क्यों किया जाता है कन्यादान? श्रीकृष्ण ने बताया था सही अर्थ? बेटी का दान करने की नहीं यह रस्म

punjabkesari.in Tuesday, Dec 22, 2020 - 08:20 AM (IST)

हिंदू धर्म में कन्यादान सबसे बड़ा दान माना जाता है। विवाह की रस्मों में कन्यादान सबसे अहम रस्म है। इस रस्म में पिता अपनी बेटी का हाथ उसके जीवनसाथी के हाथ में सौंप देता है और हर पिता के लिए यह पल बेहद कठोर होते हैं क्योंकि वह अपने जिगर का टुकड़ा किसी और सौंपता है। ऐसी मान्यताएं हैं कि कन्यादान करने का सौभाग्य भी भाग्यशाली माता पिता को ही मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कन्यादान का सही अर्थ क्या है  महाभारत में श्रीकृष्ण जी ने इसका सही अर्थ बताया था चलिए आज इस पैकेज में आपको कन्यादान से जुड़ी कुछ बातें बताते हैं।

पुराने समय से चली आ रही प्रथा

शास्त्रों के अनुसार, कन्या का दान करने से माता-पिता का जीवन सफल हो जाता हैं लेकिन महाभारत की एक पंक्ति में श्री कृष्ण द्वारा कन्यादान की जो परिभाषा दी गई वह शायद आप ना जानते हो जो श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को सुभद्रा के विवाह के समय कही थी। 

दरअसल, पुराने समय में गन्धर्व विवाह होते थे जिसमें लड़का-लड़की अपनी मर्जी से भगवान को साक्षी मानकर विवाह करते थे। श्रीकृष्ण जी ने भी अर्जुन और सुभद्रा का गन्धर्व विवाह करवाया था तब बलराम ने उनका विरोध करते हुए कहा कि कृष्ण जिस विवाह में कन्यादान ना हो वो विवाह पूर्ण नहीं होता तब श्रीकृष्ण ने इसका विरोध किया था और कहा था-  

प्रदान मपी कन्याया: पशुवत को नुमन्यते? यानि पशु की भांति कन्या के दान का समर्थन कौन करता है? यहां तक कि कई प्राचीन शास्त्र भी कन्यादान का विरोध करते हैं वहीं हमारा संविधान और कानून भी बिना कन्यादान के ही कोर्ट मैरिज करवाता है। 

1. कन्यादान का सही अर्थ है कन्या का आदान ना कि कन्या को दान में देना। कन्यादान के समय पिता उसके पति का यह कहता है, मैंने अभी तक अपनी बेटी का पालन-पोषण किया जिसकी जिम्मेदारी मैं आज से आपको सौंपता हूं 

इसका यह मतलब बिलकुल नहीं कि पिता ने बेटी का दान कर दिया और अब उसका बेटी पर कोई हक नहीं रहा। 

2. असल में दान उस वस्तु का किया जाता है जिसे आप अर्जित करते हैं जैसे संपत्ति लेकिन बेटी परमात्मा की दी गई अमूल्य धरोहर होती हैं जिसे आपने अर्जित नहीं किया है इसलिए उसका दान नहीं हो सकता।

चलिए अब बताते हैं कहां से शुरू हुई थी कन्यादान की रस्म

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था। 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्री कहा गया है, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था। इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो।

Content Writer

Sunita Rajput