अपने ही घर में पराई है स्त्री, शादी के सालों बाद भी नहीं मिल रहा मालिकाना हक
punjabkesari.in Thursday, May 15, 2025 - 02:58 PM (IST)

नारी डेस्क: भारत के कई राज्यों में सरकारें महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए स्टाम्प ड्यूटी (Stamp Duty) में छूट देती हैं। इससे ना सिर्फ आर्थिक फायदा हाेता है बल्कि यह समानता और सम्मान की की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पर समाज की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि अपनी घर की महिलाओं के मालिकाना हक संबंधी दस्तावेज एवं कागज उसके नाम करवाने में पुरुष अभी भी अधिक रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
किस राज्य में कितनी है छूट
राज्य पुरुषों के लिए स्टाम्प ड्यूटी महिलाओं के लिए छूट
दिल्ली 6% 4%
उत्तर प्रदेश 7% 6% (कभी-कभी 5% तक)
राजस्थान 6% 4% या 5%
मध्यप्रदेश 7.5% 4.5%
हरियाणा (शहरी) 6% 4%
पंजाब 6% 4%
बिहार 5.7% 2% तक की छूट
यह छूट हर राज्य में अलग-अलग हो सकती है, और समय-समय पर सरकार द्वारा संशोधित भी होती रहती है।
सरकार का उद्देश्य
इस छूट का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना है और जेंडर इक्वैलिटी को बढ़ावा देना है। सरकार का उद्देश्य है कि महिला सशक्तिकरण के जरिए समाज में उनका सामाजिक दर्जा बढ़े और कुछ हद तक इससे महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा में भी कमी आएगी क्योंकि संपत्ति पर अधिकार सुरक्षा का माध्यम बनता है। हालांकि कुछ जगह महिलाओं के नाम प्रोपर्टी तो है है, मगर निर्णय लेने का अधिकार पुरुषों के हाथ में ही है।
महिलाओं को क्यों नहीं मिल रहा उनका हक
कई परिवारों में अब भी यह धारणा है कि जमीन-जायदाद पुरुषों की होती है ।लड़की को “पराया धन” मानने की सोच अब भी प्रचलित है। दरअसल घर का पुरुष खुद को मुखिया मानता है और संपत्ति पर नियंत्रण रखना चाहता है। वहीं बहुत से लोगों को स्टाम्प ड्यूटी में मिलने वाली छूट के बारे में पता ही नहीं होता। कुछ मामलों में पैतृक संपत्ति महिलाओं को नहीं दी जाती या उनके अधिकारों को नजरअंदाज किया जाता है।
समाधान और बदलाव के प्रयास
पंजीयन व मुद्रांक विभाग राजस्थान के बीते पांच साल के आंकड़ों के अनुसार महिला के नाम रजिस्ट्री करवाने के मामले में 2 से 3 प्रतिशत की वृद्धि ही हुई है। इतने प्रचार प्रसार के बावजूद बीते वर्ष की तुलना में महिलाओं के नाम रजिस्ट्री कराने वाले दस्तावेजों की संख्या में मात्र एक प्रतिशत वृद्धि हुई है। हालांकि सरकारें अधिक प्रचार-प्रसार कर रही हैं ताकि महिलाएं संपत्ति में हिस्सेदार बनें। लीगल अवेयरनेस प्रोग्राम्स भी चलाए जा रहे हैं। महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को जागरूक किया जा रहा है, बावजूद इसके हालातों में ज्यादा सुधार नजर नहीं आ रहा है।