कोरोना के इलाज में यह 1 गलती दे रही ब्लैक फंगस को जन्म, रहें सतर्क

punjabkesari.in Friday, May 21, 2021 - 05:10 PM (IST)

कोरोना वायरस के साथ देश में ब्लैक फंगस यानि म्यूकोरमाइकोसिस के मामले भी काफी तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसे लेकर लोगों में डर का माहौल बन गया है। अब तक महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों से ब्लैक फंगस के करीब 7251 केस सामने आ चुके हैं, जिनमें 219 मरीज अपनी जान गंवा चुके हैं।

क्या है ब्लैक फंगस?

बता दें कि ब्लैक फंगस कोई नई बीमारी नहीं है बल्कि कोरोना के कारण यह तेजी से फैल रही है। एक्सपर्ट का कहना है कि पुराने समय में लोग यौगिक जलनेति (पानी से नाक की सफाई) करने के लिए गंदे पानी का यूज करते थे जिसकी वजह से ब्लैंक फंगस होता था। गीली मिट्टी में म्यूकर के संपर्क में आकर यह फंगस आपके घर में प्रवेश कर सकता है। आमतौर पर यह मिट्टी, सड़ी लकड़ी, जानवरों के गोबर, पौधों की सामग्री, खाद और सड़े फलों व सब्जियों में होता है। फिलहाल कोविड-19 के मरीज इसकी चपेट में जल्दी आ रहे हैं, जिसका कारण इलाज में की जा रही एक गलती है।

किन लोगों को होता है अधिक खतरा?

दरअसल, यह फंगल इंफेक्शन संक्रमित या किसी बीमारी की दवा ले रहे मरीजों को जल्दी अपना शिकार बनाता है। इससे शरीर की इम्यूनिटी कम हो जाती है, जिससे वो रोगाणुओं से लड़ नहीं पाता। हवा के जरिए साइनस या फेफड़ों में ये इंफेक्शन जल्दी फैलती है। एक्सपर्ट का कहना है कि अगर समय रहते ध्यान ना दिया गया तो इससे 50-80% मरीजों की जान ले सकता है।

ब्लैक फंगस के लक्षण

इसके लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि वायरस शरीर के किस हिस्से में फैल रहा है। इसके आम लक्षण हैं...

- नाक का बंद होना
- नाक की ऊपरी परत पर पपड़ी जमना
- नाक की स्किन काली पड़ना
- आंखों में दर्द और धुंधला दिखाई देना
- सांस लेने में दिक्कत
- सीने में दर्द और फेफड़ों में पानी भरना
- बुखार सिरदर्द, खांसी
-खून की उल्टी
- मानसिक बीमारी

ब्लैक फंगस का कारण

-स्टेरॉयड का अंधाधुंध इस्तेमाल
-मरीजों को लंबे समय तक गंदी ऑक्सीजन देना
-बढ़ी हुई डायबिटीज
-स्टेरॉयड, जिनमें इम्यूनोसप्रेशन हो
-ICU में लंबे समय तक रहना
-ट्रांसप्लांट के बाद दिक्कत होना
-कैंसर मरीजों मे भी इसका खतरा अधिक रहता है

क्या है खतरा?

भारत की बहुत -सी जगहों पर भारी मात्रा में ऑक्सीजन की कमी हो रही है। ऐसे में वहां ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए लोग गंदे तरीके का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा स्टेरॉयड के कारण भी ब्लैक फंगस के मामले काफी बढ़ रहे हैं।

ऑक्सीजन की शुद्धता बहुत जरूरी

कोरोना के इलाज में ऑक्सीजन सैलेंडरों का इस्तेमाल किया जाता है। इसे बनाने के लिए कम्प्रेशन, फिल्ट्रेशन और प्यूरीफिकेशन का ध्यान रखा जाता है। लिक्विड ऑक्सीजन को बहुत सावधानी व स्वच्छता से साफ करके कीटाणुरहित किया जाता है। मरीजों को देने से पहले भी इसे ह्यूमिडिफिकेश और फिर सेलेंडर में स्टेरलाइज्ड वॉटर भरा जाता है। प्रोटोकॉल के तहत इसे बार-बार बदला जाता है।

स्टेरलाइज्ड वॉटर

मगर, कंटेनर का पानी स्टेरलाइज्ड ना करने से ब्लैक फंगस का खतरा बढ़ जाता है। अगर डायबिटीज या दूसरे मरीजों को ये सेलेंडर दिए जाए तो फेफड़े भी खराब हो सकते हैं। 

स्टेरॉयड का कम इस्तेमाल

एक्सपर्ट का कहना है कि कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड का सही समय पर यूज किया जाना चाहिए। शुरूआती समय पर मरीज को स्टेरॉयड देना हानिकारक हो सकता है। वहीं, अधिक समय तक इसका इस्तेमाल इम्यूनिटी कम और शुगर लेवल बढ़ा सकता है।

Content Writer

Anjali Rajput