''अब कौन करेगा तुमसे शादी''... जब 21 की उम्र में बिन ब्याही मां बन गई थीं रवीना टंडन

punjabkesari.in Wednesday, Sep 22, 2021 - 10:38 AM (IST)

90 के दशक की एक्ट्रेस रवीना टंडन भले ही फिल्मी दुनिया से दूर हो लेकिन एक वक्त ऐसा था जब उन्हें बॉलीवुड की राज रानी कहा जाता था। उनकी गिनती बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस में की जाती थी। मगर, फिर उनके करियर में एक ऐसा मोड़ आया , जिनसे उनके सामने कई सवाल खड़े कर दिए। दरअसल, रवीना ने महज 21 साल की उम्र में दो बच्चियों को गोद लेने का फैसला किया और बिन ब्याही मां बन गई।

रवीना टंडन ने 1995 में 21 साल की छोटी उम्र में उस समय बेटियों को गोद लिया था जब अविवाहित महिलाएं आज की तुलना में कहीं अधिक प्रतिबंधों और कलंक से बंधी थीं। यही नहीं, यह उनके फिल्मी करियर का एक हाई पीक पर था। 'मोहरा', 'दिलवाले' 'अखियों से गोली मारे' और 'लाडला' जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी थी। वह एक मेगा फिल्म स्टार, एक फिल्मी जगत की प्रमुख महिला बनने की राह पर थी।

जब 21 की उम्र में बिन ब्याही मां बन गई थीं रवीना टंडन

दरअसल, रवीना की एक कजिन का निधन हो गया था और उनकी दो बेटियां बेघर हो गई। उनकी बेटियों को आशा सदन अनाथालय में भेज दिया गया। रवीना ने बताया  कि वह अपनी मां के साथ वीकेंड पर उनसे मिलने जाया करती थी लेकिन जब उन्हें पता चला कि वहां उनका ख्याल ठीक से नहीं रखा जा रहा तो उन्होंने बेटियों को घर लाने का फैसला कर लिया। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "उस वक्त मैंने ज्यादा नहीं सोचा। मैं पूजा और छाया को अच्छी जिंदगी और भविष्य देना चाहती थी। मैं कोई करोड़पति नहीं लेकिन मैं उन्हें बेहतर भविष्य दे सकती हूं।' ऐसे में रवीना ने उन्हें आधिकारिक रूप से गोद लिया और सिंगल मदर बनकर उनकी परवरिश की। उस वक्त छाया की उम्र 8 साल और पूजा की उम्र 8 साल थी।

'अब कौन करेगा तुमसे शादी'...

जब उन्होंने बच्चियों को गोद लेने का फैसला किया तब कई लोगों ने उनपर उंगलियां उठाई। करियर क्या होगा? क्या कोई पुरुष कलाकार अविवाहित मां के साथ काम करना चाहेगा? वह बिना शादी के मां भी कैसे बन सकती है? वह खुद एक लड़की है तो बच्चियों को कैसे संभालेगी? क्या यह बेहतर नहीं है कि वह शादी कर ले और उसके खुद के बच्चे हों? क्यों अपनाएं? जैसी कई सवालों से घिरी रवीना ने बेटियों को पालने का फैसला कर लिया था।

'मेरी बेटियां मेरी सबसे अच्छी दोस्त'

आज, दोनों बड़ी हो गई हैं और शादीशुदा हैं। यही नहीं, रवीना नानी भी बन चुकी हैं। हालांकि मातृत्व और करियर को एक बराबर रखने से दोनों में से कोई भी ग्राफ प्रभावित नहीं हुआ। रवीना का कहना है, 'मेरी बेटियां मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं। मुझे याद है जब मेरी शादी हुई थी तो वही कार में बैठी थी और मुझे मंडप तक लेकर आईं थी। यह एक ऐसा एहसास है, जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।'

महिलाओं को कम उम्र से ही संस्कार, विवाह और फिर मातृत्व जैसी बातें सिखा दी जाती है। समाज हमें बताता है कि एक महिला के जीवन में यही रास्ता तय होता है। मगर, महिलाओं के जीवन की प्रगति के तरीके पर समाज का संतुलन क्यों निर्भर है? उनकी धार्मिकता कौन निर्धारित करता है? एक महिला को सपनों की खोज करने से क्यों रोका जाता हैं?

Content Writer

Anjali Rajput