Women Care: महिलाओं को ज्यादा सताता है SLE रोग, लक्षण दिखने पर हो जाएं सतर्क

punjabkesari.in Saturday, May 25, 2019 - 10:29 AM (IST)

सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमैटोसस (एसएलई) एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो अधिकतर महिलाओं में देखने को मिल रही है। अगर हालात बिगड़ जाए तो इससे दिल, फेफड़े, किडनी और दिमाग को भी नुकसान पहुंच सकता है। इतना ही नहीं, इसके कारण व्यक्ति का जान भी जा सकती है। एसएलई का अभी तक कोई पक्का इलाज सामने नहीं आया है लेकिन समय रहते लक्षणों की पहचान करके बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है।

 

क्या है एसएलई या ल्यूपस?

इम्यून सिस्टम इंफैक्शन एजेंट, बैक्टीरिया और बाहरी रोगाणुओें से लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडीज बनाता है। मगर एसएलई यानी ल्यूपस वाले लोगों के खून में ऑटोएंटीबॉडीज बनने लगती हैं, जो संक्रामक से लड़ने की बजाए शरीर के स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर हमला करते हैं।

भारत में 10 लाख लोग है इसके शिकार

शोध के अनुसार, भारत में हर 10 लाख लोगों में करीब 30 लोग सिस्टेमिक ल्यूपूस एरीथेमेटोसस (एसएलई) रोग से पीड़ित पाए जाते हैं लेकिन महिलाओं में यह समस्या अधिक पाई जाती है। इस रोग से पीड़ित 10 महिलाओं के पीछे एक पुरुष ल्यूपस से पीड़ित मिलेगा।

गर्भावस्था महिलाओं को अधिक खतरा

ल्यूपस से ग्रस्त महिलाओं में गर्भपात का खतरा अधिक होता है। इतना ही नहीं, इससे प्रैग्नेंसी में हाई ब्लड प्रैशर और पीटरम बर्थ (समय से पहले बच्चे को जन्म देना) का जोखिम भी बढ़ जाता है। यही वजह है कि डॉक्टर्स इस बीमारी से पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण ना करने की सलाह देते हैं, जब तक रोग के लक्षणों को कम से कम 6 महीने तक कंट्रोल ना किया जाए।

ल्यूपस के कारण

15 से 40 साल की उम्र के लोगों को इसका खतरा अधिक रहता है, खासकर महिलाओं को। हालांकि कुछ ऐसे अन्य कारक भी है, जो ल्यूपस के खतरे को बढ़ाते हैं। सूरज की रोशनी के संपर्क में आने से भी त्वचा पर ल्यूपस के घाव बन सकते हैं। दरअसल, धूप कुछ अतिसंवेदनशील लोगों में अंदरूनी प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करती है, जिससे ल्यूपस विकसित होने लगता है। साथ ही इंफैक्शन और कुछ दवाएं जैसे एंटी-सीजर, एंटीबायोटिक्स और ब्लड प्रेशर की मेडिसन भी इस बीमारी का खतरा बढ़ाते हैं।

बीमारी के लक्षण

बहुत अधिक थकान
जोड़ों में दर्द और सूजन
सिरदर्द की शिकायत
गालों और नाक पर दानें
स्किन पर लाल चकत्ते पड़ना
बालों का झड़ना
एनीमिया की शिकायत
खून के थक्के बनना
हाथ व पैर की उंगलियों का सफेद या नीले रंग होना

बचाव के उपाय

-डॉक्टर की बताई सभी दवाइयां नियमित रूप लें। साथ ही डॉक्टर से संपर्क में रहें और जरूरी चेकअप करवाते रहें। 
-अधिक आराम करने से बचें और शरीर को सक्रिय रखें। ऐसा करने से जोड़ लचीले बने रहेंगे और हार्ट संबंधी समस्याएं नहीं होंगी। 
-सूरज की रोशनी से बचें क्योंकि पराबैंगनी किरणें स्किन के चकत्तों को बढ़ा सकती हैं।
-धूम्रपान करने से बचें।
-तनाव व थकान को कम करने की कोशिश करें। 
-शरीर का वजन और हड्डी का घनत्व सामान्य स्तर पर बनाए रखें।

Content Writer

Anjali Rajput