हिंदू धर्म में गंगा में ही क्यों किया जाता है अस्थि विसर्जन? गरुड़ पुराण में मिलता है इसका गहरा अर्थ

punjabkesari.in Sunday, Nov 23, 2025 - 06:20 PM (IST)

नारी डेस्क : सनातन धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद किए जाने वाले संस्कार केवल औपचारिकताएं नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से चली आ रही आध्यात्मिक परंपराएं हैं। इन्हीं में से एक है दाह संस्कार के बाद अस्थियों को पवित्र नदी, विशेषकर गंगा में विसर्जित करना। लेकिन आखिर गंगा में ही अस्थि विसर्जन क्यों सबसे श्रेष्ठ माना जाता है? इसका उत्तर पौराणिक ग्रंथों, विशेष रूप से गरुड़ पुराण में मिलता है।

शरीर पंचतत्वों से बना है—गरुड़ पुराण का सिद्धांत

गरुड़ पुराण के अनुसार मानव शरीर पांच तत्वों से निर्मित होता है।
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
दाह संस्कार के समय शरीर को अग्नि तत्व में विलीन कर दिया जाता है।
दाह संस्कार के बाद बची अस्थियां शरीर का अंतिम स्वरूप होती हैं, जिन्हें प्रकृति में विलीन करना आवश्यक माना जाता है।
इसीलिए अस्थियां पवित्र नदी में प्रवाहित की जाती हैं ताकि वे जल तत्व में समाहित हों और शरीर पूरी तरह पंचतत्वों में लौट जाए।

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गंगा में अस्थि विसर्जन का आध्यात्मिक महत्व

गंगा मोक्षदायिनी मानी जाती हैं: ग्रंथों में गंगा को “मोक्षदायिनी” कहा गया है। मान्यता है कि गंगा के जल में अस्थियां प्रवाहित करने से आत्मा को मोक्ष मिलता है और वह ऊपर के लोकों की ओर अग्रसर हो जाती है।

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पापों से मुक्ति का मार्ग: गरुड़ पुराण में वर्णित है कि गंगा का स्पर्श आत्मा के संस्कारों को शुद्ध करता है और जीवनकाल के कर्मों से मुक्ति दिलाता है।

पुनर्जन्म का चक्र समाप्त होने की मान्यता: पुराण कथाओं के अनुसार गंगा में विसर्जन करने से आत्मा को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है और उसका पुनर्जन्म का चक्र भी समाप्त हो सकता है।

राजा भगीरथ की कथा: गंगा क्यों हैं मोक्ष देने वाली नदी

पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए वर्षों तक कठोर तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरित हुईं। गंगा के इस दिव्य अवतरण के बाद ही उन्हें मोक्ष देने वाली पवित्र नदी का स्थान मिला। माना जाता है कि उनके जल का स्पर्श आत्मा को मुक्त करता है और उसे उच्च लोकों की ओर ले जाता है।

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इसी कारण— गंगा का जल अत्यंत पवित्र माना जाता है, आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्त करने में सहायक समझा जाता है, और गंगा को स्वर्ग से उतरी दिव्य धारा का स्वरूप प्राप्त होता है। इन्हीं मान्यताओं के कारण अस्थि विसर्जन के लिए गंगा नदी को सबसे श्रेष्ठ और मोक्षदायिनी माना गया है।

गंगा जल का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व

गंगा जल में प्राकृतिक शुद्धिकारी गुण पाए जाते हैं, जो हजारों वर्षों से चर्चा में हैं।
इसका विशिष्ट खनिज संयोजन जल को लंबे समय तक खराब नहीं होने देता। इसे आस्था के साथ जोड़कर "दैवीय ऊर्जा" का रूप भी माना गया है।
इस जल में विसर्जन आत्मा की ऊर्जा को हल्का करता है और उसे धरती के बंधनों से मुक्त करने में सहायक माना जाता है।

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अस्थि विसर्जन का धार्मिक समय और विधि

दाह संस्कार के बाद 3 दिन से लेकर 10 दिनों के भीतर अस्थियां एकत्र की जाती हैं।
फिर परिवार के सदस्य मंत्रों और विधि-विधान के साथ उन्हें पवित्र नदी में प्रवाहित करते हैं।
यह प्रक्रिया आत्मा के शांतिपूर्ण यात्रा का अंतिम चरण मानी जाती है।

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अस्थि विसर्जन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक तीनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्त्वपूर्ण परंपरा है। गंगा में अस्थियों का विसर्जन आत्मा को पापों से मुक्ति, शांति और मोक्ष प्रदान करने वाला पवित्र कर्म माना गया है। यही कारण है कि सदियों से लोग गंगा को जीवन और मृत्यु दोनों की यात्रा में सबसे पवित्र साथी मानते आए हैं।


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Content Editor

Monika

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