जब हनुमान जी की कृपा से प्रभु राम और परम भक्त तुलसीदास का हुआ था मिलन

punjabkesari.in Wednesday, Jul 30, 2025 - 02:37 PM (IST)

नारी डेस्क: रामचरित मानस के रचयिता संत तुलसीदास को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और माता जानकी के दर्शन उनके परम भक्त हनुमानजी ने कराये थे। तुलसीदास के गृह स्थल चित्रकूट के राजापुर में उनकी 528 वी जयंती गुरुवार को मनायी जायेगी जिसमें कथावाचक मुरारी बापू और अन्य दिव्य संतो के अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी भाग लेने की संभावना है। इस अवसर पर तुलसीदास की प्रतिमा का अनावरण किया जायेगा।     

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यहां हुआ था तुलसी दास का जन्म

रामचरित मानस की रचना कर भगवान राम के पावन चरित्र को विश्व व्यापी बनाने वाले संत गोस्वामी तुलसी दास की जन्म चित्रकूट के राजापुर में आत्मा राम दुबे नाम के एक गरीब ब्राह्मण के परिवार में संवत 1554 में हुआ था। तुलसीदास जन्म से ही विलक्षण थे। रोने की बजाय इनके मुंह से राम राम निकला था और जन्म के समय से ही इनके मुख में पूरे बत्तीस दांत मौजूद थे। जन्म के कुछ ही दिनों बाद इनकी मां हुलसी देवी का देहांत हो जाने के कारण तुलसी को मनहूस समझ कर इनके पिता ने घर से निकाल दिया। चुनिया नाम की महिला तुलसी का पालन पोषण करने लगी। उसी समय राजापुर आये चित्रकूट के संत नरहरिदास तुलसी को अपने आश्रम चित्रकूट ले आये और दीक्षा दे अपना शिष्य बना लिया। 


इस तरह हुई हनुमानजी से भेंट

गुरु नरहरिदास ने शास्त्रों के गहन अध्ययन के लिए तुलसी को काशी भेज दिया।  तुलसीदासजी ने श्रीरामचरित मानस की रचना की थी। उनके संबंध में माना जाता है कि उन्हें श्रीराम और हनुमानजी ने साक्षात् दर्शन दिए थे।  एक बार वे काशी में श्रीराम कथा सुना रहे थे, तभी उनकी भेंट हनुमानजी से हुई। हनुमानजी ने कहा कि श्रीराम के दर्शन चित्रकूट में होंगे, ये सुनकर तुलसीदास चित्रकूट के रामघाट पर पहुंच गए। एक बार माघ महीने की मौनी अमावस्या के दौरान रामघाट पर नदी में स्नान करने के बाद तुलसीदास वहीं बैठकर लोगों को चंदन लगा रहे थे, तभी वहां बाल रूप में श्रीराम तुलसीदास के पास आए और बोले कि बाबा हमें चंदन नहीं लगाओगे?

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तुलसीदास ने लिखी 12 पुस्तकें

हनुमानजी ने सोचा कि आज भी कहीं तुलसीदास भगवान को पहचानने में भूल न कर दें, इसलिए तोते का रूप धारण कर गाने लगे ‘चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर. तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर। श्रीराम ने स्वयं तुलसीदास का हाथ पकड़कर खुद के सिर पर तिलक लगा लिया और तुलसीदास के माथे पर भी तिलक लगाया।  कहा जाता है कि श्रीराम के दर्शन पाने के बाद ही तुलसीदास ने रामचरित मानस सहित 12 पुस्तकें लिख डाली। यह श्रीराम की ही तुलसीदास जी पर कृपा थी, जो वे महान ग्रंथों के रचयिता बन सके।


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vasudha

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