Plastic की वजह से जल्दी आ रहे Periods, पंजाब की महिलाओं के लिए मंडरा रहा खतरा
punjabkesari.in Wednesday, Jun 11, 2025 - 03:33 PM (IST)

नारी डेस्कः प्लास्टिक आज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है लेकिन यह सस्ता, टिकाऊ और हर जगह आसानी से उपलब्ध होने वाला प्लास्टिक हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और जीव-जंतुओं के लिए कितना खतरनाक हैं, शायद आप ये नहीं जानते। प्लास्टिक में पाए जाने वाले बिसफेनॉल-A (BPA) और अन्य रसायन शरीर में हार्मोन असंतुलन, कैंसर, प्रजनन क्षमता में कमी और मस्तिष्क संबंधी कई समस्याएं पैदा कर सकते हैं। जब आप गर्भ भोजन या पानी में प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग करने से ये रसायन भोजन में मिल जाते हैं। प्लास्टिक को जलाने से डायऑक्सिन, फ्यूरान जैसी ज़हरीली गैसें निकलती हैं जो वातावरण को प्रदूषित करती हैं और सांस संबंधी बीमारियों को बढ़ाती हैं।
प्लास्टिक से प्रभावित हो रहे महिला के पीरियड्स
महिलाओं के पीरियड्स को भी ये प्रभावित करती हैं। अर्ली प्यूबर्टी यानि कि बच्चों में यौवन (puberty) का सामान्य उम्र से पहले शुरू होना है। अब लड़कियों को 8-9 साल की उम्र में या उससे पहले ही पीरियड्स शुरू हो रहे है जिसका मुख्य कारण अनहैल्दी लाइफस्टाइल है। कैमिकल्स युक्त भोजन, खराब पर्यावरण ये सब महिला को पीरियड्स साइकिल को प्रभावित करता है। वहीं इसका जिम्मेदार प्लास्टिक को भी माना जाता है जिन घरों में महिलाएं एवमं बच्चियां प्लास्टिक से बने बर्तन बोतलें-डिब्बों, पैकेट, प्लास्टिक के लिफाफे आदि का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उन्हें भी अर्ली प्यूबर्टी की समस्या होती है।
स्त्री रोग विशेषज्ञ, बांझपन व आईवीएफ स्पैशलिस्ट डॉ. सुकीर्ति शर्मा के अनुसार, महिलाओं के पीरियड्स खराब होने का मुख्य कारण खराब क्वालिटी का खान, प्रदूषण और खराब लाइफस्टाइल है। प्लास्टिक के चलते भी महिला के पीरियड्स प्रभावित होते हैं। प्लास्टिक की बोतलें, दूध के पेकेट यह सब चीजें जिन घरों में अधिक इस्तेमाल होती हैं उन महिलाओं को उम्र से पहले पीरियड्स आने की संभावना अधिक रहती है प्लास्टिक में मौजूद कुछ रसायन शरीर में 'एस्ट्रोजन' नामक हार्मोन को बढ़ा देते हैं।
बच्चियों को 8-9 साल की उम्र या उससे पहले ही पीरियड्स आने लगते हैं। अगर एक गर्भवती महिला भी इन चीजों का इस्तेमाल (एक्सपोजर अधिक मिलता है) अधिक करती हैं तब भी पैदा होने वाली फीमेल बेबी को अर्ली प्यूबर्टी की संभावना अधिक रहती है। एस्ट्रोजन हार्मोन की गड़बड़ी से महिलाओं को भविष्य में गर्भधारण की समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती है।
प्लास्टिक और हार्मोनल असंतुलन
प्लास्टिक में पाए जाने वाले रसायन जैसे बिसफेनॉल-A (BPA) और फ्थेलेट्स (Phthalates) शरीर के हार्मोन सिस्टम को प्रभावित करते हैं। ये रसायन एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन की नकल करते हैं और शरीर में उसका स्तर बढ़ा सकते हैं। इसका असर महिलाओं में पीरियड्स की अनियमितता, पीसीओडी/पीसीओएस, और गर्भधारण में कठिनाई के रूप में दिख सकता है, जबकि पुरुषों में स्पर्म काउंट में कमी और हार्मोनल कमजोरी हो सकती है।
