दिवाली पर इस गांव में नहीं जलाया जाता एक भी दीपक, पूरी रात रहते हैं अंधेरे में...
punjabkesari.in Monday, Oct 20, 2025 - 01:08 PM (IST)

नारी डेस्क : जब पूरे देश में कार्तिक अमावस्या की रात दीपों की रौशनी से जगमगाती है, हर घर में पूजा, पटाखे और मिठाइयों का उत्सव मनाया जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के कुछ गांव ऐसे भी हैं, जहां दिवाली की रात सन्नाटा पसरा रहता है। यहां के लोग इस दिन न तो दीप जलाते हैं, न रंगोली बनाते हैं, न कोई उत्सव मनाते हैं।
क्यों नहीं मनाई जाती दिवाली?
इन गांवों के चौहान वंश के क्षत्रिय परिवारों के लिए दिवाली खुशी का नहीं, बल्कि शोक और स्मरण का दिन होती है। कहा जाता है कि इसी दिन मुहम्मद गोरी ने वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी, जिन्हें ये लोग अपना पूर्वज और गौरव का प्रतीक मानते हैं। इसलिए दिवाली के दिन ये परिवार खुशियां मनाने के बजाय अपने नायक को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। दिवाली की रात इनके घरों में अंधेरा छाया रहता है, केवल एक दीपक जलाकर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। पूजा के बाद वह दीपक भी बुझा दिया जाता है, और पूरा परिवार शांतिपूर्वक और श्रद्धा से भरी रात बिताता है। बिना किसी उत्सव, रोशनी या शोरगुल के।
सदियों पुरानी परंपरा
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां के लोग अपने वीर पूर्वज के बलिदान की याद में इस दिन उत्सव नहीं मनाते। हालांकि, दिवाली की खुशी वे पूरी तरह मिटाते नहीं। पांच दिन बाद, एकादशी के दिन, ये परिवार “अपनी दिवाली” मनाते हैं। उस दिन घरों में दीप जलते हैं, मिठाइयां बनती हैं और पूरा गांव खुशियों में डूब जाता है।
एक अनोखी परंपरा जो जोड़ती है इतिहास से
जब पूरा देश दिवाली की रौशनी, सजावट और खुशियों में डूबा होता है, तब उत्तर प्रदेश के ये गांव अपने वीर पूर्वजों की शहादत को याद करते हैं। यहां की यह परंपरा केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि शौर्य और बलिदान की भावना को जीवित रखने का प्रतीक है। इन गांवों के लोग दीपक न जलाकर भी अपने इतिहास को रोशन करते हैं। क्योंकि उनके लिए यह दिन उत्सव से ज्यादा सम्मान और स्मरण का दिन है। यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाती है कि त्योहार केवल खुशी नहीं, बल्कि अपने अतीत से जुड़ाव और संस्कारों की निरंतरता भी हैं।