भोलेनाथ का ये मंदिर दिन में दो बार हो जाता है गायब, समुद्र की लहरें करती हैं यहां जलाभिषेक
punjabkesari.in Saturday, Feb 24, 2024 - 05:52 PM (IST)
वैसे तो हमारे देश में भगवान शिव के कई सारे मंदिर हैं पर गुजरात में मौजूद भोलेनाथ का मंदिर दूसरों से काफी अलग है। ये मंदिर दिन में 2 बार खुद गायब हो जाता है। इस मंदिर की खासियत ये है कि इसका जलाभिषेक खुद समुद्र की लहरें करती हैं। इस अनोखे कारण की वजह से ही ये मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है। हर दिन यहां लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। हम बात कर रहे हैं गुजरात के वड़ोदरा स्थित स्तंभेश्वर महादेव मंदिर की। आइए आपको बताते हैं इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में विस्तार से...
प्रकृति का अनोखा करिश्मा है मंदिर का गायब होना
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर गुजरात के भरूच जिले में समुद्र किनारे स्थापित है। इसकी खोज 200 साल पहले की गई थी। यहां मंदिर दिन में 2 बार गायब होने के लिए जाना जाता है। आपको बता दें कि इसके पीछे कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि ये प्रकृति का अनोखा करिश्मा है। मंदिर का समुद्र के पास होने के चलते समुद्र में ज्वार- भाटा यानी लहरें ऊपर तक आती हैं, तब पूरी मंदिर समुद्र में समा जाता है। समुद्र में ज्वार कम होने के बाद ही लोग इस मंदिर के दर्शन कर पाते हैं। ऐसी नेचुरल एक्टीविटी सदियों से होता आ रही है। ज्वार के समय उठने वाली पानी की लहरें मंदिर में महादेव की शिवलिंग का जलाभिषेक करती हैं। ये घटना हर रोज सुबह और शाम को होती है।
ये है मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
इस मंदिर से जुड़ी जानकारी स्कन्दपुराण से मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि ताड़कासुर ने भगवान शिव की बहुत कठोर तपस्या की थी, जिससे भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए थे और असुर से मनचाहा वरदान मांगने को कहा। असुर ने मांगा की उसे सिर्फ भगवान शिव का 6 दिन की आयु का पुत्र ही मार पाए। भोलेनाथ ने उन्हें वरदान दे दिया। बस वरदान मिलते ही ताड़कासूर ने हर जगह आंतक फैलना शुरू कर दिया। देवी- देवताओं से लेकर ऋषि-मुनियों तक सब को परेशान कर दिया। इससे परेशान होकर सभी देवता और ऋषि-मुनि महादेव के पास पहुंचे और अपनी दुविधा बताई। इसके बाद मात्र 6 दिन की आयु में कार्तिकेय ने ताड़कसुर का वध किया। लेकिन जब कार्तिकेय को पता चला की ताड़कासुर भोलेनाथ के भक्त थे तो वो काफी निराश हुए। भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि इस पाप से मुक्ति पाने के लिए वह असुर के वधस्थल पर शिवालय बनवा दें। इसके बाद ही सभी देवताओं ने मिलकर महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनन्दक स्तम्भ की स्थापना की, जिसे आज के समय में स्तम्भेश्वर तीर्थ के नाम से जाना जाता है।