पंजाब में प्लास्टिक का बढ़ता कहर: एक गंभीर संकट
हाल ही में पंजाब में बढ़ते प्लास्टिक के इस्तेमाल ने भी सबको चौकाया है। प्लास्टिक प्रदूषण आज एक गंभीर पर्यावरणीय संकट बन चुका है और पंजाब इसका जीता-जागता उदाहरण बन रहा है ये प्लास्टिक पंजाब की महिलाओं के स्वास्थय पर भी गहरा असर डाल रहा है। चलिए आपको प्लास्टिक उत्पादन को लेकर, पंजाब से जुड़ा डाटा दिखाते हैं।
1. 4 साल में 38% बढ़ा प्लास्टिक उत्पादन
पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार:
2019-20 में उत्पादन: 92,890 टन
2022-23 में उत्पादन: 1,28,744.64 टन
यानी सिर्फ 4 वर्षों में 38% की भारी बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़े बताते हैं कि पंजाब में प्लास्टिक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जिससे हवा, पानी और मिट्टी सभी पर बुरा असर पड़ रहा है।
2. घरों में रोज़ाना उपयोग से बढ़ रहा खतरा
आज हर घर में प्लास्टिक से बनी चीज़ें रोज़ाना इस्तेमाल की जाती हैं, जैसे:
पानी की बोतलें
शैम्पू और साबुन के डिब्बे
बिस्किट व नमकीन के पैकेट
जूस की बोतलें
टूथपेस्ट ट्यूब
कपड़े धोने वाला डिटर्जेंट
किराने के थैले, पैकिंग मटेरियल आदि
इनमें से कुछ प्लास्टिक तो रिसायकल हो पाता है लेकिन अधिकतर प्लास्टिक कचरे में मिलकर मिट्टी और पानी को दूषित कर रहा है।
3. प्रदूषित हवा, ज़हरीला पानी और खराब होती ज़मीन
प्लास्टिक धीरे-धीरे टूटकर माइक्रोप्लास्टिक में बदल जाता है, जो हवा, पानी और मिट्टी में घुल जाता है। यह ज़हर खेती की ज़मीन को बंजर बना सकता है।
पानी के स्रोतों जैसे नदियां, झीलें, और यहां तक कि भूमिगत जल भी इससे प्रभावित हो रहा है।
4. स्वास्थ्य पर खतरनाक असर
जब माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में पहुंचता है (खाने-पीने या सांस के माध्यम से), तो यह:
हार्मोन सिस्टम को प्रभावित करता है
बांझपन (Infertility) की समस्या बढ़ाता है
कैंसर, हृदय रोग, और पाचन तंत्र की बीमारियों का खतरा बढ़ाता है
छोटे बच्चों की विकास प्रक्रिया पर भी बुरा असर डालता है
समाधान क्या हो सकता है?
घरों में बदलाव जरूरी
कपड़े या जूट के थैले का इस्तेमाल करें
कांच या स्टील की बोतलें व डिब्बे अपनाएं
प्लास्टिक के बजाय पेपर या बायोडिग्रेडेबल पैकिंग चुनें
बच्चों को शुरू से ही प्लास्टिक से दूर रखने की आदत डालें
सरकार को सख्त कार्रवाई करें
प्लास्टिक बनाने वाली फैक्ट्रियों पर निगरानी
रिसायक्लिंग यूनिट्स की संख्या बढ़ाना
गांव और शहरों में जागरूकता फैलाना
नोटः हमें प्लास्टिक को नहीं, प्रकृति को प्राथमिकता देनी होगी। पंजाब की यह स्थिति पूरे देश के लिए एक गंभीर चेतावनी है। अगर अभी भी हम नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए शुद्ध हवा, साफ पानी और उपजाऊ मिट्टी सिर्फ एक सपना बनकर रह जाएंगे।