1968 में पहली बार लोगों ने महसूस किया था मां का दर्द, इससे पहले Postpartum Depression से बिल्कुल अंजान थे सब

punjabkesari.in Sunday, Nov 16, 2025 - 11:24 AM (IST)

नारी डेस्क: बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं के शरीर में जितने बड़े शारीरिक बदलाव होते हैं, उतने ही गहरे मानसिक बदलाव भी होते हैं। कई बार समाज और परिवार सिर्फ बच्चे पर ध्यान देता है, लेकिन मां की मानसिक सेहत उतनी ही ज़रूरी है। इसीलिए बच्चे के जन्म के बाद मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना बेहद आवश्यक है नहीं तो नई मां प्रसवोत्तर अवसाद (Postpartum Depression) का शिकार हाे जाती है। प्रसवोत्तर अवसाद का इलाज दवाओं, परामर्श और जीवनशैली में बदलावों से किया जा सकता है, और जल्द से जल्द मदद लेना महत्वपूर्ण है।

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1968 से  पहले Postpartum Depression को लेकर अलग थी सोच

“प्रसवोत्तर अवसाद” (Postpartum Depression – PPD) की अवधारणा आज जितनी स्पष्ट है, वैसी हमेशा नहीं थी। 1968 एक महत्वपूर्ण वर्ष माना जाता है क्योंकि यही वह समय था जब चिकित्सा विज्ञान ने पहली बार प्रसव के बाद होने वाले अवसाद को एक विशिष्ट मानसिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में औपचारिक रूप से पहचानना शुरू किया। 1968 से पहले डॉक्टर और समाज इसे “मां की कमजोरी”, “भावनात्मक प्रतिक्रिया” या “नया बच्चा संभालने का दबाव” मानकर नज़रअंदाज़ कर देते थे। 1968 में “Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders (DSM-II)” में मानसिक स्वास्थ्य विकारों का नया वर्गीकरण आया। उसी अवधि में मानसिक रोग विशेषज्ञों ने पहली बार प्रसव के बाद होने वाले गंभीर अवसाद को एक अलग चिकित्सकीय स्थिति के रूप में चर्चा और शोध में शामिल किया।


पहले clinical depression का मिला नाम 

इसी समय से डॉक्टरों ने मानना शुरू किया कि यह केवल भावनात्मक समस्या नहीं, बल्कि एक हार्मोनल + मानसिक स्वास्थ्य विकार है।”मनोचिकित्सकों ने पहली बार इसे clinical depression का रूप माना। शोधपत्रों में "postpartum psychiatric disorder" के रूप में चर्चा बढ़ी। 1980 में DSM-III आया और प्रसवोत्तर मनोवैज्ञानिक विकारों को और स्पष्ट जगह मिली। 1990 के दशक में इसे postpartum depression के रूप में आधिकारिक मान्यता मिली। अब इसे विश्वभर में एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या माना जाता है।  1968 वह साल था जब दुनिया ने पहली बार वैज्ञानिक रूप से मानना शुरू किया कि बच्चे के जन्म के बाद होने वाला अवसाद – एक मेडिकल कंडीशन है, न कि मां की कमजोरी।

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पोस्ट-पार्टम डिप्रेशन क्या है? 

डिलीवरी के बाद होने वाला यह एक मानसिक और भावनात्मक तनाव  है जिसमें मां बहुत उदास रहती है, बिना वजह रोने लगती है, बच्चे से दूरी महसूस करती है,  खुद को योग्य मां नहीं समझती और  गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। ये साधारण “बेबी ब्लूज़” नहीं हैयह एक *गंभीर मानसिक स्थिति है, जिसका इलाज ज़रूरी होता है।

 

मां की मानसिक सेहत बिगड़ने के कारण

हार्मोनल बदलाव बेहद तेज़ होते हैं: डिलीवरी के बाद हार्मोन अचानक गिर जाते हैं, जिससे मूड स्विंग, चिंता, घबराहट होती है। रात–रात भर बच्चे को सुलाना, स्तनपान ये सब मानसिक थकान बढ़ाते हैं। सिजेरियन हो या नॉर्मल, शरीर को ठीक होने में समय लगता है। दर्द और कमजोरी मनोस्थिति पर असर डालते हैं। कई बार पति का सहयोग न मिलना, ससुराल का दबाव, “अच्छी मां बनो” जैसी बातें महिला को भावनात्मक रूप से कमजोर कर देती हैं। सारा समय बच्चे में जाने से मां अपनी पहचान और स्वतंत्रता खोने लगती है।

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Content Writer

vasudha

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