शरीर के लिए अमृत है गोवर्धन पूजा में बनने वाला अन्नकूट, सप्लीमेंट से ज्यादा पौष्टिक है ये प्रसाद
punjabkesari.in Tuesday, Oct 21, 2025 - 04:06 PM (IST)

दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा या अन्नकूट उत्सव हिंदू धर्म में समृद्धि, कृतज्ञता और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विशेष रूप से अन्नकूट के रूप में की जाती है, जिसका अर्थ होता है अन्न का पर्वत। अन्नकूट उत्सव सिर्फ धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पोषण से भी गहराई से जुड़ा है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाने वाले विविध व्यंजन न केवल स्वाद में लाजवाब होते हैं, बल्कि शरीर के लिए पौष्टिकता का खज़ाना भी साबित होते हैं। चलिए जानते हैं कैसे।

विविधता में पोषण
‘अन्नकूट’ शब्द दो शब्दों से बना है अन्न यानी भोजन और कूट यानी ढेर या पर्वत। इस दिन भक्तजन तरह-तरह के व्यंजन बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करते हैं, जिससे प्रतीकात्मक रूप से अन्न का एक ‘पर्वत’ तैयार होता है। अन्नकूट में अनाज, दालें, सब्जियां, दूध, घी और मिठाइयां जैसे अनेक खाद्य पदार्थ शामिल किए जाते हैं। यह मिश्रण शरीर को सभी ज़रूरी प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम और विटामिन प्रदान करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि संतुलित भोजन ही असली प्रसाद है।
मन की शांति और संतुलन
अन्नकूट के दिन पकवान घर पर ही शुद्ध घी और देसी सामग्री से बनाए जाते हैं। बिना किसी प्रिज़र्वेटिव या मिलावट के ये भोजन शरीर को डिटॉक्स करने और पाचन को सुधारने में मदद करते हैं। भक्ति भाव से अन्न तैयार करना और उसे भगवान को अर्पित करना मन में सकारात्मक ऊर्जा और शांति भर देता है। यह फूड मेडिटेशन का एक सुंदर रूप है जो तनाव कम करता है। अन्नकूट में शामिल सब्ज़ियां और फल उसी मौसम के अनुसार चुने जाते हैं - जैसे लौकी, कद्दू, आलू, चना, मूंग आदि जो सर्दियों की शुरुआत में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।

साझा भोजन, साझा स्वास्थ्य
अन्नकूट का सबसे सुंदर पहलू है साझा प्रसाद। यह परंपरा हमें सिखाती है कि जब हम भोजन को बांटते हैं, तो न केवल आनंद बढ़ता है बल्कि स्वास्थ्य और सामाजिक संबंध भी मजबूत होते हैं। भक्ति से बना भोजन सिर्फ स्वाद नहीं देता, बल्कि तन और मन दोनों को स्वस्थ करता है। अन्नकूट केवल भोजन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, अन्न और भगवान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। यह हमें सिखाता है कि समृद्धि का असली अर्थ केवल धन नहीं, बल्कि साझा करना, सेवा और भक्ति है।
परंपरा की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, एक बार वृंदावनवासी इंद्र देव की पूजा की तैयारी कर रहे थे, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि असली कृतज्ञता तो उस गोवर्धन पर्वत को देनी चाहिए, जो हमें जल, चारा और जीवन का सहारा देता है। लोगों ने इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इससे क्रोधित होकर इंद्र ने मूसलाधार वर्षा कर दी, तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाकरसबको आश्रय दिया। इसी घटना की स्मृति में हर साल गोवर्धन पूजा और अन्नकूट मनाया जाता है।