जहरीली हवा में घुट रहा दम, दिल्ली छोड़ने की तैयारी कर रहे वहां के लोग

punjabkesari.in Thursday, Nov 27, 2025 - 06:51 PM (IST)

नारी डेस्क: दिल्ली-एनसीआर में 80 प्रतिशत से अधिक निवासियों ने प्रदूषित हवा के कारण लगातार स्वास्थ्य समस्याओं से जूझने की बात कही है, जिनमें पुरानी खांसी, थकान महसूस होना और श्वसन संबंधी समस्या शामिल हैं। एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है। स्माइटेन पल्सएआई सर्वेक्षण में यह खुलासा हुआ कि 68.3 प्रतिशत लोगों ने पिछले वर्ष विशेष रूप से प्रदूषण से संबंधित रोगों के लिए चिकित्सा सहायता मांगी। 


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घर से बाहर जाने में होती है दिक्कत

सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि सर्वेक्षण में शामिल किये गए 76.4 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि वे घर से बाहर बहुत कम देर के लिए निकल रहे हैं, जिससे घर असल में जेल जैसे हो गए हैं क्योंकि परिवार जहरीली धुंध से बचने के लिए बाहर कम निकलते हैं। उपभोक्ता अनुसंधान फर्म स्मिटेन पल्सएआई ने कहा कि दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद के 4,000 निवासियों पर किये गए व्यापक अध्ययन से एक ऐसे शहर की विनाशकारी तस्वीर उभर कर सामने आती है, जो बाहरी ताकतों से नहीं बल्कि उस हवा से जूझ रहा है जिसमें यहां के लोग सांस लेते हैं। 


दिल्ली को छोड़ना चाहते हैं लोग

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि 79.8 प्रतिशत लोग या तो किसी और शहर में जाने का विचार कर रहे हैं या पहले ही स्थान छोड़ चुके हैं, 33.6 प्रतिशत लोग यहां से जाने की योजना बना रहे हैं, 31 प्रतिशत सक्रिय रूप से इस पर विचार कर रहे हैं, और 15.2 प्रतिशत लोग पहले ही दूसरी जगह जा चुके हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि 37 प्रतिशत लोगों ने पहले ही ठोस कदम उठा लिए हैं -- दूसरे शहरों में मकान ढूंढने के लिए जाना, स्कूलों में बच्चों के दाखिले के लिए जानकारी जुटाना, या जाने के बारे में परिवार के साथ निर्णय लेना।
 

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 रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर खराब हवा का पड़ता है असर

सर्वेक्षण में कहा गया है कि प्रदूषण से जूझ रहे लोग पहाड़ी इलाके, कम कारखानों वाले छोटे शहर, दिल्ली-एनसीआर के बाहर कहीं भी, ऐसी जगह जहां सांस लेने के लिए किसी ऐप की निगरानी की ज़रूरत न हो, जाना चाहते हैं। स्मिटेन पल्सएआई के सह-संस्थापक, स्वागत सारंगी ने कहा, ‘‘अध्ययन से पता चलता है कि लंबे समय तक खराब वायु गुणवत्ता रोज़मर्रा की ज़िंदगी -- स्वास्थ्य व्यवहार, खर्च करने के तरीके और जीवन से जुड़े फैसलों को प्रभावित कर रही है।'' उन्होंने कहा- ‘‘यह अब केवल एक पर्यावरणीय चिंता नहीं है, बल्कि जीवनशैली और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला एक कारक है, जो निरंतर, डेटा-समर्थित और सहयोगात्मक कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है।'' 
 


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vasudha

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