महिलाओं को नहीं चाहिए मर्दों का साथ, गर्व से बता रही हैं अपना 'Status Single'

punjabkesari.in Sunday, Dec 11, 2022 - 01:07 PM (IST)

'अरे लड़की हो, खाना बनाना, सिलाई- कढ़ाई सीख लो, कल को दूसरे घर जाना है'...इस तरह के जुमले कभी न कभी लड़की और औरत होने के नाते आपके कानों में पड़े ही होंगे। भारतीय समाज का ताना-बाना कुछ इस कदर बुना हुआ है कि पारंपरिक तौर पर एक लड़की को ऐसे पाला-पोसा जाता है कि आगे चलकर वो एक अच्छी पत्नी और मां बन सके। बस उनकी जिंदगी का एक अहम मकसद जैसे शादी ही हो। लेकिन धीरे-धीरे अब बदलाव की हवा बहने लगी है। बड़ी संख्या में लड़कियां अब सिंगल रहकर अपनी आजादी चुन रही हैं। महिलाओं को अब सहारा नहीं बस अपने वजूद की आवाज चाहिए। आजकल सोशल मीडिया पर भी सिंगल रहने का क्रेज सिर पर चढ़कर बोल रहा है। बकायदा पूरे देश की अकेली महिलाओं को एकजुट करने के लिए फेसबुक पर खास पेज बनने भी शुरु हो गए हैं। ऐसा ही एक कम्युनिटी पेज 'स्टेट्स सिंगल' है, ये पेज अर्बन सिंगल औरतों को जोड़ रहा है।

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'विडो, डिवोर्सी और अनमैरिड नहीं है हमारी पहचान'-श्रीमोई पियु कुंडू

'हम औरत हैं, हमें किसी खास पहचान या नाम से नहीं, इंसान के तौर पर पहचाना जाए। हमें खुद के सिंगल होने पर फक्र महसूस होना चाहिए'। ये कहना है लेखिका औस स्टेट्स सिंगल की संस्थापक श्रीमोई पियु कुंडू  का। वो कहती हैं कि 'हमें खुद को विधवा, तलाकशुदा और अविवाहित जैसे तमगे देने बंद करना चाहिए'।श्रीमोई जोर देकर कहती हैं कि 'चलो खुद को फक्र से सिर्फ और सिर्फ सिंगल कहें'। श्रीमोई बताती हैं उनके इस ग्रुप को बनाने का मकसद ही यही है कि अकेले अपनी जिंदगी जी रही महिलाएं किसी भी तरह से खुद को कमतर ना आंके।

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वो कहती है, 'हमारी फेसबुक कम्युनिटी की महिलाओं का गेट टुगेदर होता है। इस ग्रुप की अधिकतर मेंबर्स मिडिल क्लास बैकग्राउंड से हैं। इनमें कुछ पेशे से टीचर, डॉक्टर, वकील, बिजनेसवुमन, एक्टिविस्ट और पत्रकार हैं। कुछ शादी के बाद अलग रह रही हैं, कुछ तलाकशुदा और विधवा हैं तो किसी ने कभी भी शादी नहीं की हैं'। एक ऐसा देश जो शादी को लेकर जुनूनी हो और लड़कियों का अविवाहित रहना जहां अभी भी कई मुश्किलों से घिरा हो, वहां इस तरह के समुदाय अकेले रहने वाली महिलाओं के हौसले बुलंद कर रहे हैं।

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भारत अभी भी बना हुआ है पितृसत्तात्मक समाज 

श्रीमोई कहती हैं कि 'भारत में बड़े पैमाने पर पितृसत्तात्मक समाज अब भी बना हुआ है। आज भी 90 फीसदी शादियां परिवार की मर्जी से तय होती है। इस मामले में कुछ कहने या अपनी राय जाहिर करने का हक लड़कियों को कम ही मिलता है। कम ही होता है कि उनकी पसंद पूछी जाए या उनकी पसंद से शादी की जाए।

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भारत के गांवों में आज भी अविवाहित महिलाओं को अकसर उनके परिवार एक बोझ की तरह लेते हैं'। वो ये भी कहती हैं की '2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में अविवाहित महिलाओं की आबादी 71.4 मिलियन है। ये ब्रिटेन और फ्रांस की पूरी आबादी से भी बड़ी संख्या है, इसके बावजूद महिलाओं का अकेला या सिंगल रहना समाज पचा नहीं पा रहा'।


 


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Content Editor

Charanjeet Kaur

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