पीरियड्स के दिनों में खुले में नहाती हैं इस गांव की महिलाएं

punjabkesari.in Friday, Jun 08, 2018 - 02:11 PM (IST)

महिलाएं को हर महीने के पांच दिन पीरियड्स की तकलीफ से गुजरना पड़ता है। इस दौरान औरतों को खुद की साफ-सफाई का खास ख्याल रखना पड़ता है। अगल समय पर सेनेटरी नैपकीन को न बदला जाए तो इससे इंफैक्शन होना का भी डर रहता है। इसी बात को गंभीरता से लेते हुए जहां आज बहुत सी संस्थाएं पीरियड्स को लेकर गांव-गांव जाकर जागरूकता फैला रही है, वहीं देश में एक गांव ऐसा भी है जहां आज के मॉडर्न लाइफस्टाइल के होते हुए भी औरतें पीरियड्स के दिनों में खुले में नहाने के लिए मजबूर है। 

 

यह गांव है उत्तर प्रदेश में स्थित बुन्देल खंड का गांव मसोरा कला। जहां पर महावारी के मुश्किल दिनों में भी औरतें घर से बाहर खुले में नहाती है। इसके पीछे की वजह है कि उनके घरों में नहाने और शौच जाने के लिए औरतों तो क्या मर्दो के लिए भी कोई स्थान नहीं है। इसी कारण महिलाएं इस हालत में भी खुले में नहाने को मजबूर हैं। कोई निजी आड़ न होने के कारण औरतों को सारा दिन एक ही कपड़ें में रहना पड़ता है, जो किसी भी तरीक से हाइजीन नहीं है। 


पीरियड्स की शर्म को कारण वह इस्तेमाल होने वाला कपड़ा खुले स्थान पर न तो बदल पाती है और न ही धो पाती हैं। इसके लिए उन्हें सूरज छिपने का इंतजार करना पड़ता है। अंधेरे में पीरियड्स वाले गंदे कपड़े न तो सही तरह से साफ हो पाते हैं और धूप में न सूखाए जाने के कारण ये संक्रमण का भी कारण बनते हैं। वहीं इस गांव की ज्यादातर महिलाएं ल्यूकोरिया यानि सफेद पानी की बीमारी से भी ग्रस्त हैं। इसका एक बड़ा कारण पीरियड्स के दौरान सफाई न रखना भी हो सकता है। 

 


महिलाओं को होने वाली इस सबसे बड़ी परेशानी को देखते हुए 'गूंज' संस्था महसूस किया कि इस गांव की महिलाओं को यह बहुत बड़ी परेशानी है। गूंज के क्लॉथ फॉर वर्क (काम के बदले कपड़े) अभियान के तहत गांव वालों ने खुद महिलाओं के लिए प्लास्टिक की शीट और बांस की बल्लियों से स्नान-घर व शौचालय बनाए हैं। जिससे अब उनको इस समस्या से कुछ राहत तो मिली है लेकिन इसके लिए अभी और काम करना बहुत जरूरी है। इस बारे में इस संस्था का कहना है कि किसी बदलाव को लाने के लिए संवाद करना बहुत जरूरी है। जिससे परेशानियों को कॉफी हद तक सुलझाया जा सकता है। 
 

Punjab Kesari