मोटिवेशनल स्पीकर आयशा पर बन रही 'द स्काई इज पिंक' फिल्म, जानिए कौन है ये लड़की

punjabkesari.in Wednesday, Sep 11, 2019 - 01:58 PM (IST)

जिदंगी चाहे कितनी भी छोटी क्यों न हो लेकिन उसका बिताया हुआ हर पल खास होना चाहिए। जिंदगी चाहे लंबी हो या न हो बड़ी जरुर होनी चाहिए। असली जिंदगी वहीं होती है जब मौत के बाद भी व्यक्ति दुनिया में रह कर लोगों को प्रेरित करता रहे। 4 साल पहले18 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाली आयशा चौधरी की किताब ' My Little epiphanies' आज हर किसी को प्रेरित कर रही हैं। छोटी सी उम्र में ही दुनिया को अलविदा कहने वाली आयशा पर बॉलीवुड में ' द स्काई इज पिंक ' फिल्म बन रही हैं। जिसका हाल ही में ट्रेलर लांच किया गया हैं। 

इस फिल्म में आयशा का रोल जायरा वसीम व उसके माता पिता का रोल प्रिंयका चोपड़ा व फरहान अख्तर निभा रहे है। इस फिल्म को डायेक्टर शोनाली बोस डायरेक्ट कर रहे है। मंगलवार को इसका ट्रेलर लांच किया गया हैं। 

सबको प्रेरित करती है आयशा 

4 साल पहलेे जब आयशा किताब ' My Little epiphanies '   23 जनवरी 2015 को प्रकाशित हो कर आई थी और  24 जनवरी को उसकी मौत हो गई थी। इतनी छोटी उम्र में बीमारियों से ग्रस्त होने के बाद भी आयशा अपने जीवन से कभी निराश नही थी, वह दूसरों को जीवन में प्रेरित करती थी। इस उम्र में उसने TEDx, INK जैसे बड़े प्लेटफॉर्म पर स्पीच दी थी। 13 साल की उम्र में ही आयशा ने जिंदगी को इतनी करीबी से देख लिया था कि वह लोगों को मोटिवेट करने के लिए स्पीच देती थी। 

जन्म से थी SCID से ग्रस्त

दिल्ली के निरेन चौधरी और अदिति चौधरी के घर 27 मार्च 1996  को जन्म लेने वाली आयशा जन्म से ही SCID( Severe Combined Immuno- Deficiency) से ग्रस्त थी। जिस कारण 6 महीने की उम्र में उसका बोन मैरो ट्रांसप्लांट हुआ था, क्योंकि अगर इस समय उसका बोन मैरो ट्रांसप्लांट न होता तो वह 1 साल तक ही जीवित रहती। इसके बाद भी आयशा के जीवन से मुश्किलें कम नही हुई 13 साल की उम्र में वह pilmonary fibrosis बीमारी से ग्रस्त हो गई थी। जिस कारण उसके फेफड़े सिर्फ 20 प्रतिशत ही काम करते थे। इन सब मुश्किलों के बाद भी उसने कभी हार नही मानी थी।  

सामने मौत देखकर भी मुस्कराती थी आयशा

एक बार आयशा ने अपनी स्पीच में कहा था कि उसने कई रातें बिना सोए हुए बिताई है लेकिन वह घबराती नही क्योंकि उसे पता है कि वह मरने वाली है। जब उसे एक दिन मरना ही है तो फिर हर पल को जीना चाहिए। इस सब मुश्किलों के बाद भी आयशा हर रोज 5 हजार शब्द लिखती थी जिसने आज एक किताब का रुप लिया हुआ हैं। 

चलिए आपको बताते है क्या है SCID( Severe Combined Immuno- Deficiency)


इससे बच्चे बिना रोग प्रतिरोधक क्षमता सिस्टम के साथ पैदा होते है, जिस कारण एक मामूली जुकाम से भी उनकी मौत हो सकती हैं। इतना ही नही बोन ट्रांसप्लांट होने के बाद भी यह खतरा पूरी तरह कम नही हुआ था। 

 

 

Content Writer

khushboo aggarwal