कई सालों बाद कैंसर से बचाने वाले फैटी एसिड्स की हुई पहचान!

punjabkesari.in Thursday, Jan 19, 2017 - 05:35 PM (IST)

अमरिका एवं अन्य देशों में कैंसर पर लगातार हो रहे शोध और नई दवाओं की खोज के बावजूद न तो मरीजों की संख्या कम हो रही है और न ही मौतों का सिलसिला थम रहा है । इसके उलट सुरसा के मुंह की तरह इस‘महाकाल’का आकार बढ़ता जा रहा है लेकिन मेडिकल साइंस की इन असफलताओं के बीच नोबल पुरस्कार के लिए सात बार चयनित होने वाली डॉ़ जॉहाना बडविग की वैकल्पिक उपचार विधि से उम्मीदों के दीप जल रहे हैं और कई जिदगियां चहचहा रहीं हैं ।  


जर्मनी की‘पीपुल्स अगेंस्ट कैंसर’सोसायटी के संस्थापक एवं कैंसर के परंपरागत एवं वैकल्पिक चिकित्सा  पद्धति के क्षेेत्र में जाने-माने शोधकर्ता लोथर हरनाइसे ने यूनीवार्ता से आज विशेष बातचीत में‘बडविग थेरेपी‘के माध्यम से विश्वभर में कैंसर पर विजय के बारे में विस्तार से चर्चा की। 


उन्होंने कहा कि बर्लिन के महान जीव रसायन शास्त्री डॉ. ओटो वारबर्ग ने कैंसर पर उस समय विजय का शंखनाद किया था। जब उन्होंने इसके कारण की पहचान कर ली थी। उन्हें इस खोज के लिए वर्ष 1931 नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। डॉ वारबर्ग ने कई शोधों के माध्यम से यह साबित किया कि यदि कोशिकाओं में ऑक्सीजन की मात्रा को 48 घंटे के लिए 35 प्रतिशत कम कर दिया जाए तो वे कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। सामान्य कोशिकाएं अपनी जरुरतों के लिए ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऊर्जा बनाती है, लेकिन ऑक्सीजन के अभाव में कैंसर कोशिकाएं ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं।  


कैंसर पर कई पुस्तकें लिखने वाले लोथर हरनाइसे ने कहा कि यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें मालूम है कि जीवों मेें हो रही अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में शामिल कार्बनिक यौगिक एडीनोसीन ट्राइफास्फेट (एटीपी) में एडीनीन , राइबोस और तीन फास्फेट वर्ग होते हैं । इसका कोशिकाओं की विभिन्न क्रियाओं के लिए ऊर्जा बनाने में विशेष महत्व है। हमारे शरीर की ऊर्जा एटीपी है और ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज के एक अणु से 38 एटीपी बनते हैं लेकिन फर्मेंटेशन से सिर्फ दो एटीपी प्राप्त होते हैं। डॉ वारबर्ग और अन्य शोधकर्ता मान रहे थे कि कोशिका में ऑक्सीजन को आकर्षित करने के लिए दो तत्व जरूरी होते हैं, पहला सल्फरयुक्त प्रोटीन जो कि पनीर में पाया जाता है और दूसरे कुछ फैटी एसिड्स की पहचान नहीं हो पा रही थी। डॉ वारबर्ग भी अपने जीवनकाल में इन रहस्यमय फैट्स को पहचानने में सफल नहीं रहे। 
 


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