Ratan Tata's Father Story: 'भगवान का शुक्रिया जो मुझे गरीबी दिखाई...' मां ने छोड़ा था अनाथालय

punjabkesari.in Friday, Oct 11, 2024 - 07:50 PM (IST)

नारी डेस्कः भारत के अनमोल रतन, रतन टाटा (Ratan Tata) अब हमारे बीच नही रहे लेकिन उनकी कही बातें और सिद्धांत हमेशा हमारे बीच ज़िंदा रहेंगे। रतन टाटा को लोग दरिया-दिल और दानवीर कहते हैं और ये सब उन्हें विरासत में मिला लेकिन रतन टाटा के पिता नवल टाटा (Naval Tata) जी का टाटा फैमिली से खून का रिश्ता नही था वो अनाथालय से गोद लिए गये थे। अपने जीवन में मिले अनुभवों के चलते नवल टाटा ने कहा था कि वह भगवान के आभारी है जो उन्हें गरीबी की पीड़ा का अनुभव करने का अवसर मिला। इसी अवसर ने उनकी पूरी ज़िंदगी बदल दी थी। चलिए, आपको रतन टाटा जी के पिता नवल टाटा जी की जीवनी बताते हैं। एक ग़रीबी में जन्मा बच्चा जिसके भाग्य में कुछ और ही लिखा था। इतनी शानदार कहानी की इस पर एक शानदार मूवी बन सकती है।

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नवल महज 4 साल के थे, जब हो गया था पिता का देहांत ( Naval Hormusji Tata Lifestory)

रतन टाटा के पिता, नवल होर्मुसजी टाटा (Naval Hormusji Tata) की कहानी दिलचस्प और प्रेरणादायक है जो इस बात की सीख देती है कि किस्मत और मेहनत का मेल, इंसान की जिंदगी बदल देता है। नवल का जन्म 30 अगस्त 1904 को मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ था लेकिन उनके जन्म से उनका टाटा परिवार से कोई संबंध नहीं था। उनके पिता अहमदाबाद की एडवांस मिल्स में स्पिनिंग मास्टर के रूप में काम करते थे।साल 1908 में जब नवल महज 4 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया। पिता के निधन के  बाद उनकी मां उन्हें लेकर गुजरात के नवसारी चली गईं। वहां उन्होंने कढ़ाई का काम शुरू किया ताकि परिवार का गुजारा हो सके। उस समय हालात बहुत मुश्किल थे लेकिन नवल की तकदीर ने उनका साथ दिया।

नवाजबाई टाटा ने लिया था नवल को गोद ( Naval Hormusji Tata was adopted by Sir Ratanji Tata)

जिंदगी और परिस्थिति को बेहतर बनाने के लिए नवल को जे. एन. पेटिट पारसी अनाथालय भेजा गया, जहां उनके जीवन में बदलाव की शुरुआत हुई थी। यहां नवल टाटा जी की मुलाकात नवाजबाई टाटा से हुई थी जो सर रतनजी टाटा की पत्नी थीं।नवाजबाई, नवल से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उन्हें गोद लेने का फैसला किया और इस तरह नवल, टाटा परिवार से जुड़ गये। जब नवल को टाटा फ़ैमिली ने गोद लिया गया, तब उनकी उम्र केवल 13 साल थी। इस तरह नवल टाटा, सर रतन जी टाटा (Sir Ratan Ji Tata) और लेडी नवाज़बाई (Navajbai Tata) के गोद लिए हुए पुत्र बने। सर रतन जी टाटा ने उन्हें पिता और नवाजबाई टाटा ने उन्हें मां का प्यार दिया आगे नवल के घर जो बेटे हुए उनका नाम रतन रखा गया जिन्हें हम रतन नवल टाटा के नाम से भी जानते हैं। इसके बाद नवल टाटा जी को बेहतरीन शिक्षा मिली और उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वे लंदन जाकर उन्होंने अकाउंटिंग से संबंधित कोर्स किया।

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'मैं भगवान का आभारी है जो मुझे गरीबी की पीड़ा का अनुभव करने का अवसर मिला।'

अपने जीवन को देख नवल टाटा, अक्सर कहा करते थे कि गरीबी के अनुभव ने उनके जीवन को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।  ग़रीबी के कठिन समय ने उन्हें मजबूत और सहनशील बनाया। इसीलिए नवल टाटा ने कहा था कि वह भगवान के आभारी है जो उन्हें गरीबी की पीड़ा का अनुभव करने का अवसर मिला। इसी अवसर ने उनकी पूरी ज़िंदगी बदल दी थी और इसके लिए वह हमेशा भगवान के आभारी रहे। 

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दो शादियां और टाटा संस में क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी से शुरुआत

नवल टाटा जी की निजी जिंदगी भी बहुत दिलचस्प रही। उन्होंने दो शादियां की थी। पहली शादी सूनी कॉमिस्सैरिएट से हुई, जिनसे उनके दो बेटे हुए—रतन टाटा और जिमी टाटा हालांकि, इस शादी के कुछ साल बाद उनका तलाक हो गया फिर उन्होंने स्विट्जरलैंड की सिमोन डुनोयर से शादी की, जिनसे उन्हें एक और बेटा हुआ, जिसका नाम नियोल टाटा रखा गया। खबरों के मुताबिक, अब टाटा ने नए चेयरमैन रतन टाटा के सौतले भाई, नियोल टाटा (Noel Tata) होंगे।

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साल 1930 में नवल ने टाटा सन्स जॉइन किया, जहां उन्होंने क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी के रूप में शुरुआत की। उनकी मेहनत और योग्यता के चलते उन्हें तरक्की मिलती गई और उन्हें साल 1933 में एविएशन डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी बनाया गया, और इसके बाद उन्होंने टाटा मिल्स और अन्य यूनिट्स में अपनी भूमिका निभाई। साल 1941 में वे टाटा सन्स के डायरेक्टर बने, और 1961 में टाटा पावर (तब टाटा इलेक्ट्रिक कंपनीज़) के चेयरमैन के पद पर पहुंचे। 1962 में उन्हें टाटा सन्स के डिप्टी चेयरमैन का पद भी मिला। बिजनेस के अलावा, नवल टाटा  भी सोशल वर्क बढ़ चढ़ कर करते थे। वे सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बने और जीवन के अंतिम दिनों तक इस भूमिका को निभाया। उन्होंने इंडियन कैंसर सोसायटी के चेयरमैन के रूप में भी महत्वपूर्ण काम किया। नवल टाटा का गेम्स से भी गहरा लगाव था, वे भारतीय हॉकी फेडरेशन के अध्यक्ष रहे और इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन के वाइस चेयरमैन भी बने। नवल टाटा को उनके योगदान के लिए साल 1969 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 5 मई 1989 को मुंबई में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी। नवल टाटा का योगदान,सराहनीय रहा है जिसे दुनिया याद रखेगी। 

 


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Content Writer

Vandana

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