Women Power: शारीरिक असमर्थता से नहीं हारी हेलन, हिम्मत व साहस से लेखन क्षेत्र में बनाई पहचान
punjabkesari.in Thursday, Jun 27, 2019 - 04:00 PM (IST)
जब खुद पर विश्वास हो और साहस हो तो हमारे सामने कोई भी बाधा आ जाए वह हमारे लिए छोटी सी चुनौती की तरह लगती हैं। हर चुनौती से निपटने के लिए थोड़े से दर्द को सहना पड़ता है , लेकिन अगर उसे जीतने की हिम्मत हो तो उस चुनौती को हरा कर जीत हासिल की जा सकती हैं।
आज आपको ऐसी ही एक शख्सियत हेलन केलर के बारे में बताने जा रहे है, जिनका जन्म 27 जून 1880 में हुआ था। अमेरिका की हेलन बचपन से ही बाधिर व दृष्टिहीन नही थी। 19 महीने में दिमाग के बुखार के कारण उनकी आंखें व सुनने की शक्ति चली गई लेकिन बड़े होकर इसे इस चीज से फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने अपनी हिम्मत से अध्ययन, लेखन व रचना के अलग अलग क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। 1904 में वह पहली महिला बनी जिसने दृष्टिबाधित होने के बाद भी डिग्री हासिल की।
दुखों से भरा जीवन
हेलन का बचपन बहुत ही दुखों से भरा रहा, क्योकि न ही वह कुछ सुन पाती थी न ही देख पाती थी, जिस कारण उसे अपनी बात समझाने में व दूसरों की बात समझने में काफी दिक्कत होती थी। अगर उसे को बात समझानी होती थी तो वह इशारों में समझाती। मना करने के लिए गर्दन दाएं बाएं, हां कहने के लिए गर्दन ऊपर नीचे, बाहर जाने के लिए किसी का कपड़ा पकड़ना, किसी चीज के पसंद न आने पर उसे दूर धक्का दे देेना, ब्रेड खानी होती तो अपने हाथों से कुछ काटने का इशारा करती थी। धीरे धीरे उसे समझ आने लगा कि वह दूसरे लोगों से काफी अलग है, वह हाथों के इशारे से होंठ हिलने की कंपन तो महसूस करती लेकिन कुछ बोल नहीं पाती थी।
जब मारने वाली थी अपनी ही बहन को
अपनी आत्मकथा ' द स्टोरी ऑफ माई लाइफ ' में हेलन ने बताया कि एक बारे मैंने अपनी सारी नाराजगीं व गुस्सा नैंसी पर उतार दिया था। मां उसे सुलाते हुए अकसर लोरी सुनाती थी, तो मुझे काफी गुस्सा आता था। एक बार वह पालने में सो रही थी मैं उसे बाहर फेकने के लिए पालना पलट दिया। तभी मां वहां पहुंच गई उन्होंने उनसे संभाल लिया। अगर मां न आती तो शायद वह उस दिन मर जाती।
एनी सुलिवान उनके लिए बनी फरिश्ता
परिवार के सदस्यों ने पाया की हेलन की आखें तो वापिस नहीं आ सकती है, तो सब रिश्तेदारों ने हिम्मत हार दी थी वह न ही पढ़ लिख पाएगी न ही बोल पाएगी। लेकिन मां को यकीन था कि पढ़ सकती है इसलिए उसे पार्किस इंस्टीट्यूट फॉर द ब्लाइंड में भेजा गया। इसके बाद एनी सुलिवान हेलेन की पहली टीचर बनी जिन्होंने चीजों को महसूस कर के उन्हें पढ़ाना शुरु किया। हेलेन को पहला अक्षर सीखाते हुए उन्होंने उसे गुडिया हाथ में पकड़ा दी। हेलन ने इस अभ्यास से जल्द ही तंग होकर उन्हें कमरे में बंद कर दिया और एनी काफी घंटों तक उसी कमरे में बंद रही।
इन पलों को याद करते हुए हेलन लिखती हैं, ‘मैं भाषा के रहस्य को समझ गयी थी. पानी का मतलब एक ऐसी अद्भुत चीज थी जो ठंडी थी और मेरे हाथों पर बह रही थी। इस एक शब्द ने मानो मेरी आत्मा को जगा दिया, मुझे रोशनी और उम्मीद के साथ तमाम खुशियां इसी पल में मिल गयी थीं, मेरी आंखों में आंसू थे।
पहली कहानी के लिए उन पर चोरी का इल्जाम लगा
11 साल की हेलन ने जब बोलना व लिखना शुरु किया तो वह किताबें पढ़ कर ऊब चुकी थी, वह कुछ और करना चाहती थी। इसी बीच उसने ‘द फ्रॉस्ट किंग’ नाम से कहानी लिखी। उसे नहीं पता कि यह कहानी उसने कहा से सोची, लेकिन सब वह सुन कर हैरान रह गए। हेलन ने अपनी यह कहानी स्कूल डायरेक्टर को भेजी। इन लम्हों को याद कर हेलन लिखती हैं, ‘यह मेरे लिए हवा में उड़ने जैसा एहसास था.’। उन्होंने हेलन की इस कहानी को प्रकाशित करवा दिया। फिर उस पर कॉपीराइट कानून उल्लंघन का मामला लगा था। इसके बाद हेलन कुछ भी लिखने से डरती थी लेकिन उन्होंने 1903 में अपनी आत्मकथा लिखी। इसके बाद अपनी पूरी जिंदगी में हेलन ने 12 किताबों के अलावा कई आलेख लिखे।
समाजिक कार्यों में भी रही आगे
1915 में हेलन ने अपने साथियों के साथ मिलकर ‘हेलन केलर अंतरराष्ट्रीय संगठन’ की स्थापना की, जो दृष्टि, स्वास्थ्य एवं पोषण से संबंधित कार्य करती थी। इसके बाद हेलन ने 1924 में दृष्टिहीनों के हितों के लिए बनी संस्था ‘अमेरिकन फाउंडेशन फॉर द ब्लाइंड्स’ के लिए काम करना शुरू किया। इसके अतिरिक्त भी उन्होंने कई समाजिक कार्य किए इसके चलते उन्होंने पूरी विश्व की यात्रा भी की। 1909 से लेकर 1921 तक हेलन ने समाजवाद और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर लिखे आर्टिकल को ‘आउट ऑफ द डार्क’ नाम से प्रकाशित किया । 1943 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अस्पतालों में भर्ती अपाहिज हुए सैनिकों और लोगों की मदद की। जिसके बाद उन्हें 1948 में अमेरिका की तरफ से पहला सद्भावना दूत बनाकर जापान भेजा गया।