घर में किसी की मृत्यु के बाद क्यों नहीं जलता चूल्हा ? गरुड़ पुराण में बताई गई है इसकी वजह

punjabkesari.in Thursday, Sep 26, 2024 - 01:41 PM (IST)

नारी डेस्क:  घर में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो दाह संस्कार करने के साथ ही एक तरह का सूतक शुरू हो जाता है। इस दौरान उस परिवार के सदस्यों का किसी भी धार्मिक कामों के साथ-साथ किसी मंदिर में जाना वर्जित हो जाता है।  गरुड़ पुराण में मृत्यु से संबंधित जुड़ी क्रियाओं के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसमें मृत्यु के बाद की जाने वाली क्रियाओं को विधिवत तरीके से वर्णित किया गया है।  आइए इन कारणों को समझते हैं।

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शौच (सूतक) की स्थिति

परिवार में मृत्यु होने पर घर में अशौच(या सूतक) की स्थिति मानी जाती है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इस दौरान परिवार के सभी सदस्यों पर शोक की छाया होती है, और अशुद्धता का समय होता है।ऐसे में धार्मिक गतिविधियां, पूजा-पाठ, या किसी भी पवित्र कार्य से दूर रहना चाहिए। अशौच की अवधि आमतौर पर 10-13 दिन होती है, जो परिवार के परंपराओं और मान्यताओं पर निर्भर करती है।

 

शोक और शुद्धिकरण

मृत्यु के बाद परिवार शोक की स्थिति में होता है। शोक के दौरान पूजा-पाठ न करने का कारण यह है कि व्यक्ति मानसिक और भावनात्मक रूप से अस्थिर होता है, और उसकी ध्यान शक्ति धार्मिक क्रियाओं के लिए अनुकूल नहीं होती। परिवार के शुद्धिकरण की प्रक्रिया समाप्त होने तक धार्मिक अनुष्ठान स्थगित रहते हैं।

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चूल्हा जलाने पर रोक

मृत्यु के बाद घर में  चूल्हा जलाने की मनाही  होती है क्योंकि इसे एक प्रतीकात्मक संकेत माना जाता है कि परिवार के सदस्य का निधन हो चुका है, और घर में शोक की स्थिति है। इसे भी शुद्धता से जोड़ा जाता है, और कई बार परिवार के सदस्य इस दौरान बाहर से भोजन ग्रहण करते हैं या अन्य रिश्तेदारों के यहां से भोजन लाते हैं। इसके पीछे यह भी विश्वास है कि मृत्यु के बाद आत्मा का अंतिम संस्कार पूरा होने तक घर में शुद्धिकरण की आवश्यकता होती है, और इस प्रक्रिया में भोजन या पकाने का कार्य करना उचित नहीं माना जाता।

 

आत्मा की शांति

हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा एक नए यात्रा पर जाती है और इस दौरान घर के सदस्य मृतक की आत्मा की शांति के लिए ध्यान और प्रार्थना करते हैं। पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों से आत्मा को मोक्ष दिलाने का कार्य 13वें दिन (तेरहवीं) या श्राद्ध कर्म के समय किया जाता है। इस दौरान पूजा-पाठ से दूर रहना इसलिए होता है ताकि मृतक की आत्मा को पूरी तरह से सम्मान और शांति मिले।

 

धार्मिक और सामाजिक परंपराएं

यह परंपरा सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी पीढ़ियों से चली आ रही है, और इसका पालन करना परिवार की परंपराओं और समाज के नियमों के अनुसार आवश्यक होता है। इन सभी कारणों से मृत्यु के समय पूजा-पाठ की मनाही होती है और चूल्हा नहीं जलाया जाता। यह शोक और शुद्धिकरण की एक प्रक्रिया मानी जाती है, जो कि मृतक के प्रति सम्मान और परिवार की मानसिक स्थिति को देखते हुए निर्धारित की गई है।
   


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Content Writer

vasudha

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