पेरेंट्स बने टीनएजर्स बच्चों के बेस्ट फ्रैंड, तभी शेयर करेंगे आपसे अपने दुख-सुख

punjabkesari.in Monday, May 27, 2019 - 06:56 PM (IST)

आजकल ज्यादातर मांओं की परेशानी यही है कि उनके टीनएजर बच्चों के पास उनके लिए समय नहीं है। वह अपने दोस्तों से तो घंटों गप्पे मारते रहते हैं या फिर इंटरनैट पर चैटिंग करते रहते हैं, परंतु जब उनसे कुछ पूछों तो कुछ नहीं मम्मी... कहकर चुप्पी साध लेंगे। पहले के समय में मां ही हमारी सबसे अच्छी दोस्त होती है, जो भले-बुरे का ज्ञान देने के साथ सहेलियों से भी खूब घुल-मिलकर हर टॉपिक पर बातें कर लेती थी जबकि आज की जैनरेशन को पेरेंट्स से कुछ भी लेना देना नहीं होता।

 

क्या है कारण?

ज्यादातर टीनएजर खेलने, फिल्म देखने, गॉसिप करने या मौज-मस्ती के लिए भले ही अपने दोस्तों को ढूंढते हो। मगर जब किसी तरह की समस्या उनके सामने आती है तो वे बेहिचक जिस तरह अपनी मां के पास जाते हैं उस तरह पापा, बहन, भाई या दोस्तों के पास नहीं जा सकते। ऐसे में मां ही उनकी गाइड और ब्रैस्ट फ्रैंड होती है। परंतु टीनएजर्स अपनी मां से दोस्ताना कायम नहीं कर पाते हैं।

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उनका मानना है कि मां जमाने के हिसाब से चलने को तैयार ही नहीं होती है। वह यह समझ ही नहीं पाती है कि अब सोमोसे या ब्रैड पकौड़े का नहीं बल्कि पिज्जा और बर्गर का टेस्ट ही आज की जैनरेशन को भाता है। वह यह भी नहीं समझती कि आज के समय में ब्रांडेड पोशाकें पहनकर कॉलेज जाना, दोस्तों के साथ ऑनलाइन चैटिंग करना या महीने में एक बार मूवी देखने जाना कितना जरूरी है। टीनएजर्स को सबसे ज्यादा शिकायत यही रहती है कि पेरेंट्स समय के साथ खुद को अपडेट करना ही नहीं चाहते।

 

गलती पेरेंट्स की भी...

देखा जाए तो आज की तेज रफ्तार जिंदगी में पेरेंट्स शोहरत एवं रुतबा पाने की होड़ में तो भाग रहे हैं  लेकिन अपने बच्चों के मन में संस्कारों की अपेक्षा पैसे की प्रधानता की नींव डाल रहे हैं। पहले बच्चे ज्वाइंट फैमिली में पलते थे और हर चीज भाई-बहनों से शेयर करते थे जबकि अब न्यूक्लियल फैमिली का जमाना है। भले ही बच्चों का मां के प्रति लगाव बढ़ा हो लेकिन वे ये भी चाहते हैं कि मांएं भी उन्हें समझें।

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आज जब बच्चे अपनी मां को यह बताएं कि आपके किस तरह तैयार होकर स्कूल आना है तो आप समझ सकती हैं कि बच्चों का पेरेंट्स पर कितनी दबाव है। आज अब टीनएजर्स अपनी बातें मांओं से शेयर नहीं कर पाते हैं तो इसके लिए काफी हद तक मां भी जिम्मेदार हैं क्योंकि जॉब के कारण वे अपने बच्चों को वक्त न हीं दे पाती हैं और अपनी मजबूरी को उन्हें ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देकर छिपाने की कोशिश करती हैं।

 

टीनएजर्स की भी सुनें

कामकाजी होने के चलते पेरेंट्स अक्सर बच्चों को यह अहसास दिलाते रहते हैं कि वे अब बड़े हो गए हैं। ऐसे में बच्चे भी बड़ों की तरह बिहेव करने लगते हैं। उनका भोलापन कहीं खो जाता है और वो वही करते हैं जैसा कि टी.वी. या वीडियोज में देखते हैं। ऐसे में जरूरी है कि पेरेंट्स बच्चों को अपनी वक्त दें और उनके दोस्त भी बनें।

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बच्चों के साथ बिताया क्लाविटी टाइम भले ही कम हो लेकिन वह समय के साथ आपके रिश्ते की कद्र उन्हें समझाएगा और तब आप खुद अपने प्यारे बच्चों की फ्रैंड, फिलॉस्फर एवं गाइड होगी।


 


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Content Writer

Sunita Rajput

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