प्यार नहीं, रिश्तों में दिखने लगा है नफा-नुकसान!

punjabkesari.in Sunday, Apr 09, 2017 - 04:34 PM (IST)

पंजाब केसरी (रिलेशनशिप): रिश्तों में कैल्कुलेशन की बात सुनने में भले ही अजीब लगती हो, परंतु यह सच है कि आज रिश्तों में भावनात्मक जुड़ाव नाम मात्र को भी देखने में नहीं मिलता और हर रिश्ता नफा और नुक्सान को सोच कर ही बनाया जाता है या आगे चलता है। किसने आपको कितना दिया, आपने कहीं उससे हमेशा ज्यादा तो नहीं किया, सामने वाले के कांटैक्ट्स को आप कितना यूज कर सकते हैं या कौन आपके कितने काम आ सकता है, इस तरह की बातें अब हर इंसान सोचने लगा है। यदि सामने वाले से कोई फायदा नहीं तो वह रिश्ता बेमानी सा लगने लगता है। पुरानी पीढ़ी जहां इस तरह की सोच को स्वार्थ का नाम देती थी, वहीं आज की जैनेरेशन इसे प्रैक्टीकल का नाम देती है।

 

- रिश्तों का गुणा हिसाब
यदि आपने किसी को शादी-ब्याह में शगुन डाला है, तो उम्मीद की जाती है कि आपके यहां जब कोई ऐसा समारोह हो तो सामने वाला उससे ज्यादा ही डाले, यदि ऐसा नहीं हो पाता, तो दिलों का प्यार और रिश्तों का अपनापन जैसे खत्म ही हो जाता है।

- खत्म हो जाते हैं रिश्ते
आज के दौर में रिश्ते निभाने का किसी के पास भी वक्त ही नहीं बचा, सो अपने गांव का या अपने शहर का होने पर जो रिश्ता कभी बनता लोगों के दिलों में उसके लिए तो बिल्कुल ही जगह नहीं बची है, इतना ही नहीं रिश्तदारी में भी दूर के मामा एवं चाचा के यहां रिश्तेदारी निभाने का किसी के पास वक्त नहीं है। यही कारण है कि अब उंगलियों पर गिने जा सकने वाले रिश्ते ही रह गए हैं और उनमें भी वक्त की कमी के कारण दूरियां आने लगी हैं।

- पैसा, प्रोफेशन और कामयाबी जिम्मेवार
आज के दौर में अधिकांश लोग कामयाबी को छू रहे हैं, तो जाहिर सी बात है कि पैसा भी ज्यादा आता है, ऐसे में वे रिश्तेदार या दोस्त कहीं पिछड़ जाते हैं, जो कि जीवन में कोई मुकाम हासिल नहीं कर पाए हैं। शायद यही कारण है कि प्रोफेशनल रिश्तों को ज्यादा अहमियत दी जाती है, जिनसे बिजनेस में लाभ हो रहा हो या वे आपको प्रमोशन दिला सकते हों।


कैल्कुलेटिव होने के कारण

- समय की कमी भी इसका एक कारण है कि जिनसे हमें फायदा होता है, उन्हीं से हमारी बात भी होती है।
- आज के युवा ज्यादा प्रैक्टिकल हैं और वे अपना फायदा सबसे पहले देखते हैं।
- आज वीकेंड में अपने रिश्तेदारों के पास जाने का किसी के पास समय नहीं है, सो पार्टी, गैट-टूगैदर या पिकनिक अपने कलीग्स या फ्रैंड्स के साथ करने से भी लोगों की सोच में हर दिन बदलाव आने लगा है।

थोड़ा सा बदलना जरूरी

आज एक बार फिर से यह सोचने और समझने की जरूरत है कि आप हर रिश्ते को नफा और नुक्सान से जोड़ कर नहीं देख सकते, कुछ रिश्ते आपको भावनात्मक भी बनाने पड़ेंगे, क्योंकि यही रिश्ते आड़े वक्त पर सही मायने में आपके काम आते हैं।
- रिश्ते बनाते समय जरूरत वाली सोच को अलग रखें।
- रिश्तों में प्यार एवं अपनेपन को जगह दें तथा उसकी भावनाओं का सम्मान करें।
- कई बार सामने वाले के ङ्क्षलक्स भले ही ना हों, परंतु मुसीबत के समय वह आपको भावनात्मक सहारा दे सकता है, जिससे कि आपको उन परिस्थितियों से बाहर आने में सहायता मिलेगी। इसी प्रकार उसी जरूरत के समय आप भी उसके साथ हमेशा खड़े रहें।
- पैसा, शोहरत और रुतबा पाने के बावजूद भी कई बार हम स्वयं को बेहद अकेला महसूस करते हैं, ऐसे में जो दोस्त हमारे साथ दिल से जुड़े होते हैं, उस अकेलेपन को बांटने बिना किसी स्वार्थ के आपके पास पहुंच जाते हैं।
- यदि आप किसी से मतलब का रिश्ता बना रहे हैं, तो जाहिर सी बात है कि दूसरे ने भी मतलब को देख कर ही आपसे दोस्ती की होगी अर्थात जहां मतलब खत्म वहां दोस्ती खत्म होने में एक पल भी नहीं लगेगा।
- इसलिए अपने दोस्तों एवं करीबी लोगों को समय दें तथा उनसे एक प्यारा सा रिश्ता हमेशा बना कर रखें।
- रिश्तों का अर्थ केवल लेन-देन ही नहीं होता और ना ही यह सोचे कि आपने महंगा उपहार दिया और सामने वाले ने सस्ता दिया, इस तरह की सोच रिश्तों में अंतर ही लाएगी। 
- रिश्ते को रिश्ता ही रहने दें, उसमें व्यापार की भावना को घर ना बनाने दें।
- आप जिस समय रिश्तों में अपनी कैल्कुलेशन वाली सोच बदल देंगे, तो रिश्तों को निभाने का वक्त भी मिलने लगेगा और मन में यह खुशी भी होगी कि आपके पास कुछ ऐसे रिश्ते हैं, जो कि ताउम्र आपका साथ देंगे, भले ही जीवन में परिस्थितियां कैसी भी आ जाएं।

 

 

 


- हेमा शर्मा


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