इस दिन करें गोवर्धन पूजा, जानिए अन्नकूट पर्व की पूजा विधि और महत्व
punjabkesari.in Sunday, Nov 12, 2023 - 02:06 PM (IST)
दीवाली का त्योहार 5 दिन का होता है और इसकी शुरुआत धनतेरस के साथ हो जाती है। धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी, फिर दीवाली, इसके बाद गोवर्धन पूजा व भाई दूज के साथ दीवाली खत्म होती है। इन सभी त्योहारों का खास महत्व है। दीवाली के बाद गोवर्धन पूजा होती है। ब्रज क्षेत्र समेत देश के कई सारे हिस्सों में इस पर्व का बहुत ही खास महत्व होता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहते हैं। यह पूजा अलग तरीके से की जाती है। तो चलिए आपको बताते हैं कि गोवर्धन पूजा का क्या महत्व है।
कब है गोवर्धन पूजा?
गोवर्धन पूजा दीवाली के अगले दिन होती है। पंचागों के अनुसार, कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 13 नवंबर को दोपहर 02: 56 मिनट पर होगी और इसका समापन 14 नवंबर को दोपहर 02:36 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को मनाई जाएगी।
कैसे मनाया जाता है यह पर्व?
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पर्व भी कहते हैं। यह पर्व बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है। यह पूजा मुख्यतौर पर ब्रज क्षेत्र में होती है लेकिन इस त्योहार को देश के अलग-अलग कोनों में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाया जाता है। ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन यानि की अन्नकूट के दिन गाय के गोबर से घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत व भगवान कृष्ण की आकृति बनाई जाती है। इस आकृति के पास ही गोबर से ही ग्वाले, गाय, पशु आदि भी बनाए जाते हैं। इसके साथ ही इस आकृति के बाद घी का दीपक और भोग के लिए मीठे पुए रखे जाते हैं। इसके बाद घर के पुरुष हाथ में खील लेकर गोवर्धन प्रतिमा की 7 बार परिक्रमा लगाते हैं और भगवान कृष्ण का ध्यान करते हैं। इसके बाद घर की महिलाएं भी पूरे विधि-विधान के साथ गोवर्धन पूजा करते हैं। इसके बाद वहां रखे कच्चे दूध व मीठे पुए का भोग लगाया जाता है और उसे प्रसाद के तौर पर घर के सदस्यों में बांटा जाता है।
क्यों कहा जाता है इस पर्व को अन्नकूट?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलाधार बारिश से बचाने के लिए अपनी एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था। इस पर्वत के नीचे सभी नगरवासी और पशु इकट्ठा हो गए थे। भगवान श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर रखा। इस दौरान लोग वहां अपने-अपने घर लाया गया अन्न इकट्ठा करते हैं और उसे मिलजुल कर खाते हैं। घर-घर से आया हुआ अलग-अलग तरीके का पकवान व भोजन मिलकर खाया इसलिए इसे अन्नकूट भी कहते हैं। इस दिन मंदिरों में भी अन्नकूट बनता है और प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।