मौत के बाद एक्टिव किया ब्लड सर्कुलेशन, एशिया में पहली बार हुई ऐसी मेडिकल सफलता
punjabkesari.in Sunday, Nov 09, 2025 - 05:17 PM (IST)
नारी डेस्क: दिल्ली के द्वारका स्थित HCMCT मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों ने वह कर दिखाया, जिसे अब तक असंभव माना जा रहा था। उन्होंने एक मृत मरीज के शरीर में मौत के बाद फिर से ब्लड सर्कुलेशन एक्टिव किया। यह सफलता एशिया में पहली बार हासिल की गई है, और इसे मेडिकल साइंस की दुनिया में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
कौन थीं मरीज गीता चावला
यह प्रयोग 55 वर्षीय गीता चावला पर किया गया। वे मोटर न्यूरॉन डिजीज से पीड़ित थीं, जिससे उनका शरीर धीरे-धीरे पैरालाइज हो गया था। 6 नवंबर 2025 की रात उन्हें सांस लेने में परेशानी हुई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने वेंटिलेटर पर रखा, लेकिन कुछ घंटों बाद उनकी मृत्यु हो गई। गीता की आखिरी इच्छा थी अंगदान करना। लेकिन डॉक्टरों के सामने चुनौती थी उनका दिल बंद हो चुका था, जबकि अंगदान तभी संभव होता है जब दिल धड़क रहा हो और दिमाग (ब्रेन) डेड हो।
कैसे हुई ये असंभव लगने वाली प्रक्रिया
गीता की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए डॉक्टरों ने एक नई तकनीक का इस्तेमाल किया, जिसका नाम है Normothermic Regional Perfusion (NRP)। इस तकनीक में ECMO (Extracorporeal Membrane Oxygenation) नामक मशीन से शरीर में फिर से खून का प्रवाह शुरू किया गया। इस प्रक्रिया ने दिल रुकने के बाद भी शरीर के अंगों को जिंदा और सक्रिय रखा, ताकि उनका उपयोग अंगदान में किया जा सके।
किसे मिले गीता के अंग
लिवर दिल्ली के ILBS अस्पताल में 48 वर्षीय मरीज को ट्रांसप्लांट किया गया। दोनों किडनियाँ साकेत के मैक्स अस्पताल में 63 और 58 वर्ष के दो मरीजों को दी गईं। कॉर्निया और स्किन भी दान किए गए। यह प्रक्रिया नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (NOTTO) के तहत की गई।
एशिया में पहली बार हुआ ऐसा केस
यह प्रक्रिया एशिया में पहली बार की गई है। अब तक दुनिया में कुछ चुनिंदा देशों जैसे स्पेन और यूके में ही मौत के बाद ब्लड सर्कुलेशन दोबारा शुरू करने की प्रक्रिया अपनाई गई थी।
क्यों है यह रिसर्च खास
अब तक अंगदान सिर्फ ब्रेन डेथ की स्थिति में किया जाता था जब दिल धड़कता है, लेकिन दिमाग काम नहीं करता। लेकिन इस केस में मरीज का दिल बंद हो चुका था, और फिर भी अंग सुरक्षित रखे गए। इस तकनीक से भविष्य में उन लोगों के अंग भी दान किए जा सकेंगे जिनकी सर्कुलेटरी डेथ (Circulatory Death) होती है।
नई उम्मीद ज़्यादा अंगदान, ज़्यादा ज़िंदगियां
डॉक्टरों का मानना है कि यह सफलता भारत में अंगदान की संख्या बढ़ाने का नया रास्ता खोलेगी। हर साल हजारों मरीज अंग न मिलने के कारण मर जाते हैं। अगर यह तकनीक नियमित रूप से इस्तेमाल होने लगी, तो कई जिंदगियाँ बचाई जा सकेंगी।
डॉक्टरों ने क्या कहा
“यह सफलता सिर्फ एक मेडिकल एक्सपेरिमेंट नहीं, बल्कि इंसानियत का प्रतीक है। गीता चावला जैसी दानवीर आत्माएँ ही बदलाव की राह दिखाती हैं।” गीता चावला की कहानी सिर्फ चिकित्सा विज्ञान की नहीं, बल्कि इंसानी जज्बे और उम्मीद की कहानी है। मौत के बाद भी उन्होंने तीन जिंदगियों को नई साँसें दीं। और शायद यही असली अर्थ है जीवन का अमर होना।

