एक कन्या के श्राप से ये पहाड़ हो गया था सफेद, नवरात्रि में यहां साक्षात विराजती हैं मां विध्यवासिनी
punjabkesari.in Tuesday, Oct 01, 2024 - 05:19 PM (IST)
नारी डेस्क: आज हम आपको एक ऐसे पर्वत के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने में एक रहस्य समेटे हुए है। यह पर्वत एक कन्या के श्राप से सफेद रंग में बदल गया था। यहां विराजमान मां विंध्यवासिनी देश के प्रमुख 108 शक्ति पीठों में से एक है। साल में दो बार नवरात्र पर्व में मां के दरबार में मेला लगता है। चलिए जानते हैं इस सफेद पर्वत की पूरी कहानी।
आकाश में विलीन हो गई थी माता
बांदा का यह सफेद पहाड़, जिसे "कालिंजर का पहाड़" भी कहा जाता है, बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित है और इससे जुड़ी एक एक पौराणिक कथा प्रचलित है। ऐसी मान्यता है की जब द्वापर में माता देवकी की संतानों को कंस वध कर रहा था, तब देवकी की आठवी संतान को बदल कर यशोदा की पुत्री को रख दिया गया था, लेकिन जब कंस ने उसे भी मारने का प्रयास किया तब वो आकाश में विलीन हो गयी।
माता का भार नहीं सह पाया पहाड़
जब मां खत्री पहाड़ में आईं तब उसने उनका भर सहन कर पाने में अक्षमता जाहिर की। इससे रुष्ट होकर मां ने उसे श्राप दे दिया की जा कोढ़ी हो जा। कहा जाता है कि इस श्राप के कारण पहाड़ का रंग धीरे-धीरे सफेद होने लगा और आज भी यह पहाड़ सफेद रंग में ही नजर आता है। उसी समय देवी कन्या ने आकाशवाणी की थी कि वह प्रत्येक अष्टमी को भक्तों को यहां दर्शन देती रहेंगी तभी से यहां धार्मिक मेला लगता चला आ रहा है।
अष्टमी में दिखता है अलग ही नजारा
बताया जाता है कि देवी मां के श्राप से घबराए पहाड़ ने से श्राप वापस लेने की विनती की तो मां ने उसके उद्धार के लिए नवरात्र में अष्टमी तिथि को मिर्जापुर मंदिर का आसन त्याग कर यहां आने का वचन दिया था। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि नवरात्र में अन्य तिथियों की अपेक्षा अष्टमी की तड़के से ही मां की प्रतिमा में अजीब सी चमक प्रतीत होती है, जो मां के यहां विराजमान होने का संकेत है।
श्रद्धा का केंद्र है ये पहाड़
यह पहाड़ आज भी स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। इसके आसपास के मंदिरों और धार्मिक स्थलों में लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। लोग इस पहाड़ के सफेद रंग को देवी के श्राप से जोड़ते हैं और इसे पवित्र मानते हैं। यह स्थान कई महत्वपूर्ण युद्धों का गवाह रहा है और इसे बुंदेलखंड के राजाओं द्वारा अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए इस्तेमाल किया गया। यह क्षेत्र बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक है।