मिलिए देश की पहली महिला शिक्षक Savitribai Phule से, लड़कियों को पढ़ाने के बदले खाने पड़े थे पत्थर

punjabkesari.in Wednesday, Jan 03, 2024 - 01:43 PM (IST)

भारतीय समाज में आज तो शिक्षा पाना सभी का अधिकार है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब कुछ समुदाय के लोगों को इसका अधिकार नहीं था। जी हां,  शिक्षा को महिलाओं के बीच एक आम अधिकार बनाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। आज देश की पहली महिला शिक्षक सावित्री बाई फुले की जंयती है, जिन्होंने न सिर्फ खुद बहुत संघर्ष करके पढ़ाई की, बल्कि दूसरी लड़कियों को भी शिक्षत होने में मदद की। कहा जाता है कि सावित्री बाई लड़कियों को पढ़ाने स्कूल जाती थी तो पुणे में स्त्री शिक्षा के विरोधी उन पर गोबर फेंक देते थे, पत्थर मारते थे। वे हर दिन बैग में एक्स्ट्रा साड़ी लेकर जाती थी और स्कूल पहुंचकर अपनी साड़ी बदल लेती थीं।  आइए आज आपको बताते हैं सावित्री से जुड़ी 10 अनसुनी बातें...

सावित्री बाई से जुड़ी 10 अनसुनी बातें

1. साबित्री फुले का जन्म 03 जनवरी 1831 को महाराष्ट्रा के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक छोटे से गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम लक्ष्मीबाई और पिता का नाम खंडोजी था।

2.महज 9 साल की उम्र में सावित्री का विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ था, उस समय ज्योतिराव फुले भी महज 13 साल के थे।

3.वो हमेशा से स्त्री शिक्षा के समर्थक थे, इसलिए जब सावित्री ने पढ़ने की इच्छा जताई तो ज्योतिराव ने उनका पूरा समर्थन किया।

4. सावित्रीबाई ने 17 साल की उम्र में अपने पति महात्मा ज्योतिराव फुले के साथ मिलाकर महाराष्ट्र के पुणे में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला, जो लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल था।

5.दलित चिंतक और लेखक महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा- विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी।

6. उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वास और रूढ़ियों की बेड़ियां तोड़ने के लिए लंबा संघर्ष किया था।

7. उन्होंने साल 1851 में छूआछूत की वजह से समाज से बाहर किए गए समुदाय की लड़कियों के लिए दूसरा स्कूल खोला था।

8. उन्होंने 28 जनवरी, 1853 को 'शिशु हत्या प्रतिबंधक गृह', महिला सेवामंडल और पीड़ित समुदाय के लोगों को जागरूक करने के लिए 'सत्यशोधक मंडल' आदि की स्थापना की थी।

9. सावित्रीबाई के पति ज्योतिराव फुले की मृत्यु सन 1890 में हुई थी, तब सावित्रीबाई ने उनके कामों को पूरा करने के लिए संकल्प लिया था।

10. उसके बाद महाराष्ट्र में फैले प्लेग के मरीजों की देखभाल करते हुए 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई की जान चली गई थी।

Content Editor

Charanjeet Kaur