क्या सच में परिजनों से मिलने परलोक से  पृथ्वी पर आते हैं  पूर्वज? पितृपक्ष को लेकर जान लें ये काम की बातें

punjabkesari.in Saturday, Sep 06, 2025 - 07:17 PM (IST)

नारी डेस्क:  उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के अक्षय ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषी और अक्षय पंचांग के संपादक पंडित रवि शंकर पांडेय ने शनिवार को कहा कि श्रद्धा से जो अर्पित किया जाए वही श्राद्ध है।  पं पांडेय ने बातचीत में कहा कि मनुष्य की आत्मा केवल देह की क्षुद्र सीमाओं में बंधी नहीं होती वह अपने पूर्वजों से अद्दश्य सूत्रों द्वारा जुड़ी रहती है। यही कारण है कि पितरों का स्मरण, उनका आशीर्वाद और उनके प्रति कृतज्ञता का प्रदर्शन भारतीय परंपरा में सर्वोच्च स्थान रखता है। श्राद्ध इसी भावना का मूर्त रूप है जो युगों से हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग बना हुआ है।


पितरों का तर्पण महत्वपूर्ण 

 ज्योतिषी ने बताया कि पितरों का तर्पण और श्राद्ध पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक अति महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, ऐसा करके पितरों की आत्मा को तृप्त करना उन्हें मोक्ष दिलाना और परिवार में समृद्धि, स्वास्थ्य, यश, सुख और कुल में वृद्धि का साधन माना जाता है। पितृ पक्ष के दौरान यह कार्य पितरों का तर्पण पिंड दान व श्राद्ध किया जाता है और इसके लिए पद्मपुराण में भी उल्लेख मिलता है, वैदिक ग्रंथों में श्राद्ध को पूर्वजों का आभार व्यक्त करने और परिवार के कल्याण का एक महत्वपूर्ण साधन बताया गया है। 


श्रीराम ने भी किया था अपने पिता का श्राद्ध 

वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही यह प्रसंग आता है कि श्रीराम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया। यह केवल कर्मकांड न था बल्कि पुत्र धर्म का परिपूर्ण निर्वाह था। महाभारत के अनुशासन पर्व में अत्रि मुनि ने श्राद्ध की महत्ता का प्रतिपादन किया है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण में श्राद्ध के उद्गम की कथा आती है कि यह प्रथा भगवान विष्णु के वराह अवतार से प्रारंभ हुई। तीन पिण्डों में क्रमश: पिता, पितामह और प्रपितामह की उपस्थिति का दार्शनिक संकेत मिलता है


पितृऋण से मुक्ति जरूरी

इससे यह स्पष्ट होता है कि श्राद्ध केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि वंशपरंपरा के तीन स्तरीय ऋण का स्मरण है। उन्होंने बताया कि पुराणों में यह भी कथा आती है कि ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो अंशों से स्वयंभुव मनु और शतरूपा की सृष्टि की। इन्हीं से मानव समाज का विस्तार हुआ। मृत्युपरांत उन्हीं संतानों की स्मृति और उनके प्रति ऋणमुक्ति के लिए श्राद्ध परंपरा का सूत्रपात हुआ। यह केवल पितरों के प्रति श्रद्धा नहीं बल्कि यह मान्यता भी है कि जब तक पितृऋण से मुक्ति नहीं होती तब तक मानव जीवन की यात्रा अधूरी रहती है।


रोज पृथ्वी पर आते हैं पूर्वज

 ऐसी मान्यता है कि हमारे पूर्वज पितृ पक्ष शुरू होते ही हर रोज पृथ्वी पर आ जाते हैं और सूर्यास्त तक इस प्रतीक्षा में रहते हैं कि हमारे कुल खानदान का कोई न कोई व्यक्ति मुझे कुछ न कुछ खाने-पीने अथवा पूजा पाठ की सामग्री अवश्य अर्पित करेगा। सूर्यास्त के पूर्व तक वे प्रतीक्षा करते हैं, जिन लोगों के घरों से पूर्वजों को कुछ न कुछ मिल जाता है, वह तो आशीर्वाद देकर चले जाते हैं और जिन लोगों के घरों से कुछ नहीं मिलता तो पूर्वज पहले रोते हैं और इस आंसू को पीकर इस प्रत्याशा के साथ वापस जाते हैं कि हो सकता है कि कल मेरे खानदान के लोग मुझे कुछ जरूर अर्पित करेंगे, इतने पर भी पूर्वज अपने खानदान वालों की भलाई ही चाहते हैं उन्हें श्राप नहीं देते। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

vasudha

Related News

static