जमे हुए तालाब पर हॉकी की प्रैक्टिस करती थी यह महिला हॉकी टीम, जीत पर रो पड़े थे रैफरी

punjabkesari.in Thursday, Aug 08, 2019 - 01:11 PM (IST)

जब खुद में किसी चीज को पाने का जुनून हो तो कोई भी ताकत आपको उस चीज को पाने से रोक नही सकती है। वहीं आपके साथ पूरी टीम हो तो आप हिम्मत के साथ आगे बढ़ कर आने वाली सारी मुश्किलों का सामना कर जीत भी हासिल करते है। इस बात को सही साबित करने के लिए भारतीय आइस हॉकी टीम बहुत ही अच्छा उदाहरण है। जिन्हें न केवल खेल सीखने के लिए शुरुआती दिक्कतों का बल्कि आगे बढ़ते हुए भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके बाद भी उन्होंने हार न मान कर अपनी जिदंगी में जीत हासिल की।

लद्दाख की है यह शानदार टीम 

3 लाख की आबादी वाले लद्दाख में यहां रहना भी मुश्किल है, वहीं से टीम इंडिया के लिए आइस हॉकी की शानदार महिला टीम निकली है। इससे पहले यहां से पुरुष टीम भी भारतीय टीम में शामिल है। इस जगह से चाहे क्रिकेटर व अन्य दूसरे खिलाड़ी न निकले हो पर आइस हॉकी की टीम जरुर देश के लिए आगे आई है। 

उपकरणों के अभाव में तालाब पर करते प्रैक्टिस

टीम के पास खेल की तैयारी करने के लिए न ही उपकरण होते थे न ही धन, लेकिन उन्होंने हार नही मानी। लद्दाख में जब दो महीने के लिए तालाब जम जाते तो वह वहां पर प्रैक्टिस करते है। वहां पर सिर्फ दो महीने तक ही प्रशिक्षण चलता था, जो कि दिसंबर से फरवरी का महीना होता है। आइस रिंक के चारों तरफ एल्यूमीनियम एक्सट्रजन, एचडीपीई, ऐक्रेलिक से बने डैशर बोर्ड नही होते थे जिस कारण आइस रिंक के चारों ओर बाड़ का निर्माण होता है। खेल सीखने के लिए वह रिश्तेदारों से उपकरण उधार लेते थे। 

भारत का अंतरराष्ट्रीय कृत्रिम रिंक है बंद 

देहरादून में बने हुए भारत का एकमात्र कृत्रिम अंतरराष्ट्रीय रिंक किसी राज्य के समर्थन के बिना बंद है।  इसके बाद खिलाड़ियों को आइस हॉकी का प्रशिक्षण करने के लिए किर्गिस्तान, मलेशिया, यूएई जैसे देश का ही विकल्प बचता है। 

लगातार मेहनत से क्लब में शामिल हुई टीम

सर्दियों में लद्दाख में आइस हॉकी ही एक ऐसा खेल होता है जो कि वहां के लोग खेलते है। सर्दी में  यूथ फुटबाल या क्रिकेट न खेल कर जमे हुए तालाब पर जैसे लेह शहर व कारजू के बाहर गुपुक्स जैसी जगह पर आइस हॉकी खेलते है। वहां के स्पोर्ट्स क्लब के अनुसार 10 से 12 हजार युवा यह खेल खेलते है। वहां की आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से नेशनल आइस हॉकी प्रतियोगिता जैसे टूर्नामेंट हर साल जनवरी में करवाते है। जब वहां के पुरुष इस खेल में भारत का प्रतिनिधत्व करते तो उन्हें देख कर वहां की महिलाएं भी आगे आई। जो तो इसी खेल से जुड़ी परिवारों से थी उन्हें दिक्कत नही आई। लड़कियों ने यह खेल सिखने के लिए लकड़ी के पतले टुकड़े को लकड़ियों के लंबे टूकड़े से बांध कर खेलना शुरु किया। महिलाओं का इस खेल के प्रति बढ़ते जनून को देखकर 2008 में महिलाओं को स्थानीय प्रतियोगिताओं में शामिल किया गया। 

हार के बाद भी नही हुए निराश 

2017 में एशिया के हाई प्रोफाइल आइस हॉकी टूर्नामेंट में दो मैच हारने के बाद भी इन महिलाओं ने हार नही मानी। वह इन प्रतियोगिताओं में आगे बढ़ना चाहती थी। इससे पहले  2016 में भारतीय टीम में भी आइस हॉक एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने उनके जनून को देखकर शामिल किया था। उसके बाद 2016 में चीपी ताइपे में एशिया कप के चैलेंज के लिए महिलाओं की टीम को भेजने का फैसला लिया था। इन प्रतियोगिताओं के लिए खुद को तैयार करने में भी उन्हें काफी समय लगा था। 2017 में फिर महिला टीम ने फिलीपींस की टीम को हरा कर अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट जीता था। इस मैच की अंतिम सीटी पर सबकी  आखों में आंसू थे, इतना ही वहां करे रेफरी व अधिकारी भी रो रहे थए। 

 

Content Writer

khushboo aggarwal