेकिन क्या आपने सोचा है कि इन कपड़ों में इस्तेमाल होने वाले डाई, फिनिशिंग एजेंट और वॉटर-रेसिस्टेंट कोटिंग्स में ऐसे केमिकल्स हो सकते हैं जो शरीर के हार्मोन सिस्टम को प्रभावित करते हैं? वैज्ञानिक इन्हें कहते हैं Endocrine Disruptors  यानी ऐसे रसायन जो एस्ट्रोजन की नकल करते हैं या उसकी क्रिया को रोकते हैं।  मेनोपॉज़ के दौरान जब शरीर का हार्मोनल संतुलन पहले ही संवेदनशील होता है, तब ये टॉक्सिन्स हॉट फ्लैश, स्किन ड्राइनेस, थकान और मूड स्विंग्स जैसे लक्षण और बढ़ा सकते हैं। कई बार ये रसायन कपड़ों के रंग या टेक्सचर को टिकाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं  खासकर सिंथेटिक फाइबर और “वॉटरप्रूफ” जैकेट्स में।  सर्दियों में जब हम ये कपड़े लंबे समय तक पहनते हैं, तो ये त्वचा के संपर्क में रहकर शरीर में धीरे-धीरे अवशोषित होते हैं।

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क्या करें

100% कॉटन, ऊन या बांस के कपड़े चुनें। नए कपड़े पहनने से पहले एक बार धोना ज़रूरी है। बहुत टाइट या लंबे समय तक सिंथेटिक कपड़े पहनने से बचें। घर की खिड़कियाँ खुली रखें ताकि वेंटिलेशन बना रहे। “जो कपड़े हमें गर्म रखते हैं, वही कभी-कभी शरीर के भीतर असंतुलन का कारण बन सकते हैं — जागरूकता ही सुरक्षा है।” 

 तमन्ना सिंह, मेनोपॉज़ कोच  

 


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Content Editor

Priya Yadav

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