मिलिए 'जंगल की एन्साइक्लोपीडिया' तुलसी गौड़ा से जिसने 70 से ज्यादा साल बिता दिए जंगल में!

punjabkesari.in Thursday, Dec 22, 2022 - 02:57 PM (IST)

कुछ समय पहले की बात है, जब नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में कई जानी-मानी हस्तियों को सम्मानित किया जा रहा था। तभी पांरपरिक पोशाक ओढ़े हुए एक आदिवासी महिला सभी का अभिवादन कर रही थी।  खाली पैरों से कदम बढ़ाकर वो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास जा पहुंची।  ये कोई और नहीं बल्कि जंगलों के संरक्षण में अहम योगदान देने वाली तुसली गौड़ा ही थीं, जिन्हें पद्म श्री पुरस्कार के लिये चुना गया था। उस दिन चम-चमाती महफिल में प्रणाम करते हुये तुलसी गौड़ा ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा। आज तुलसी गौड़ा करीब 78 साल की हो चुकी है। इस उम्र में ज्यादातर लोग रिटायर होकर आराम फरमा रहे होते हैं, उस समय तुलसी गौड़ा ना सिर्फ देश-दुनिया से आये मेहमानों से मिलती है, बल्कि बाद में अपनी थकान मिटाने के लिये दोबारा जंगलों की ओर निकल जाती है। अपने जीवन के 70 से ज्यादा वर्ष जंगलों के नाम करने वाली तुलसी गौड़ा को आज पर्यावरणविद् कम और 'जंगल की इनसाइक्लोपीडिया' के नाम से ज्यादा जानते हैं। 

संघर्षों में बीत बचपन

बता दें कि तुलसी गौड़ा का जन्म साल 1944 में कर्नाटक के एक गांव होन्नली स्थित हक्काली जनजाति में हुआ।  वह एक गरीब और साधारण आदिवासी परिवार की बेटी है, जिनके पिता दिहाड़ी मजदूर और मांग पौधों की नर्सरी में काम करती थी। पढ़ाई-लिखाई और सुख-सुविधाओं से वंचित परिवार की बेटी तुलसी गौड़ा भी अपनी मां के साथ जंगल और पेड़-पौधों के परिवार से जुड़ गई।  इस दौरान दुर्लभ पौधों की प्रजातियों, जड़ी-बूटियों और पेड़-पौधों की नब्ज समझने लगीं। जंगलों से नाता जोड़कर तुलसी गौड़ा ने अपनी जिंदगी का अकेलापन दूर किया और धीरे-धीरे जंगलों के संरक्षण और पौधारोपण में उनकी रुचि बढ़ती गई।

जंगलों की सरकारी नौकरी

अपने जीवनकाल में तुलसी गौड़ा ने कई दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण और संवर्धन किया है. वो पेड़-पौधे लगाने के बाद किसी मां की तरह उनकी देखभाल भी करती हैं।  आज तुसली गौड़ा जंगल की नई उपज को देखकर उसके मदर प्लांट का नाम भी बता सकती है।  उनकी इसी समझ की दाद देते हुए कर्नाटक के वनीकरण योजना के तहत उन्हें पौधारोपण कार्यकर्ता के तौर पर नियुक्त किया और साल 2006 तक राज्य सरकार ने भी तुलसी गौड़ा को वृक्षारोपण की सरकारी नौकरी दे दी।  फिलहाल तुलसी गौड़ा नौकरी से रिटायर हो चुकी है, लेकिन अपना पूरा जीवन पेड़ पौधों को समर्पित करने के बाद भी लगातार जंगलों के संरक्षण में अपना योगदान दे रही है। 

जंगलों की मां

तुलसी गौड़ा ने अपने जीवनकाल में लाखों पेड़-पौधे लगाये और किसानों के साथ-साथ युवा पीढ़ी को भी इस काम के लिये प्रोत्साहित किया। तुलसी गौड़ा पर्यावरणविद् होने के साथ-सात सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, जिन्होंने जंगली की कटाई को रुकवाया और लोगों को जंगलों को समृद्ध बनाने की प्रेरणा दी। जानकारी के लिये बता दें कि वृद्धावस्था के परिणामों के कारण तुलसी गौड़ा का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता, लेकिन चिकित्सक के पास जाने के बजाय तुसली गौड़ा जंगलों से जड़ी-बूटियां इकट्ठा करके ही अपना इलाज करती है।

जब भी कोई जंगल, पेड़-पौधे और दुर्लभ प्रजातियों के बीजों का जिक्र करता है और उनकी आंखों में चमक बढ़ जाती है। ये जंगलों के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है।  उनका मानना है कि जंगल की घनी शाखाओं के बीच प्राण त्यागना ही सबसे अच्छी मौत होगी।  अपने जीवन के लंबे सफर में तुलसी गौड़ा इंसानों से ज्यादा जंगलों से प्रेम करती है, वो चाहती हैं कि उन्हें अगला जन्म किसी बड़े पेड़ के रूप में ही मिले। 
 

Content Editor

Charanjeet Kaur