सच या अफवाह: क्या थी ‘बाइसाइकिल फेस’ की बीमारी, जिससे महिलाओं को था खतरा?

punjabkesari.in Tuesday, Oct 28, 2025 - 04:19 PM (IST)

नारी डेस्क : क्या आप जानते हैं कि 19वीं शताब्दी में यूरोप में महिलाओं को साइकिल चलाने से रोकने के लिए एक अजीब बीमारी का डर फैलाया गया था। “बाइसाइकिल फेस” नाम की बीमारी। यह कोई वास्तविक बीमारी नहीं थी, बल्कि महिलाओं की आज़ादी को दबाने के लिए बनाई गई एक फर्जी कहानी थी। आइए जानते हैं इसके पीछे की दिलचस्प और चौंकाने वाली सच्चाई।

क्या थी ‘बाइसाइकिल फेस’ की बीमारी?

उस दौर में साइकिल चलाने का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा था। महिलाएं भी इसे अपनाने लगी थीं, जिससे वे घर से बाहर निकलने लगीं, आत्मनिर्भर हो रही थीं और समाज में अपनी जगह बना रही थीं। लेकिन यह आज़ादी उस समय की पितृसत्तात्मक सोच को मंजूर नहीं थी। इसीलिए डॉक्टरों और अखबारों ने ‘बाइसाइकिल फेस’ नाम की बीमारी का डर फैलाना शुरू किया। उन्होंने दावा किया कि साइकिल चलाने से महिलाओं के साथ ये भयानक चीजें हो सकती हैं।

आंखें बाहर निकल सकती हैं।
चेहरा पीला और थका हुआ दिखने लगेगा।
ठोड़ी पतली और बदसूरत हो जाएगी।
औरतें जल्दी बूढ़ी और बांझ हो जाएंगी।
वास्तव में इनमें से एक भी बात सच नहीं थी। यह सब अफवाहें थीं ताकि महिलाएं डरकर साइकिल चलाना बंद कर दें।

क्यों फैलाई गई ये अफवाह?

19वीं सदी में साइकिल केवल एक साधन नहीं थी। यह महिला स्वतंत्रता का प्रतीक बन चुकी थी। महिलाएं साइकिल चलाने के बहाने बाहर निकलने लगीं, काम-काज करने लगीं और पुराने सामाजिक बंधनों को तोड़ने लगीं। साथ ही उन्होंने साइकिल चलाने के लिए अपने कपड़ों में भी बदलाव किया। अब वो भारी स्कर्ट की बजाय ट्राउजर और शर्ट पहनने लगी थीं।

इस बदलाव से समाज के पारंपरिक लोग डर गए।
उन्हें लगा कि अगर महिलाएं ऐसे ही आज़ाद होती रहीं, तो समाज की "पुरानी व्यवस्था" खत्म हो जाएगी।
इसलिए “बाइसाइकिल फेस” जैसी फर्जी बीमारी का प्रचार किया गया ताकि महिलाएं खुद ही साइकिल चलाने से डर जाएं।

असल सच्चाई क्या थी?

आज इतिहासकार मानते हैं कि “बाइसाइकिल फेस” नाम की कोई बीमारी कभी अस्तित्व में थी ही नहीं। ये सिर्फ एक प्रोपेगेंडा (Propaganda) था, जिससे महिलाओं को आज़ादी से रोकने की कोशिश की गई। वास्तव में, साइकिल चलाने से महिलाओं के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई। उन्होंने न सिर्फ समाज में अपनी पहचान बनाई बल्कि यह साबित किया कि स्वतंत्रता कोई बीमारी नहीं, बल्कि शक्ति है।

‘बाइसाइकिल फेस’ की कहानी इस बात का सबूत है कि जब भी महिलाएं आगे बढ़ने की कोशिश करती हैं, समाज उन्हें रोकने के लिए नए बहाने गढ़ता है।
लेकिन हर बार महिलाओं ने इन झूठी कहानियों को पीछे छोड़कर खुद अपनी राह बनाई। आज साइकिल सिर्फ एक साधन नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी है।
 


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Content Editor

Monika

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