डाउन सिंड्रोम का शिकार हो रहे हैं बच्चे, लक्षणों की ना करें अनदेखी

punjabkesari.in Saturday, Mar 23, 2019 - 12:05 PM (IST)

डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक रोग है, जो बच्चों में होता है। यह जन्मजात होने वाली गंभीर बीमारियों में से एक है। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास सामान्य बच्चों की तुलना में काफी धीरे होता है। यह बीमारी भ्रूण में क्रोमोजोम की मात्रा बढ़ने के कारण होती है। अगर आपको अपने बच्चे में इस बीमारी के लक्षण दिखें तो शुरुआत से ही उसकी सही देखभाल करके इस सिंड्रोम में काबू पा सकते हैं।

 

डाउन सिंड्रोम के लक्षण

कई बच्चों के चेहरे पर अजीब से लक्षण दिखते हैं, जैसे कान छोटा होना, चेहरा सपाट होना, आंखों का तिरछापन, जीभ बड़ी होना आदि। बच्चों की रीढ़ की हड्डी में भी विकृत हो सकती है। जैसे-जैसे महिला की उम्र बढ़ती है, डाउन सिन्‍ड्रोम के साथ बच्चे पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। डाउन सिन्‍ड्रोम का इलाज नहीं किया जा सकता लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर इस सिंड्रोम से ग्रसित बच्चे का जीवन बेहतर बनाया जा सकता है।

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आम बच्चों से अलग

हालांकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ इनमें ताकत बढ़ने लगती है लेकिन इन बच्चों की मांसपेशियां आम बच्चों के मुकाबले कमजोर होती हैं। जिसकी वजह से इस तरह के बच्‍चे आम बच्‍चों की तरह बैठना, घुटने चलना एवं पैर पर चलना सीख जाते हैं लेकिन दूसरे बच्चों से धीमे होते हैं। जन्म के समय इन बच्चों का आकार एवं वजन दूसरे बच्चों की तरह ही सामान्य रहता है लेकिन उम्र के साथ इनकी ग्रोथ धीमी होने लगती है।

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कई रोगों का रहता है खतरा

डाउन सिन्‍ड्रोम के बच्चे कई तरह के जन्म दोषों के साथ पैदा हो सकते हैं। प्रभावित बच्चों में से क़रीब 50 फीसदी को दिल की बीमारी होती है। इसके अलावा इनमें पाचन संबंधी समस्‍याएं, हाइपोथायरायडिज्‍म, सुनने व देखने की समस्‍या, रक्‍त कैंसर, अल्‍जाइमर आदि तरह की समस्‍या होने की संभावना रहती है।

 

पेरेंट्स क्या करें?

पेरेंट्स को जरूरत है कि वे ऐसे मौके पर परेशान होने की बजाय तसल्ली से काम लें।

बच्चे की ऐसी हालत को लेकर खुद को या बच्चें को दोष बिल्कुल ना दें बल्कि इसके इलाज के बारे में समझदारी से काम लें।

गुमराह करने वाली सलाहों और चमत्कारी इलाज के झांसे में वक्त बर्बाद न करें। किसी अच्छे डॉक्टर से सलाह लें।

जरूरत से ज्यादा बच्चे की फिक्र करना भी सही नहीं है। ओवर प्रोटेक्शन बच्चे की मदद के बजाए उसकी स्वाभाविक बढ़त और विकास में बाधा पहुंचा सकता है। 

दूसरे बच्चे से अपने बच्चे की तुलना करने की भूल बिल्कुल न करें।

बच्चे को बहुत प्यार दें और सहनशीलता से काम लें।

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Content Writer

Anjali Rajput

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