400 सालों से बेटे के लिए तरसा मैसूर राजघराना, रानी के श्राप ने खत्म कर दिया था वंश

punjabkesari.in Thursday, Jun 22, 2023 - 01:43 PM (IST)

राजाओं और महाराजाओं की कहानियां हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। इन कहानियों को सुनकर हमें यही लगता था कि राजाओं की जिंदगी बहुत खुशहाल होती थी, लेकिन आज हम ऐसे शाही राज घराने की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिनका एक श्राप के कारण सब कुछ तबाह हो गया। चलिए जानते हैं भारत के सबसे चर्चित महलों में से एक मैसूर पैलेस की खौफनाक कहानी।

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माना जाता रहा है कि मैसूर का वाडियार राजघराना पिछले 400 सालों से श्रापित था। इस राजघरानेे में 1612 से यहां की किसी भी रानी ने लड़के को जन्म नहीं दिया था। हालांकि कुछ साल पहले रानी त्रिशिका ने एक लड़के को जन्म देकर राजघराने को श्राप मुक्त कर दिया था। इससे पहले राज परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए राजा-रानी, परिवार के दूसरे सदस्य के बेटे को गोद लेते आ रहे थे। 

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भारत में सबसे लंबे वक्त तक राजशाही परंपरा को निभाने वाला मैसूर राजघराना इकलौता है। कहा जाता है कि 1612 में मैसूर के राजा वडियार ने पड़ोसी राज्य श्रीरंगपट्टनम पर हमला किया था। इस जंग में वहां के शासक तिरुमालाराजा हार गए थे। उन्होंने राजपाठ त्याग दिया और अपनी पत्नी अलामेलम्मा के साथ तलक्कड़ में साधारण जीवन जीने लगे। अलामेलम्मा अपने साथ केवल अपने राजघराने के जेवर लेकर आईं थीं, जो उनके लिए बेहद अहम थे। 

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वाडियार राजा ने उस वक्त रानी के जेवरात लाने के लिए नौकरों को भेजा, लेकिन रानी ने ऐसा नहीं किया। अपने परिवार की प्रतिष्ठा और गौरव का आखिरी सबूत को ना देने की जिद्द में अड़ी रानी पर  राजा वाडियार ने हमला करवा दिया।  अलामेलम्मा ने सैनिकों से बचने के लिए गहने हाथ में लेकर कावेरी नदी में छलांग लगा दी. लेकिन छलांग लगाने से पहले उसने वाडियार राज परिवार को श्राप दिया कि इस वंश में कभी उत्ताराधिकारी पैदा नहीं होगा. यानि किसी राजा को पुत्र प्राप्ति नहीं होगी।

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400 साल तकअलामेलम्मा का श्राप अपना रंग दिखाता रहा और किसी भी राजा के घर कोई  बच्चा नहीं हुआ। तत्कालीन राजा अपने भांजों या भतीजों को गोद लेकर वंश आगे बढ़ाते रहे। हालांकि, 2017 में ये श्राप टूटा औरतत्कालीन राजा यदुवीर कृष्णदत्ता छमा राज वाडियार और तृषिका कुमारी की शादी हुई जिसके बाद एक बेटे का जन्म हुआ।

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कहा तो यह भी जाता है कि जब अलामेलम्मा ने कावेरी में कूद कर जान दी तो कुलदेवी के श्राप से यह नदी सूखकर रेगिस्तान में बदल गई। उस दौर में गांव में करीब 30 मंदिर हुआ करते थे, जो सभी रेगिस्तान के नीचे दब गए। अब तक इनमें से 5 शिव मंदिरों को खुदाई कर निकाला जा चुका है। मान्यता है कि ये मंदिर हर साल रेगिस्तान में दबने लगते हैं और उन्हें खोद कर बाहर निकालते रहना पड़ता है। 


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vasudha

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