अच्छे शौक से नहीं बनेंगे बुढ़ापे में भुलक्कड़, डिमेंशिया का खतरा भी होगा कम

punjabkesari.in Saturday, Aug 18, 2018 - 01:12 PM (IST)

अगर आप बुढ़ापे में भूलने की बीमारी से परेशान होना नहीं चाहते तो अभी से ही कुछ अच्छे शौक पालना शुरू कर दीजिए। वैज्ञानिकों ने एक शोध में पाया है कि जवानी में किताबें पढ़ना, खेलना और आपसी मेलजोल की आदतों से बुढ़ापे में भी दिमाग शक्तिशाली बना रहता है। इससे डिमेंशिया का जोखिम भी कम होता है।

ब्रिटेन के कैमिब्रज विश्वविद्यालय के अध्धययन में पाया गया कि उम्र के साथ-साथ दिमाग का आकार भी छोटा होता जाता है लेकिन कुछ लोगों की स्मरण शक्ति और आईक्यू उम्र बढ़ने के बावजूद भी अच्छी बनी रहती है। शोधकर्त्ताओं का मानना है कि युवावस्था में दिमाग को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने से वह आगे भी लचीला बना रहता है।
 

'न्यूरोबायोलॉजी ऑफ एजिंग जर्नल' में प्रकाशित इस अध्ययन से जुड़े डॉक्टर डेनिस चान का कहना है कि हमारा दिमाग कुछ हार्डवेयर के साथ ही शुरूआत करता है लेकिन इसे ज्यादा अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। इसे संज्ञानात्मक रिजर्व कहा जाता है। उनका कहना है कि 35 से 65 साल क बीच आप जो कुछ भी करते हैं, उससे 65 की उम्र के बाद डिमेंशिया का खतरा कम या ज्यादा होता है।

क्या कहती है रिसर्च
शोधकर्ताओं ने 66 से 88 साल की उम्र मके 205 लोगों के दिमाग का एम.आर.आई किया। इसके बाद उनका आईक्यू टैस्ट लिया गया और उनके शौक के बारे में पूछा गया। उनके शौक को बौद्धिक, शारीरिक और समादिक गतिविधियों की तीन हिस्सों में बांटा गया। शोध में पाया गया कि जो लोग शुरूआत में ज्यादा गतिविधियों में लगे रहे वे अपने आईक्यू को बरकरार रखने के लिए दिमाग के आकार पर कम निर्भर थे।
 

ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम करना
इससे पहले किए गए शोध में पाया गया है कि जो लोग शिक्षा में ज्यादा समय बिताते हैं या फिर ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम करते हैं उनका आईक्यू ज्यादा बेहतर होता है। इतना ही नहीं, इन लोगों को बाद में डिमेंशिया का खतरा भी काफी हद तक कम होता है। अगर आप भी बुढ़ापे में डिमेंशिया और भूलने की बीमारी से बचना चाहते हैं तो अपनी रूटीन में दिमागी एक्टिविटीस, किताबें पढ़ना और अन्य ब्रेन गेम्स को शामिल करें।

Content Writer

Anjali Rajput