हिंदू शादी में क्यों होते हैं 7 फेरे और 7 वचन? कैसे यह पति-पत्नी के रिश्ते को बनाता है अटूट!

punjabkesari.in Tuesday, Sep 09, 2025 - 11:04 AM (IST)

नारी डेस्क:  जब भी हिंदू विवाह की बात होती है, हमारे ज़हन में सबसे पहले लाल जोड़े में सजी दुल्हन और माला पहने दूल्हे की तस्वीर आती है। लेकिन भारतीय शादी की सबसे खास और पवित्र परंपरा है – सात फेरे और सात वचन, जो इस रिश्ते को न सिर्फ़ सामाजिक, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी जोड़ते हैं।

अग्नि को क्यों माना जाता है साक्षी?

भारतीय संस्कृति में अग्नि को पवित्र और साक्षी माना गया है। विवाह के दौरान दूल्हा-दुल्हन अग्नि के चारों ओर सात बार परिक्रमा (फेरे) करते हैं। हर फेरे के साथ एक वचन (संकल्प) लिया जाता है। ये वचन केवल एक-दूसरे से नहीं, बल्कि जीवन, परिवार और भविष्य की ज़िम्मेदारियों से भी जुड़ा होता है।

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क्या है सात फेरों का मतलब? (Saat Pheron Ka Arth)

हर फेरा पति-पत्नी के बीच एक विशेष वचन को दर्शाता है, जो शादी को मजबूत बनाता है। आइए जानते हैं इन सात फेरों का भाव और महत्व

 पहला फेरा – सुख-समृद्धि का वादा

पति-पत्नी वचन लेते हैं कि वे जीवन में अन्न, धन और समृद्धि के लिए मिलकर मेहनत करेंगे। पति घर की जिम्मेदारियां निभाएगा, और पत्नी उसमें पूरा साथ देगी।

दूसरा फेरा – सहारा और सुरक्षा का वादा

दोनों वादा करते हैं कि वे हर कठिन समय में एक-दूसरे का सहारा बनेंगे। पति पत्नी की रक्षा करेगा, और पत्नी हर सुख-दुख में साथ निभाएगी।

तीसरा फेरा – वफ़ादारी और निष्ठा

यह फेरा एक-दूसरे के प्रति पूरी वफ़ादारी और समर्पण का वादा करता है। पति-पत्नी अपने रिश्ते को पूरी निष्ठा से निभाने का संकल्प लेते हैं।

चौथा फेरा – प्यार और सम्मान

इस फेरे में दोनों एक-दूसरे के लिए प्यार, इज़्ज़त और समभाव बनाए रखने का वादा करते हैं — न केवल एक-दूसरे के लिए, बल्कि दोनों परिवारों के लिए भी।

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 पांचवां फेरा – संतान और परिवार की जिम्मेदारी

दंपत्ति अच्छे और संस्कारी बच्चों की कामना करते हैं और वादा करते हैं कि वे अपने बच्चों का पालन-पोषण पूरी ज़िम्मेदारी से करेंगे।

 छठा फेरा – स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना

पति-पत्नी एक-दूसरे के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्रार्थना करते हैं। वे जीवन के हर मोड़ पर एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा करते हैं।

सातवां फेरा – दोस्ती और जीवनभर साथ निभाने का वादा

अंतिम फेरे में दोनों एक-दूसरे के सच्चे दोस्त बनने और ज़िंदगीभर साथ निभाने का संकल्प लेते हैं। यही वचन इस रिश्ते को अटूट बनाता है।

क्यों खास हैं ये सात वचन?

ये सात वचन ही शादी की असली नींव होते हैं। इसमें प्यार, भरोसा, इज़्ज़त, दोस्ती, जिम्मेदारी और साथ चलने की भावना छिपी होती है। यही वजह है कि हिंदू विवाह को सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि सात जन्मों का बंधन कहा जाता है।

आधुनिकता के बावजूद बनी हुई है परंपरा की अहमियत

भले ही आज की शादियों में डिज़ाइनर लहंगे, डेस्टिनेशन वेडिंग और सोशल मीडिया की चमक हो, लेकिन सात फेरे और सात वचन की अहमियत आज भी उतनी ही पवित्र और जरूरी मानी जाती है।यह परंपरा न सिर्फ़ दो लोगों, बल्कि दो परिवारों को जोड़ने का माध्यम बनती है  जो आत्मिक स्तर तक जुड़ाव लाती है।

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हिंदू शादी में सात फेरे सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि दो आत्माओं का मिलन हैं। जब दूल्हा-दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर ये वचन लेते हैं, तो उनका रिश्ता सिर्फ क़ानूनी या सामाजिक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक बंधन बन जाता है  जो जीवनभर साथ चलने का संकल्प देता है।

(Disclaimer): यह लेख सामान्य धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित है। पाठक अपने विवेक से इसका पालन करें।
 


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Content Editor

Priya Yadav

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