तुम्हें कितने मार्क्स मिले...? पेपर का रिजल्ट आने पर अपने बच्चे से कभी न पूछें ये सवाल
punjabkesari.in Monday, Nov 03, 2025 - 06:01 PM (IST)
नारी डेस्क: यह बात सच्ची है कि जब आप अपने बच्चे से अक्सर “तुम्हें कितने मार्क्स मिले?” ये सवाल पूछते हैं, तो यह कई तरह से उनकी सेल्फ़-वर्थ, सिखने की प्रक्रिया और मनोधर्म पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। आज हम आपको बताते हैं कि ये सवाल बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
क्यों यह सवाल नुकसान पहुंचाता है
जब सबसे पहला सवाल ये होता है कि “कितने अंक आए?”, तो बच्चे को यह संदेश जाता है कि अंक = मूल्य = आपकी योग्यता। पर वास्तव में “अंक” सिर्फ एक परीक्षा का परिणाम हैं, व्यक्ति की सम्पूर्ण क्षमता या गुण नहीं। उदाहरण के लिए, एक लेख कहता है कि यह हो सकता है कि बच्चों को यह महसूस हो जाए कि उनका पूरा मूल्य सिर्फ उनकी ग्रेड्स से तय होता है। जब यह सवाल बार-बार पूछा जाए, तो बच्चे में यह डर बन सकता है कि अगर अंक कम आए तो उन्हें मम्मा-पापा की नाराज़गी या शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। यह दबाव उनकी पढ़ाई, आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
सिखने की प्रक्रिया पर ध्यान कम देना
दिए गए मार्क्स के पीछे क्या हुआ- जैसे तैयारी कैसे हुई, कौन-सी चीज कठिन लगी, किस तरीके से समझा जा सकता था, इन पर कम ध्यान जाता है। परिणाम पर ज्यादा फोकस होने से बच्चों में “स्कोर करने की रणनीति” बन सकती है बजाय “समझने की रणनीति” के। यदि संवाद का मुख्य आधार सवाल “कितने अंक?” हो जाए, तो बच्चे हो सकता है कि उस बातचीत को अपेक्षा-पूर्ति के रूप में देखें- न कि खुली बातचीत के रूप में। इससे पिता-माता-बच्चा के बीच भरोसा कम हो सकता है।
बेहतर तरीका — क्या-क्या पूछा जा सकता है
-“तुम्हारी एक्साम के दौरान सबसे कठिन क्या लगा? उस पर काम कैसे कर सकते हैं?”
- “क्या तुमको लगता है तुमने उस विषय में यह तरीके आजमाए? अगर नहीं, तो अगली बार कैसे करोगे?”
- “क्या वो हिस्सा था जिसमें तुमने अच्छा किया? उस पर हम कैसे और सुधार कर सकते हैं?”
- “पढ़ाई के अलावा तुम्हें क्या-क्या मज़ेदार लगा आज स्कूल में?”
ऐसे सवाल बच्चों की सोचना, भावनाओं को समझने और संवाद बढ़ाने में मदद करते हैं।

