ALERT: स्मार्टफोन के इस्तेमाल से आपके बच्चे को घेर सकती है ये प्रॉब्लम्स

punjabkesari.in Friday, Feb 08, 2019 - 09:55 AM (IST)

आजकल बच्चें चलना सीखने के साथ-साथ स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना भी सीख जाते हैं। पेरेंट्स सोचते हैं कि ऐसे बच्चे आगे चलकर स्मार्ट निकलते हैं लेकिन उनको पता ही नहीं चलता कि कैसे स्मार्टफोन उनके बच्चों को नुकसान पहुंचा रहा है। दुनिया के बहुत से शहर ऐसे हैं जहां वक्त-वक्त पर पेरेंट्स को मेडिकल एडवाइजरी दी जाती है जिसमें उन्हें बच्चों को स्मार्टफोन से दूर रखने के लिए कहा जाता है। मेडिकल एडवाइजर साफ तौर पर कहते हैं कि सोते वक्त और खाते वक्त बच्चों को स्मार्टफोन पर हाथ भी नहीं लगाने देना चाहिए लेकिन भारत में अगर बच्चें को खाना भी खिलाना होता है तो पहले हाथ में फोन थमा दिया जाता है। आइए जानते हैं कि स्मार्टफोन किस तरह बच्चों के ब्रेन को नुकसान पहुंचाते हैं। 

 

क्या कहते हैं एडवाइजर

एडवाइजरों का मानना हैं कि मोबाइल और ऑनलाइन ज्यादा समय बीताने से बच्चें का विकास अच्छे से नहीं हो पाता। यह भी साफ तौर पर देखा गया है कि ऑनलाइन व मोबाइल पर देखे गए कुछ कंटेंट बच्चों को खुद को नुकसान पहुंचाने और आत्महत्या की तरफ बढ़ाते हैं। मोबाइल के संपर्क में रहने वाले बच्चे अपनी उम्र से जल्दी बड़े होने लगते हैं। कई बार वह तनाव का शिकार हो जाते हैं जिससे आगे चलकर कई तरह की शारीरिक परेशानियां पैदा होने लगती है।

 

बच्चों को हो सकते हैं ये नुकसान

 

विकास धीमा हो जाना

जब बच्चें टैक्नोलॉजी पर ज्यादा डिपेंट हो जाते हैं तो उनकी मूवमेंट्स रूक सी जाती है जिससे उनका शारीरिक विकास पिछड़ जाता है, स्कूल जाने वाले बच्चों के दिमाग पर गलत असर पड़ता है और उनकी योग्यता भी कम हो जाती है।फिज़िकल एक्टिविटी करते रहने से बच्चे फोकस करना सीखते हैं और नई स्किल्स डेवलप करते हैं लेकिन मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल से स्किल्स की डिवलपमेंट कम होने लगती है।

 

मोटापा बढ़ना

शोध में पता चला है कि जिन बच्चों को उनके कमरे में ये डिवाइसेज इस्तेमाल करने के लिए मिल जाते हैं उनमें मोटापे का रिस्क 30 प्रतिशत ज्यादा होता है। मोटे बच्चों में से 30 प्रतिशत को डायबिटीज होने का और बड़े होने पर पैरालीसिसदिल के दौरा आने का खतरा बढ़ जाता है। ये सारे खतरे उनकी लाइफ़ एक्सपेक्टेंसी को कम करते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि 21वीं शताब्दी में बच्चों की उम्र उनके माता-पिता की उम्र जितनी लंबी नहीं रह पाएगी।


नींद की कमी

ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों के टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल की निगरानी नहीं करते हैं और 75 प्रतिशत बच्चों को उनके बेडरूम में टैक्नोलॉजी इस्तेमाल करने की खुली छूट मिली है। नौ से दस साल की उम्र के इन बच्चों की नींद टैक्नोलॉजी के दखल के कारण प्रभावित हो रही है जिससे उनकी स्टडीज़ प्रभावित होती हैं।

 

मानसिक रोग

टैक्नोलॉजी के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में डिप्रेशन, एंज़ाइटी, अटैचमेंट डिसॉर्डर, ध्यान नहीं लगना , ऑटिज़्म, बाइपोलर डिसॉर्डर और प्रॉब्लम चाइल्ड बिहेवियर जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

 

हिंसक स्वभाव

मीडिया, टीवी, फिल्मों और गेम्स में हिंसा बहुत अधिक दिखाई जाती है, जिससे बच्चों में आक्रामकता बढ़ रही है। आजकल छोटे बच्चे शारीरिक और लैंगिक हिंसा के प्रोग्राम और गेम्स की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं जिससे उनमें हत्या, बलात्कार  और टॉर्चर के दृश्यों की भरमार होती है। मीडिया में दिखलाई जानेवाली हिंसा पब्लिक हेल्थ रिस्क की श्रेणी में रखा जाता है क्योंकि यह बच्चों के विकास को बाधा डालता है।


ध्यान-शक्ति कमजोर होना

हाई-स्पीड मीडिया कंटेंट से बच्चों के फोकस करने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होती है जिससे वे किसी एक चीज़ पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते और चीजों का याद भी नहीं रख पाते। जो बच्चे ऐसी प्रॉबल्म  से जुझते हैं, उन्हें पढ़ाई करने में दिक्कत आती है।

 

लत लगना

कई बार ऐसी बात भी सामने आ जाती है कि माता-पिता खुद ही अपने गैजेट्स में बिजी रहते हैं जिससे वह बच्चों को समय नहीं दे पाते। जब बच्चे माता-पिता की कमी महसूस करते हैं तो वे टैक्नोलॉजी व इन्फॉर्मेशन के बहाव में खो जाते हैं और इसके लती हो जाते हैं।


आंखों पर दबाव

स्मार्टफोन और इसी तरह के गैजेट्स के लगातार इस्तेमाल से बच्चों की आंखो पर बुरा असर पड़ता है क्योंकि वे Back lit Screen को घंटो तक देखते रहते है जिससे  वह कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम का शिकार हो जाते हैं। यदि आप अपने बच्चों की आंखों की भलाई चाहते हैं तो उन्हें एक बार में 30 मिनट से अधिक समय तक स्क्रीन ना देखने दें।

Content Writer

Vandana